बजट 2020 पेश : जानें, कहां से आता है और कहां जाता है सरकारी रुपया?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला पूर्णकालिन बजट पेश किया.सरकार का मिलने वाले रुपये की तरह खर्च होने का भी अपना हिसाब है.
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नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020 के दशक का पहला बजट पेश किया. इसमें इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव सहित कई बड़े एलान किए गए. इतना ही नहीं विभिन्न मंत्रालयों व कार्यो के लिए करोड़ों रुपये का आवंटन किया गया. लेकिन क्या आपको पता है कि सरकार को मिलने वाला हर एक रुपया कहां से आता है और कहां खर्च होता है? रुपये के आने और जाने की कहानी को कुछ यूं समझा जा सकता है.
सरकार को मिलने वाले प्रत्येक एक रुपये में से 20 पैसे उधारी व अन्य देनदारियों से मिलते हैं. 18 पैसे कॉरपोरेशन टैक्स से मिलते हैं. सरकार को मिलने वाले रुपये में 17 पैसे आयकर से हासिल होते हैं. इस रुपये में कस्टम टैक्स का हिस्सा 4 पैसे है. केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी इस एक रुपये में 7 पैसे का योगदान देती है. जीएसटी व अन्य टैक्स 18 पैसों का योगदान रुपये में देता है. गैर कर राजस्व से 10 पैसे हासिल होते हैं और गैर उधारी पूंजी प्राप्तियां से 6 पैसे आते हैं.
सरकार का मिलने वाले रुपये की तरह खर्च होने का भी अपना हिसाब है. सरकार के प्रत्येक एक रुपये की आमदनी में 20 पैसे राज्यों को टैक्स में भागीदारी के रूप में दिए जाते हैं. 18 पैसे ब्याज के भगुतान में खर्च हो जाते हैं. 13 पैसे केंद्रीय सेक्टर की स्कीमों में खर्च हो जाते हैं. वित्त आयोग व अन्य हस्तांतरण में 10 पैसे चले जाते हैं.
केंद्रीय सरकार द्वारा प्रायोजित स्कीमों के लिए रुपये में से 9 पैसे रखे जाते हैं. प्रत्येक एक रुपये में से 8 पैसे रक्षा से जुड़े व्यय पर खर्च होते हैं. 6 पैसे सब्सिडी पर खर्च हो जाते हैं. पेंशन पर भी 6 पैसे खर्च होते हैं. इसके अलावा शेष बचे 10 पैसे सरकार के अन्य खर्चो के लिए होते हैं.
यह बजट ऐसे समय आया है जब पिछले 15 साल में अर्थव्यवस्था की विकास दर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है, बेरोजगारी बढ़ने की दर बीते 45 सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर है, आम नागरिक के खर्च करने और खरीदने की क्षमता 40 सालों में सबसे निचले स्तर पर आ गई है. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस के मुताबिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मांग न्यूनतम स्तर पर चली गई है. रसातल में जाती अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए बीएचईएल, बीपीसीएल, जीएआईएल, एचपीसीएल, आईओसी, एमटीएनएल, एनटीपीसी, ओएनजीसी और सेल जैसी नवरत्न कंपनियों को विनिवेशित कर देने का चौतरफा दबाव है.
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