गरीबों को नहीं मिली जगह, अमीरों को फायदा... जानें मोदी सरकार के बजट पर विपक्ष ने क्यों लगाए ये आरोप
आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट में बताया गया कि देश की 5 प्रतिशत कामकाजी आबादी ₹ 5,000 (लगभग $ 64) प्रति माह से कम कमाती है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने 1 फरवरी को वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया. केंद्र सरकार ने इस बजट को आम लोगों का बजट बताया. उन्होंने कहा कि इस बजट से देश और मजबूत होगा तो वहीं कांग्रेस और कई विपक्षी दलों ने इस बजट की निंदा की और इसे चुनावी बजट बताया है. विपक्ष का मानना है कि इसमें गरीबों के लिए कुछ भी नहीं है.
ऐसे में सवाल उठता है कि विपक्षी दलों के इस तरह के आरोप में कितनी सच्चाई है. क्या बजट से सच में अमीरों को ही फायदा होगा.
पहले जानते हैं बजट में किस वर्ग के लिए क्या है?
- मिडिल क्लास: इस बजट में मिडिल क्लास के लिए 7 लाख तक की आय पर कोई इनकम टैक्स नहीं देना होगा.
- गरीब तबका: गरीब कल्याण अन्न योजना में मुफ्त अनाज एक साल और दिया जाएगा.
- युवाओं के लिए: युवाओं को स्टार्टअप फंड दिया जाएगा, 3 साल तक भत्ता मिलेगा और इंटरनेशनल स्किल इंडिया सेंटर्स भी बनाए जाएंगे.
भारत की कितनी प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे आती है
साल 2022 के मानसून सत्र के दौरान वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया था कि भारत में लगभग एक दशक में गरीबी रेखा का कोई आकलन जारी नहीं किया गया है.
साल 2011-12 में आखिरी बार आकलन जारी हुआ था. जिसके अनुसार हमारे देश में 27 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों में आते हैं. यानी भारत की कुल आबादी का 21.9 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा से नीचे है. विश्व बैंक के मुताबिक रोजाना करीब 130 रुपए नहीं कमाने वाले लोग गरीबी रेखा के नीचे आते हैं.
इसी साल पीएम आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट में बताया गया कि देश की 5 प्रतिशत कामकाजी आबादी ₹ 5,000 (लगभग $ 64) प्रति माह से कम कमाती है. जबकि औसतन ₹ 25,000 प्रति माह कमाने वाले कुल वेतन वर्ग के शीर्ष 10 प्रतिशत में आते हैं, जो कुल आय का लगभग 30-35 फीसदी है.
विपक्ष का आरोप
पी चिदंबरम: पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा, 'वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में कहीं भी "बेरोजगारी, गरीबी, असमानता या समानता" शब्दों का उल्लेख नहीं किया. 'मुझे खेद है कि OTR (पुराना टैक्स सिस्टम) और NTR (नया टैक्स सिस्टम) के इस हो-हल्ला में एक विकासशील देश में व्यक्तिगत बचत के महत्व को भुला दिया गया है. अधिकांश लोगों के लिए राज्य द्वारा प्रदत्त सुरक्षा जाल के अभाव में, व्यक्तिगत बचत ही एकमात्र सामाजिक सुरक्षा है.'
उन्होंने एक और ट्वीट में कहा, 'Economic Times के अनुसार, पुरानी कर व्यवस्था 60 लाख रुपये के आय स्तर तक अधिक फायदेमंद है. अगर आप टैक्सपेयर हैं तो किसी निष्कर्ष पर पहुंचने में जल्दबाजी न करें. अपना गणित करो, चार्टर्ड अकाउंटेंट से सलाह लें.'
मल्लिकार्जुन खरगे: अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने यह बजट चुनावी राज्यों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है. उन्होंने आगे कहा कि इस बजट में गरीबों के लिए कुछ भी नहीं है. यहां तक की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए भी कुछ भी नहीं है. इसके अलावा ना नौकरी के लिए कोई कदम उठाया गया न ही सरकारी रिक्तियों और मनरेगा को भरने के लिए के लिए कुछ किया गया.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, 'इस बजट के किसी भी लाभ से गरीब वंचित रहेंगे, जबकि सिर्फ एक वर्ग के लोगों को लाभ मिलेगा. सीएम ने कहा, 'केंद्रीय बजट "पूरी तरह अवसरवादी" और "जनविरोधी" है.
शत्रुघ्न सिन्हा: वहीं टीएमसी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, 'संसद में पेश किए गए केंद्रीय बजट में "हम दो हमारे दो" पर एक बड़ा फोकस था और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए कुछ खास नहीं था. उन्होंने कहा कि इस बजट को आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए पेश किया गया है.'
सीएम अरविंद केजरीवाल: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'इस बजट में महंगाई से कोई राहत नहीं है. उल्टा इससे महंगाई बढ़ ही जाएगी. उन्होंने आगे कहा, 'बजट में बेरोजगारी दूर करने की कोई ठोस योजना नहीं है. शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट भी घटा दिया गया है.'
प्रवीण चक्रवर्ती: कांग्रेस के डाटा विश्लेषण विभाग के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में कहा, 'एक ऐसा प्रधानमंत्री और ऐसी सरकार जो सत्ता में है, अकेले ही बैटिंग कर खेल रही है. सत्ता में रहने के 8 साल बाद सरकार ही भारतीय अर्थव्यवस्था में अकेली खिलाड़ी है. यही बजट का असली सार है.'
बजट में मिडिल क्लास के लिए क्या?
इस बजट में मिडिल क्लास वर्ग को खुश करने के लिए इनकम टैक्स की लिमिट को बढ़ाकर 5 लाख से 7 लाख रुपये कर दिया गया है तो वहीं सीनियर सिटिज़न्स और महिलाओं के लिए बचत पर ब्याज दरें भी बढ़ाई गई है. लेकिन नई नौकरियों की बात ज्यादा नहीं हुई है.
प्रोफेसर आस्था अहूजा ने कहा फाइनेंस मिनिस्टर ने पूरे बजट के दौरान रोजगार या जॉब्स शब्द का इस्तेमाल केवल 4 बार किया. मतलब कि इस बजट में रोजगार पर बहुत जोर नहीं दिया गया. जबकि भारत की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है आने वाले समय में चीन को पीछे छोड़ देगी और तब यहां सबसे ज्यादा जरूरत रोजगार की ही होगी. लेकिन इस बजट में बेरोजगारी को लेकर ठोस कदम नहीं उठाया है.
हां ट्रेनिंग की बात जरूर की गई है लेकिन सरकार युवाओं को ट्रेंड तो कर देंगी, जॉब मिलने तक उनका परिवार कैसे चलेगा. इसपर भी कोई हल नहीं निकाला गया है.
प्रोफेसर आस्था ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि लैब में जो डायमंड बनाए जाते हैं, वो इनोवेशन और टेक्नोलॉजी ड्रिवेन सेक्टर हैं. हम कह रहे हैं कि भारत का कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ा है. इससे उद्योगों में तो काफी उत्साह रहता है और प्राइवेट सेक्टर में निवेश बढ़ेगा.
लेकिन बात ये है कि आप ऑटोमेशन यानी मशीनीकरण की तरफ जा रहे हैं. ऑटोमेशन से रोजमर्रा की या रूटीन जॉब को काफी नुकसान हो रहा है. रोजगार कम होगा तो आय कम होगी. आय के कम होने से उपभोक्ताओं की मांग भी कम होगी.' जाहिर है मांग और आपूर्ति के संतुलन बिगड़ना अर्थव्यवस्था को झटका देता है.
अमीरों के कैसे मिलेगा फायदा
बजट 2023 में सर्वोच्च टैक्स पर 37.5 फीसदी सरचार्ज को घटाकर 25 फीसदी कर दिया है और सबसे अमीर लोगों को टैक्स में 10 फीसदी की राहत दे दी है.