नई दिल्लीः एबीपी न्यूज के कार्यक्रम जन मन धन में आज देश को कैशलेस बनाने के ऊपर विस्तार से चर्चा हुई. देश के कई जाने-माने अर्थशास्त्र के जानकार लोगों ने इसमें हिस्सा लिया. SBI चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम दावोस से सीधा एबीपी के कॉनक्लेव में वीडियो कॉन्फेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया और देश की इकोनॉमी पर नोटबंदी के असर और आगामी बजट पर अपनी सटीक राय दी.


SBI चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य का कहना है कि पिछले साल देश में लागू हुई नोटबंदी से आने वाले समय में ब्याज दरें और घट सकती है. इस साल बजट से उम्मीद है कि सरकार वरिष्ठ नागरिकों के लिए खास कदम उठाएगी. कार्ड पेमेंट के तरीके पर अगर सरकार कुछ सब्सिडी दे तो कैश पर दी जाने वाली 100 फीसदी सब्सिडी के खर्च में कमी आ सकती है. देश में कैश का ट्रांजेक्शन फ्री नहीं बल्कि इसके भी चार्जेज हैं जो व्यक्तिगत तौर पर नहीं बल्कि सरकार इस खर्च को उठा रही है.


बजट में सरकार से क्या है मांगें?


इस बार बजट में सरकार को कैश ट्रांजेक्शन की लागत कम करने की जरूरत है. चूंकि कैश लेनदेन पर 100 फीसदी सब्सिडी सरकार देती है. जबकि डिजिटल पेमेंट की लागत बैंकों के लिए फ्री नहीं है तो बैंक इस पर सर्विस टैक्स वसूलते हैं जिससे ग्राहकों को लगता है कि कैश के मुकाबले डिजिटल पेमेंट महंगा पड़ रहा है. लिहाजा सरकार को बैंकों को डिजिटल पेमेंट के लिए सब्सि़डी देनी चाहिए जिसका फायदा बैंक ग्राहकों को दे सकें.


डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए सरकार को बैंकों को सब्सिडी देनी चाहिए जिससे वो कार्ड या ऑनलाइन पेमेंट पर लगने वाले टैक्स को खत्म करें और ज्यादा से ज्यादा लोग डिजिटल पेमेंट के लिए उत्साही हो सकें.


नोटबंदी के तुरंत बाद लोग कैशलेस लेनदेन के लिए जागृत हो रहे हैं तो सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए और तुरंत ज्यादा से ज्यादा इंसेटिव डिजिटल पेमेंट पर देने चाहिए. नवंबर में कैशलेस ट्रांजेक्शन 23 करोड़ से ज्यादा लोगों ने किए जबकि जनवरी में एटीएम से पैसा निकालने की लिमिट बढ़ने के बाद कैशलेस पेमेंट 21 करोड़ रुपये हो गई है. तो इसमें गिरावट साफ दिखाती है कि देश में अभी भी लोग कैश लेनदेन के लिए ही ज्यादा कम्फर्टेबल हैं.


आज के जमाने में जब सिर्फ कैश से पेमेंट, लेनदेन करने की जरूरत खत्म हो गई है तो इसको लेकर सरकार को भी खर्च कम करने चाहिए. जैसा कि स्वीडन में होता है कि कैश के लेनदेन पर ग्राहक और बैंक दोनों को टैक्स देना होता है तो वहां कैशलेस ट्रांजेक्शन ही ज्यादा होता है. स्वीडन में 94 फीसदी ट्रांजेक्शन ऑनलाइन या डिजिटल होते हैं. स्वीडन सरकार कैश का डिजिटल फॉर्मेट भी लाने पर विचार कर रहे हैं तो इस तरह दुनिया धीरे-धीरे डिजिटल हो रही है और भारत को भी डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल बढ़ाने चाहिए.



डिजिटल पेमेंट को बढ़ाने के लिए सरकार को करना होगा ये काम!
सरकार को डिजिटल पेमेंट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि इसकी कमी की वजह से लोग कैश में ज्यादा खर्च करते हैं. अगर कोई आदमी पहली पहली बार डिजिटल तरीके से ट्रांजेक्शन करने में 3-4 बार फेल हो जाता है तो वो डिजिटल तरीके से परेशान होकर कैश में ही सुविधा महसूस करता है. तो बजट में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना चाहिए और खासकर गांवो, कस्बों में इसका प्रचार कैसे किया जाए इसके लिए कोई नीति लानी चाहिए.


फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन के लिए अलग से कोई नेटवर्क होना चाहिए या इसके लिए अलग प्लेटफॉर्म होना चाहिए. दूसरी बात ये है कि पैसे के मामले में सुरक्षा औलर भरोसा होना चाहिए और अगर डिजिटल माध्यम में ये बातें नहीं होंगी तो लोग डिजिटल पेमेंट पर भरोसा नहीं कर पाएंगे.


कैश के पेमेंट पर कोई लेखाजोखा रखना मुश्किल होता है, बैंकों को लोगों की कमाई का पता लगाना मुश्किल होता है तो उनको लोन देने के लिए भी दिक्कत होती है. साथ ही रिकॉर्ड में कैश ट्रांजेक्शन का सारा हिसाब रखना कठिन है और देश की वास्तविक कमाई पता लगाने में दिक्कत होता है.


आईसीआईसीआई बैंक या कोई भी सरकारी-निजी बैंक किसी खास एप को निशाना नहीं बना रहे हैं बल्कि चाहते हैं कि सरकारी एप भीम का इस्तेमाल लोग ज्यादा से ज्यागा करें क्योंकि ये यूनिवर्सल एप है और इसके फायदे भी ज्यादा हैं. वहीं इस एप के लिए इंटरनेट की भी जरूरत नहीं है तो साधारण फोन पर भी यूज किया जा सकता है. पिछले महीने लॉन्च हुई सरकार की भीम एप यूनिवर्सल एप है और यूपीआई, यूएसएसएडी के जरिए काम करती है. 1 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक का ट्रांजेक्शन रोज किए जा सकते हैं जबकि निजी पेमेंट एप से केवल 20 हजार रुपये तक का पेमेंट किया जा सकता है.


बैंकों की ब्याज दरों पर क्या है एसबीआई चीफ का कहना?
बैंकों का सिर्फ 3 फीसदी कैपिटलाइजेशन मार्केट से उधार होता है और सिर्फ इस पर आरबीआई के रेट घटाने से बैंकों को लिए ब्याज दरें कम करना संभव नहीं हो पाता है. बैंकों को डिपॉजिट के साथ साथ लिक्विडिटी भी काफी ज्यादा मिलनी चाहिए और इनकी कॉस्ट ऑफ फंड्स कम होने के बाद ही बैंकों के लिए ब्याज दरें कम कर पाना संभव हो पाएगा. विदेश के बैंकों में जैसे जैसे डिपॉजिट बढ़ते हैं उनके कॉस्ट ऑफ फंड्स भी कम किए जाते हैं तो इसी तरह की प्रेक्टिस भारतीय बैंकों में अमल में लाई जानी चाहिए.


बैंक में पैसा जमा करने पर ग्राहक चाहते हैं कि रेट ना घटें और नए ग्राहक चाहते हैं कि ब्याज दरें कम हों तो बैंकों को दोनों तरह के पैसे पर संतुलन बिठाना पड़ता है. फिक्सड डिपॉजिट के रेट घटते हैं तो बैंक उस रेट को पुरानी एफडी पर नहीं कर सकते हैं. उसी तरह नए रेट घटने का फायदा नए ग्राहकों को मिलता है.


एसबीआई चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर में जो कमी आई है वो सिर्फ थोड़े समय के लिए आई है. नोटबंदी के सारे फायदे देखें तो आगे देश की विकास दर ज्यादा टिकाऊ होगी और तेज गति से बढ़ेगी. कैश यूज करने के तौर-तरीकों में जो कमी आई है और लंबी अवधि में इसका फायदा देश की अर्थव्यवस्था को जरूर मिलेगा. नोटबंदी के बाद कैश में चलने वाली इकोनॉमी 30 फीसदी घटी गई थी लेकिन इसमें से 94-95 फीसदी की वापसी हो चुकी है और इस लिहाज से देखा जाए तो औसत तौर पर जीडीपी में ज्यादा गिरावट नहीं आएगी.


होमलोनन पर अगर सरकार कुछ छूट के प्रावधान लाए तो घर खरीदने के लिए लोन लेने वालों को बढ़ावा मिलेगा और इसके जरिए लोन की मांग बढ़ेगी. लोन की मांग बढ़ने के चलते खपत बढेगी. खपत बढ़ने से कंज्मपशन आधारित इकोनॉमी बनेगी और इंडस्ट्री, सेक्टर्स सभी को इसका फायदा होगा.


एसबीआई चेयरपर्सन ने बताया कि नोटबंदी के बाद जाहिर तौर पर बैंकों के लिए काफी काम बढ़ गया था जब तक बैंक का एक दिन का काम खत्म होता था तब तक अगला दिन होकर फिर बैंक खुलने का समय हो जाता था. बैंक के कर्मचारियों ने लगातार कई दिनों तक बिना रुके काम किया है. नोटबंदी के दौरान बैंक कर्मियों ने जी-तोड़ मेहनत की और कई बैंककर्मी कई दिनों तक घर भी नहीं गए.


नोटबंदी के चलते थोड़े समय के लिए ब्रेक जैसी स्थिति अवश्य आ गई थी क्योंकि देश में लगभग 90 फीसदी सप्लाई चेन कैश के आधार पर चलती थी और इसके बाद तुरंत कैश की कमी होने से सप्लाई चेन में रुकावट आई थी पर अब स्थिति लगभग सामान्य हो चुकी है.