Agriculture Sector Budget Expectations: साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा की गई पहल से कृषि से आय में सुधार हुआ है लेकिन हम अभी भी इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाए हैं. हाल के सालों में, बजट बनाते समय कृषि क्षेत्र के लिए पहले की तुलना में बहुत अधिक आवंटन किया गया है. केंद्र सरकार द्वारा 2017-18 में कृषि क्षेत्र में किया गया कुल खर्च 46361 करोड़ रुपये था, जो 2021-22 में बढ़कर 135854 करोड़ रुपये (बजट अनुमान) हो गया है. यह निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन अभी तक किसानों की आय के मामले में जमीनी स्तर पर बदलाव अभी भी महसूस नहीं किया जा सका है.
कृषि के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को देखना होगा
नीति आयोग के अनुसार, अभी भी 22.5 फीसदी किसान बीपीएल के अंतर्गत हैं. हालांकि, महामारी के बाद आय के आंकड़ों की कमी देखी गई है, लेकिन जैसे कि कोविड-19 द्वारा उत्पन्न स्थिति ने पूरी अर्थव्यवस्था पर खराब प्रभाव डाला है, इसने निश्चित रूप से कृषि क्षेत्र द्वारा आय की संभावनाओं को भी नकारात्मक तरीके से प्रभावित किया होगा. हाल के दिनों में महंगाई दर के बढ़ते रुझान के साथ जुड़ कर महामारी ने कृषि से आय को वास्तविक समय की कीमत और महंगाई दर समायोजित करने के बाद की कीमत, दोनों को बदतर कर दिया होगा. इस पृष्ठभूमि को देखते हुए आगामी बजट में किसान केंद्रित दृष्टिकोण अपनाते हुए वर्तमान कमियों को दूर करना और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान देना ही उचित है.
कैश आधारित परियोजनाओं पर सरकार का ज्यादा ध्यान
हाल के सालों में, बजट आवंटन का कुछ हिस्सा नकद आधारित योजनाओं की तरफ बहुत अधिक झुका हुआ है. इसके परिणामस्वरूप, किसानों को प्रत्यक्ष मौद्रिक लाभ प्रदान करने पर केंद्रित पीएम-किसान, पीएमएफबीवाई आदि जैसी योजनाओं पर पिछले पांच वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र में व्यय में काफी वृद्धि हुई है. कृषि के क्षेत्र में किए जाने वाले कुल व्यय का लगभग 21 प्रतिशत बजट में कृषि की अवसंरचना को मजबूत करने और किसानों को सहायता प्रदान करने वाली योजनाओं को आवंटित किया गया है. नकद आधारित योजनाएं समयबद्ध और प्रकृति में अनन्य हैं (भूमिहीन, महिला किसानों और किरायेदारों आदि को छोड़कर). किसानों की आय दोगुनी करने के मुद्दे को संबोधित करने के लिए इस तरह का योजनाबद्ध आवंटन मूल कारण के बजाय केवल अल्पावधि में कृषि संकट के लक्षणों का समाधान करते हैं. इसलिए, कृषि के बुनियादी ढांचे और कृषि के मशीनीकरण की दिशा में संरचनात्मक सुधार लाने का यह उचित समय है. यह न केवल दीर्घकालिक व्यवहार्यता लाने के लिए कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का समर्थन कर सकता है बल्कि इसके गुणक प्रभाव को भी बढ़ा सकता है.
इसके अलावा, वर्तमान में इस तरह से निवेश किया जा रहा है कि ये कृषि क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने के बजाय व्यक्तिगत रूप से किसानों तक पहुंच रहे हैं. 2023 के बजट को समुदाय आधारित बुनियादी ढांचे के विकास की आवश्यकता को संबोधित करने के लिए क्षेत्र-व्यापी सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए बनाया जाना चाहिए. इसलिए, बजट का आवंटन करते समय आरकेवीवाई, एनएफएसएम, आदि जैसी योजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. साथ ही, किसानों और ग्रामीण श्रमिकों को एमएसएमई की तरह ही सहायता की आवश्यकता है. इसलिए, बजट का आवंटन करते समय जमीनी स्तर पर अनुसंधान, शिक्षा और विस्तार सेवाओं का भी निश्चित रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए.
वर्ष 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष' घोषित किया गया
संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष' घोषित किया गया है. वर्तमान में, इस फसल के अधिकतम बिक्री मूल्य के अलावा इसकी अन्य बातों पर कम ध्यान है. इसके अलावा, बाजरा उत्पादक बड़े पैमाने पर छोटे और सीमांत किसान हैं जो कि ज्यादातर अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में हैं. यहां एकीकृत मूल्य श्रृंखलाओं का विकास सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा, जिसमें एक विविध बाजार बनाना, व्यवस्थित प्रशिक्षण और ज्ञान देना और सबसे महत्वपूर्ण, अभी तक अछूते वैश्विक बाजार की मांग को पूरा करने के लिए बाजरा का प्रसंस्करण और ब्रांडिंग करना होगा. 2023 का बजट केंद्र सरकार को बाजरा के क्षेत्र में बड़े सुधार लाने के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है.
क्या कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भर बनेगा?
अंत में, सार्वजनिक व्यय ढांचा में सहकारी संघवाद के सिद्धांतों को शामिल करते हुए एक दोहरे इंजन वाली सरकार की आवश्यकता होती है. इस प्रकार, इस क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार से संसाधनों का प्रावधान राज्यों की संसाधन आवश्यकताओं का पूरक होना चाहिए. 2023 में अमृत काल में प्रवेश कर रहा बजट 2023 अगले 25 वर्षों के लिए कृषि क्षेत्र की दिशा तय करेगा. 2023 का बजट यह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा कि क्या कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भर बनेगा.
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Note: इस लेख के लेखक PHD चैंबर के प्रेसिडेंट साकेत डालमिया हैं और लेख में प्रकाशित विचार और राय उनके निजी हैं.