टूट गई ब्रिटिश काल से चली आ रही परंपरा, 'बजट' नहीं 'बही खाता' लेकर आईं निर्मला सीतारमण
ब्रिटिश काल से लेकर पीयूष गोयल तक सभी ने 'ब्रीफकेस' में बजट भाषण रखा था. लेकिन निर्मला सीतारमण 'बही खाता' लेकर सामने आई हैं.
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नई दिल्ली: वित्त मंंत्री निर्मला सीतारमण ब्रिटिश काल से चली आ रही परंपरा तोड़ते हुए 'बजट' की जगह 'बही खाता' पेश कर रही हैं. सीतारमण ब्रीफकेस की जगह लाल रंग के कपड़े में लिपटे दस्तावेज के साथ सामने आईं. ब्रिटिश काल से अब तक वित्त मंत्री 'ब्रीफकेस' में बजट भाषण की कॉपी रखते रहे हैं.
बही खाता के संबंध में मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यन ने कहा कि यह पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकलने का प्रतीक है. उन्होंने कहा, ''वित्त मंत्री ने लाल रंग के कपड़े में बजट दस्तावेज को रखा है. यह एक भारतीय परंपरा है. यह पश्चिमी विचारों की गुलामी से निकलने का प्रतीक है. यह बजट नहीं है, 'बही खाता' है.''
बजट नाम कैसे पड़ा?
1733 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री रॉबर्ट वॉलपोल 'बजट' पर लेदर बैग के साथ संसद आए थे. चमड़े के बैग को फ्रेंच भाषा में बुजेट कहा जाता है, इसलिए इस परंपरा को बजट कहा जाने लगा. बजट ब्रीफकेस का आकार तो लगभग एक जैसा ही रहा, लेकिन रंग में कई बार आया बदलाव है.
जेटली ने भी ब्रीफकेस का ही किया था इस्तेमाल
अंग्रेजों ने इस परंपरा को भारत में भी बढ़ाया जो आज भी जारी है. आजादी के बाद पहले वित्त मंत्री आरके शानमुखम चेट्टी ने 26 जनवरी 1947 को जब पहली बार बजट पेश किया तो लेदर बैग के साथ संसद पहुंचे थे.
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इतने सालों में इस बैग का आकार लगभग बराबर ही रहा. हालांकि, इसका रंग कई बार बदला है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 में परिवर्तनकारी बजट पेश किया तो वह काला बैग लेकर पहुंचे थे.
जवाहरलाल नेहरू, यशवंत सिन्हा भी काला बैग लेकर बजट पेश करने पहुंचे थे, जबकि प्रणब मुखर्जी लाल ब्रीफकेस के साथ पहुंचे थे. पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के हाथों में ब्राउन और रेड ब्रीफकेस दिखा था.
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