नई दिल्ली: अक्सर ये सवाल उठते रहते हैं कि जनता के धन को राजनीतिक पार्टियां कैसे खर्च करती हैं इसकी जवाबदेही कौन तय करेगा? सांसदों के वेतन और भत्ते जब चाहें बढ़ाए जा सकते हैं और ये जनता के पैसे से ही होता है, इसके लिए क्याकौन लेगा? आज वित्त मंत्री अरुण जेटली ने न्यायपालिका को परोक्ष संदेश देते हुए कहा कि यह तय करने का अधिकार केवल संसद को है कि सांसदों को कितनी पेंशन दी जा सकती है और अंतर-संस्थागत अनुशासन का सम्मान करना होगा.


संसद सदस्यों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाएं रद्द करने की मांग करने वाली अपील पर कल उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब तलब किया था. इसके जवाब में आज वित्त मंत्री ने बात कही है. राज्यसभा में आज विपक्षी सदस्यों सदस्यों ने भी चिंता जताते हुए कहा था कि सांसदों की छवि धूमिल की जा रही है.


इस पर जवाब देते हुए वित्त मंत्री और सदन के नेता अरुण जेटली ने कहा ‘‘यह एक निर्विवाद संवैधानिक रूख है कि जनता का धन संसद की मंजूरी के बाद ही खर्च किया जा सकता है. इसलिए, केवल संसद ही यह तय कर सकती है कि जनता का धन कैसे खर्च किया जा सकता है. कोई अन्य संस्थान इस अधिकार का उपयोग नहीं कर सकता."


वित्त मंत्री ने कहा ‘‘यह तय करने का विशेष अधिकार संसद को है कि सरकारी पेंशन लेने का हकदार कौन है और कितनी पेंशन लेने का हकदार है. यह संवैधानिक रूख है जिसे प्रत्येक संस्थान को स्वीकार करना होगा.’’ विपक्षी सदस्यों ने उच्चतम न्यायालय की इस कथित टिप्पणी का मुद्दा उठाया था कि 80 फीसदी पूर्व सांसद ‘‘करोड़पति’’ हैं.


जेटली ने कहा ‘‘मैं सदस्यों की भावनाओं का सम्मान करता हूं और सरकार हमेशा इस रूख पर कायम रहेगी. मेरे विचार से अंतर-संस्थागत अनुशासन के तहत यह एक संवैधानिक रूख है जिसका सभी संस्थानों को सम्मान करना होगा.