Budget 2022: बजट (Budget) पेश होने में आज के दिन को मिलाकर कुल पांच दिन बाकी हैं और सार्वजनिक गैस क्षेत्र (PSU Gas Companies) की कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक उद्योग संगठन ने सरकार से आने वाले बजट में नैचुरल गैस (Natural Gas) को वस्तु और सेवा कर-जीएसटी (GST) के दायरे में लाने की मांग की है. 


FIPI ने बजट पूर्व ज्ञापन में की मांग
फेडरेशन ऑफ इंडियन पेट्रोलियम इंडस्ट्री- एफआईपीआई (FIPI) ने अपने बजट-पूर्व ज्ञापन में पाइपलाइन के जरिये नैचुरल गैस के परिवहन और आयातित एलएनजी के गैस में बदलने पर जीएसटी को युक्तिसंगत बनाने की भी मांग की है.


उद्योग संगठन ने कहा कि गैस आधारित अर्थव्यवस्था के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण को साकार करने और पर्यावरण के अनुकूल ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्राकर्तिक गैस को जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए. बता दें कि रिलायंस इंडस्ट्रीज समेत सरकारी सेक्टर की कंपनियों को रीप्रेसेंट करने वाला ये उद्योग संगठन पहले भी कई बार नैचुरल गैस को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग करता रहा है. 


मौजूदा वैट और टैक्स की दरें हैं ज्यादा
वर्तमान में प्राकर्तिक गैस जीएसटी के दायरे से बाहर है. इस पर फिलहाल केंद्रीय उत्पाद शुल्क, राज्य वैट (Value Added Tax), केंद्रीय बिक्री कर लगाया जाता है. नैचुरल गैस पर कई राज्यों में बहुत ज्यादा वैट लगाया जाता है. नैचुरल गैस पर आंध्र प्रदेश में 24.5 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 14.5 फीसदी, गुजरात में 15 फीसदी और मध्य प्रदेश में 14 फीसदी वैट है.


कई टैक्स से गैस इंडस्ट्री पर निगेटिव असर
एफआईपीआई ने कहा, "नैचुरल गैस को जीएसटी व्यवस्था में शामिल न करने से नैचुरल गैस की कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. गैस उत्पादकों/आपूर्तिकर्ताओं को कई तरह के टैक्स का सामना करना पड़ता है." उद्योग मंडल ने कच्चे तेल, नैचुरल गैस, पेट्रोल, डीजल और एटीएफ जैसे पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में जल्द से जल्द शामिल करने की मांग की है. साथ ही एलएनजी को प्रदूषणकारी तरल ईंधन के साथ प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी को कम करने का भी आग्रह किया है.


2030 तक नैचुरल गैस की हिस्सेदारी बढ़ाकर 15 फीसदी करने का लक्ष्य
उल्लेखनीय है कि प्रधान मंत्री ने 2030 तक देश में नैचुरल गैस की हिस्सेदारी को 15 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. इसकी वर्तमान में हिस्सेदारी 6.2 फीसदी है. नैचुरल गैस के उपयोग बढ़ने से ईंधन लागत कम होगी, साथ ही कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी.


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