नई दिल्ली: भारत सरकार की तरफ से दो तरह के टैक्स वसूले जाते हैं. एक डायरेक्ट टैक्स और दूसरा इनडायरेक्ट टैक्स. इनडायरेक्ट टैक्स गुड्स और सर्विसेड पर लगाया जाता है जिसमें जीएसटी का हिस्सा सबसे बड़ा है. जबकि डायरेक्ट टैक्स आम अदमियों और संगठनों की आय और उनके मुनाफे पर लगाया जाता है. डायरेक्ट टैक्स का भुगतान सीधे सरकार के खजाने में जाता है.


बात करें डायरेक्ट टैक्स की तो किसी व्यक्ति या कंपनी की आय के आधार पर संघीय सरकार को आयकर यानी इनकम टैक्स के तौर पर भुगतान किया जाता है.


भारत में टैक्स पेयर्स कौन हैं?


भारत के अंदर हर व्यक्ति, कंपनी या व्यवसाय चलाने वाले आयकर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं. आयकर का दायरा यानी टैक्स स्लैब केंद्रीय बजट की तरफ से सालाना निर्धारित किया जाता है. वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए 2.5 लाख रुपये से ऊपर की कमाई करने वालों को आयकर का भुकतान करना पड़ता है.


1961 के आयकर अधिनियम के अनुसार, आयकर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों की सात श्रेणियां हैं:


1. एक व्यक्ति;
2. एक हिंदू अविभाजित परिवार (HUF);
3. एक कंपनी;
4. एक फर्म;
5. व्यक्तियों (एओपी) या व्यक्तियों के शरीर (बीओआई) का एक संघ;
6. एक स्थानीय प्राधिकारी, और;
7. प्रत्येक कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति जो पूर्ववर्ती श्रेणियों में से किसी में ताल्लुक नहीं रखता हो.


मोटे तौर पर देखें तो आयकर का सरकार को भुगतान करने वाले टैक्स पेयर्स ज्यादातर मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. मगर आश्चर्यचकित कर देने वाले फैक्ट्स यह हैं कि इस देश में करीब 2 करोड़ 10 लाख लोग आयकर भरते हैं. अभी तक 93.3% लोग अपनी कमाई 2.5 लाख से कम दिखाते थे. महज 6.6 लाख लोग ही ऐसे हैं जो 2.5 लाख से ज्यादा अपनी कमाई दिखा कर आयकर का भुकतान करते हैं. यानी कुल मिला कर 13 लाख 86 हजार लोग ही आयकर का भुगतान करते हैं.


यही 14 लाख लोग आयकर का भुकतान कर सरकार की छोली भरते हैं. जिनके बल पर सरकार अपनी योजनाएं चलाती है. मगर इन मध्यम वर्ग के लोगों को सरकार से हर साल उनकी बेहतरी के लिए उम्मीदें रहती हैं. मध्यम वर्ग हमेशा हर बजट के दौरान सरकार से आशा करते हैं कि टैक्स स्लैब को बढ़ा दिया जाए, ताकि उनकी जेब का भार थोड़ा कम हो सके. इस बार के बजट में लोगों को वित्तमंत्री के इस ऐलान से बड़ी राहत मिलने वाली है.