ब्रेंट क्रूड के भाव 70 डॉलर प्रति बैरल पहुंचने के बाद भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें और ऊंचाई पर पहुंचने की आशंका व्यक्त की जा रही है. विश्लेषकों का मानना है फिलहाल राज्यों में चुनावों को देखते हुए सरकार इनकी कीमतों में बढ़ोतरी को रोक ले लेकिन यह नियंत्रण ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगा. क्रूड पर नजर रखने वालों का कहना है कि ग्लोबल अर्थव्यवस्था में तेजी और तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक की ओर से उत्पादन न बढ़ाए जाने से इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड के दाम 80 से 90 डॉलर प्रति बैरल को भी छू सकते हैं.


इकोनॉमी की रिकवरी हो सकती बेपटरी


महंगे पेट्रोल-डीजल से सरकार की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश पर पानी फिर सकता है. डीजल की कीमतें बढ़ने से माल ढुलाई का महंगा होना तय है. इससे खेती की लागत भी बढ़ेगी और इसका असर महंगाई पर पड़ेगा. रिजर्व बैंक को महंगाई पर नियंत्रण के लिए ब्याज दरों में कटौती करनी पड़ सकती है. इससे मार्केट में लिक्विडिटी कम हो जाएगी. इस वजह से कंपनियों के पास कर्ज के लिए फंड कम बचेगा. यह स्थिति उनकी रिकवरी में अड़चन बन सकती है. ऐसे में पेट्रोल-डीजल की महंगाई बढ़ना इकोनॉमी की रिकवरी पर बड़ा नकारात्मक असर डाल सकती है.


महंगाई की तेज रफ्तार मुश्किल


पिछले नौ दिनों में क्रूड के दाम बढ़ने के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर हैं. फिलहाल दिल्ली में पेट्रोल 91.17 रुपये प्रति लीटर और डीजल 81.47 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है. लेकिन माना जा रहा है कि तेल कंपनियां कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी को ज्यादा दिनों तक नहीं झेल पाएंगीं. देर-सवेर उन्हें कीमतें बढ़ानी ही होंगी क्योंकि क्रूड के दाम आने वाले दिनों में 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच सकते हैं. ऐसे में भले ही फिलहाल राज्यों के चुनाव देकर पेट्रोल-डीजल की कीमतें नहीं बढ़ रही हैं लेकिन आगे इसे रोकना मुश्किल होगा.


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