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BUDGET 2020: आर्थिक सर्वे में अर्थव्यवस्था के लिए नया प्लान, 'थालीनॉमिक्स' का भी हुआ जिक्र

आर्थिक सर्वेक्षण में सबसे पहले जोर 'वेल्थ क्रिएशन' पर दिया गया है. इसे 'पूंजी' को बढ़ाना कह सकते हैं. मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रमण्यन ने कहा कि इस साल के इकनॉमिक सर्वे की थीम वेल्थ क्रिएशन है.

नई दिल्लीः आज संसद में 2019-20 का आर्थिक सर्वे पेश किया गया. वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार और उनकी टीम इसे तैयार करती है और वित्तमंत्री द्वारा इसे सदन में पेश किया जाता है. सर्वे में कहा गया है कि पिछले 13 साल में खाने की थाली आमदनी के मुकाबले किफायती हुई है. वेज थाली 29 फीसदी और नॉन वेज थाली 18 फीसदी किफायती हुई है. ये भी खुलासा हुआ कि देश में रेस्तरां खोलने के लिए बंदूक का लाइसेंस लेने के मुकाबले ज्यादा दस्तावेज देने की जरूरत होती है. रेस्तरां के लिए 45, जबकि बंदूक के लाइसेंस के लिए महज 19 दस्तावेज चाहिए होते हैं. कुछ ऐसी ही और रोचक जानकारी आज आर्थिक सर्वे में सामने आयीआर्थिक सर्वे के जरिए आप ये जान पाएंगे कि कैसा हो सकता है कल का बजट और सरकार आने वाले दिनों में आपके फायदे के लिए क्या कर सकती है.

आर्थिक सर्वेक्षण में सबसे पहले जोर 'वेल्थ क्रिएशन' पर दिया गया है.हिंदी में आप इसे 'पूंजी' को बढ़ाना कह सकते हैं. मुख्य आर्थिक सलाहकार के. वी. सुब्रमण्यन ने कहा कि इस साल के इकनॉमिक सर्वे की थीम वेल्थ क्रिएशन है.

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में सरकार का फोकस मुख्य तौर पर पांच विषयों पर हैं-

  • पहला पूंजी यानी ज्यादा से ज्यादा पूंजी बढ़ाना
  • दूसरा, मेक इन इंडिया के साथ असेंबल इन इंडिया
  • तीसरा है, नौजवानों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार
  • चौथा है वर्कफोर्स की सेहत
  • सेहत का ध्यान रखने के लिए थालीनॉमिक्स

चाणक्य की अर्थनीति का हवाला दिया गया दुनिया में जब से अर्थव्यवस्था का इतिहास है तब से पूंजी के मामले में हिन्दुस्तान का दबदबा रहा है. अंग्रेजों के आने से पहले तक भारत दुनिया में ट्रेड सुपरपावर रहा, आजादी के बाद हमारी अर्थव्यस्था समाजवाद से प्रेरित रही जहां पूंजी बढ़ाने पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया. मगर 1991 के उदारीकरण के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था 11 गुना बड़ी हुई और इस आर्थिक सर्वेक्षण में भी वेल्थ क्रिएशन पर जोर देते हुए चाणक्य की अर्थनीति का हवाला दिया गया जिसमें लिखा गया है कि 'पूंजी अर्जित करने का मूल आधार है आर्थिक गतिविधि और इसकी कमी से भौतिक संकट आता है. इसके न होने से वर्तमान प्रगति और भविष्य की तरक्की संकट में पड़ जाते हैं.

असेंबल इन इंडिया ये खतरा भारत पर ना मंडराए इसलिए आर्थिक सर्वे में व्यापार के नये मॉडल को अपनाने की सलाह दी गई है. इसे असेंबल इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड नाम दिया गया है इसे ऐसे समझिए कि सामानों का आयात किया जाए. देश में असेंबल किया जाए या फिर एक्सपोर्ट किया जाए. मेक इन इंडिया के साथ असेंबल इन इंडिया को आप चाइनीज फॉर्मूला भी कह सकते हैं. इसमें 2025 तक अच्छी सैलरी वाली 4 करोड़ और 2030 तक 8 करोड़ नौकरी देने का अनुमान है. इसे 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी की तरफ बढ़ता कदम बताया गया है

भारत और चीन के बीच के बीच में निर्यात का जो सबसे बड़ा अंतर है उसमें सिर्फ विशेषज्ञता का अंतर है. चीन ने लेबर सेक्टर में विशेषज्ञता हासिल की और इसी वजह से नौकरियों के सृजन में कामयाब रहा लेकिन भारत ये नहीं कर सका. असेंबल इन इंडिया इस लिये जरूरी है क्योंकि इससे युवाओं को रोजगार मिलेगा और वेल्थ क्रिएट होगा. भारत 2020 में दुनिया का सबसे युवा देश है, भारत में 54 फीसदी लोग 25 साल से कम उम्र के हैं, 2030 तक भारत की ये युवा शक्ति बनी रहेगी और 2030 के बाद भारत की युवाशक्ति कम होने लगेगी. इसी युवा शक्ति के इस्तेमाल के लिए वेल्थ क्रिएशन जरूरी है और इस वेल्थ क्रिएशन से देश का निर्यात बढ़ेगा.

थालीनॉमिक्स इतने बड़े वर्कफोर्स का फायदा भारत को तभी मिलेगा जब काम करने वाला स्वस्थ होगा इसलिए सरकार ने इस बार आर्थिक सर्वेक्षण में एक खास टॉपिक जोड़ा है इसका नाम है-थालीनॉमिक्स

भारत में भोजन की थाली का अर्थशास्त्र है जिसमें कहा गया है कि साल 2015-16 के बाद पांच सदस्यों वाले शाकाहारी परिवार को हर साल 10 हजार 877 रुपये का फायदा हुआ है. वहीं पांच सदस्यों वाले मांसाहारी परिवार को हर साल 11 हजार 787 रुपये का फायदा मिला आम आदमी के साथ अर्थशास्त्र बनाने की भावना को ध्यान में रखते हुए आर्थिक सर्वेक्षण से, थालिनॉमिक्स का विचार सामने आता है जो भारत में भोजन की अर्थव्यवस्था है. रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि मजदूर की थाली पहले से ज्यादा पौष्टिक हुई है रिपोर्ट के मुताबिक साल 2006-07 के मुकाबले मजदूर के घर में शाकाहारी थाली की क्वालिटी में 29 फीसदी का सुधार हुआ है. जबकि इसी दौरान मांसाहारी थाली की क्वालिटी में 18 फीसदी सुधार हुआ है हालांकि रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि वित्त वर्ष 2019-20 में मजदूरों की ये थाली थोड़ी महंगी हुई है.

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