(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
जालान समिति ने आरबीआई का वित्त वर्ष अप्रैल- मार्च करने की सिफारिश की
विमल जालान समिति ने अपनी सिफारिशों में यह भी कहा है कि रिजर्व बैंक की आर्थिक पूंजी व्यवस्था की हर पांच साल में समीक्षा की जानी चाहिये और इसके लिए भी समिति ने कुछ और सुझाव दिए हैं.
मुंबईः रिजर्व बैंक की विमल जालान समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि केन्द्रीय बैंक के वित्त वर्ष को 2020- 21 से मौजूदा जुलाई- जून से बदलकर देश के वित्त वर्ष के मुताबिक अप्रैल से मार्च किया जा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे रिजर्व बैंक को सरकार को अंतरिम डिविडेंड देने की जरूरत नहीं रह जायेगी.
समिति ने अपनी सिफारिशों में यह भी कहा है कि रिजर्व बैंक की आर्थिक पूंजी व्यवस्था की प्रत्येक पांच साल में समीक्षा की जानी चाहिये. इसी व्यवस्था के तहत रिजर्व बैंक ने सरकार को 52,637 करोड़ रुपये की अतिरिक्त प्रावधान की राशि हस्तांतरित की है. इसके अलावा 1,23,414 करोड़ रुपये का डिविडेंड और सरप्लस आरक्षित राशि भी सरकार को हस्तांतरित किये जाने को रिजर्व बैंक के केन्द्रीय निदेशक मंडल ने मंजूरी दी है. कुल मिलाकर रिजर्व बैंक 1.76 लाख करोड़ रुपये की राशि सरकार को हस्तांतरित करेगा.
जालान समिति की रिपोर्ट को रिजर्व बैंक ने मंगलवार को जारी किया. इससे पहले सोमवार को रिजर्व बैंक के केन्द्रीय निदेशक मंडल ने जालान समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था. विमल जालान रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर हैं. जालान समिति का गठन रिजर्व बैंक ने सरकार के साथ विचार विमर्श के बाद किया था. इस समिति को रिजर्व बैंक की आर्थिक पूंजी के नियम (ईसीएफ) तय करने का काम दिया गया था. समिति ने 14 अगस्त को रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास को रिपोर्ट सौंप दी थी.
व्यवस्था की प्रत्येक पांच साल में समीक्षा होनी चाहिये समिति ने कहा है कि इस व्यवस्था की प्रत्येक पांच साल में समीक्षा होनी चाहिये. इस दौरान यदि रिजर्व बैंक के कामकाज के परिवेश और जोखिम में कोई बड़ा बदलाव आता है तो आर्थिक पूंजी नियम की समीक्षा बीच में भी की जा सकती है. रिपोर्ट में रिजर्व बैंक के लिये एक सरप्लस वितरण नीति बनाये जाने की भी सिफारिश की गयी है जिसका लक्ष्य न केवल कुल आर्थिक पूंजी हो बल्कि रिजर्व बैंक की पूंजी से प्राप्त इक्विटी स्तर भी इसका हिस्सा होना चाहिये. समिति ने कहा है कि इससे सरकार को सरप्लस हस्तांतरण के मामले में अधिक स्थायित्व आयेगा. समिति ने कहा है कि केन्द्रीय बैंक के ऐसे बफर स्टॉक जिसमें कोई प्राप्ति नहीं हुई है उसका हस्तांतरण नहीं किया जाना चाहिये और इसका बाजार जोखिम के समक्ष जोखिम बफर के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिये.
रिपोर्ट में सिफारिशों में कहा गया है कि रिजर्व बैंक का कुल प्रावधान उसके सकल बैलेंस सीट आकार के मुकाबले 6.5 फीसदी से लेकर 5.5 फीसदी के दायरे में बनाये रखना चाहिये. इसमें 5.5 से लेकर 4.5 फीसदी मौद्रिक और वित्तीय स्थायित्व जोखिम के लिये और एक फीसदी राशि कर्ज और परिचालन से जुड़े जोखिम के लिये रखी जायेगी. जालान समिति ने रिजर्व बैंक के वित्त वर्ष को भी सरकार के वित्त वर्ष (अप्रैल से मार्च) के अनुरूप रखने का सुझाव दिया है. इससे विभिन्न अनुमानों और प्रकाशनों के मामले में सरकार के साथ बेहतर तालमेल बना रहेगा.
समिति ने बाजार जोखिम का आकलन और मापन के लिये अनुमानित कमी के सिद्धांत को अपनाने की बात कही है. वर्तमान में रिजर्व बैंक इसके लिये जोखिम वाली सम्पत्ति मूल्य के आकलन के आधार पर पूंजी का प्रावधान करता है. केन्द्रीय बैंकों के साथ साथ वाणिज्यिक बैंकों के बीच भी अब अनुमानित कमी के पैमाने को अपनाने की सहमति बन रही है. केन्द्रीय बैंक इस मामले में जहां अनुमानित कमी को लेकर 99 फीसदी विश्वास के स्तर को अपनाते हैं . जालान समिति ने इस मामले में 99.5 फीसदी विश्वास के स्तर के आधार पर अनुमानित कमी का प्रावधान करने की सिफारिश की है.
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