नई दिल्ली: सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी विप्रो के कार्यकारी चेयरमैन अजीम प्रेमजी ने हाल ही में रिटायरमेंट की घोषणा की है. 30 जुलाई को अपने पद से रिटायर हो रहे अजीम प्रेमजी का पद कंपनी में अब उनके बेटे रिशद प्रेमजी संभालेंगे. अजीम प्रेमजी बेहद सादा जीवन जीते हैं और वो अपनी कमाई का एक बड़ा भाग सामाजिक कामों के लिए कुछ सालों पर दान कर देते हैं. उनकी दानवीरता की कहानी ऐसी है कि उन्हें आधुनिक कर्ण कहा जा सकता है. अजीम प्रेमजी अभी तक एक लाख 45 हजार करोड़ रूपए की राशि दान कर चुके हैं. अजीम प्रेमजी की सफलता की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. कभी साबुन का व्यापार करने वाले प्रेमजी अभी देश के सबसे बड़े साफ्टवेयर कंपनियों में से एक विप्रो को हेड कर रहे हैं.

पिता के निधन के बाद संभाला पद


24 जुलाई 1945 में को मुंबई में जन्मे अजीम हाशम प्रेमजी के पिता मोहम्मद हाशम प्रेमजी एक जाने माने व्यापारी थे और देश के व्यापारियों में उनका अच्छा नाम था. अजीम के जन्म के समय उनके पिता ने वेस्टर्न इंडियन वेजीटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड की स्थापना की. वह उस समय बहुलता से इस्तेमाल होने वाले वनस्पति का उत्पादन करते थे. अजीम के जन्म के दो बरस बाद ही देश का बंटवारा हो गया. कहते हैं कि अजीम के शिया मुस्लिम परिवार को जिन्ना ने पाकिस्तान चलने को कहा, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का निर्णय किया. 1966 में अजीम स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, जब अचानक उनके पिता का निधन हो गया और उन्हें अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर वापिस लौट आना पड़ा. 21 बरस के अजीम पर अपने परिवार के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी आन पड़ी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और साबुन, जूते, बल्ब और हाइड्रोलिक सिलेंडर जैसे उपभोक्ता उत्पाद बनाने शुरू किए.

सादगी भरा जीवन जीते हैं


प्रेमजी ने 1977 ने कंपनी को नया नाम दिया विप्रो और नये नामकरण के दो बरस बाद ही कंपनी को पंख लगने लगे. दरअसल 1979 में भारत सरकार ने आईबीएम से देश छोड़कर जाने को कहा और अजीम प्रेमजी को कंप्यूटर व्यवसाय में हाथ आजमाने का मौका मिल गया. उनका यह नया कदम बेहद सफल साबित हुआ और देखते ही देखते विप्रो ने कंप्यूटर के विश्व बाजार में अपना एक खास मुकाम बना लिया. 1990 के दशक के अंतिम वर्षों में तो अजीम प्रेमजी दुनिया के सबसे अमीर कारोबारियों की कतार में शुमार हो गए. उन्होंने 21वीं शताब्दी में भी अपना यह रूतबा बनाए रखा. इतने विशाल कारोबार और अरबो-खरबों डॉलर के मालिक होने के बावजूद अजीम प्रेमजी को उनकी सादगी और परोपकार की भावना के लिए जाना जाता है. 2001 में उन्होंने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की, जो देश के ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक शिक्षा का स्तर सुधारने की दिशा में काम कर रहा है.

इस साल दान किए 52 हजार करोड़ से अधिक रुपए


इसी साल प्रेमजी ने अपनी कंपनी की 34 परसेंट हिस्सेदारी परोपकार के लिए दान कर दी, जिसका मूल्य 52,750 करोड़ रुपए है. उनके द्वारा इससे पहले दान की गई राशि को भी जोड़ लिया जाए तो उनके परोपकार के कामों के लिए दान की गई कुल रकम 1,45,000 करोड़ रुपये (21 अरब डॉलर) हो गई है, जो विप्रो लिमिटेड के कुल आर्थिक स्वामित्व का 67 फीसदी है. बिल गेट्स और वॉरेन बफेट की ओर से शुरू की गई पहल 'द गिविंग प्लेज' पर हस्ताक्षर करने वाले अजीम प्रेमजी पहले भारतीय थे. वह भारत ही नहीं, बल्कि एशिया के सबसे बड़े दानवीर हैं. हजारों करोड़ रुपए की संपत्ति अर्जित करने वाले धनकुबेरों की भीड़ में अजीम प्रेमजी सबसे अलग नजर आते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी कमाई में से दान का हिस्सा कभी कम नहीं होने दिया.


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