नई दिल्लीः देश की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान कई दशकों से गिरता जा रहा है. ऐसे में जब मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए ग्लोबल चैलेंज बढ़ते जा रहे हैं, अपर्याप्त घरेलू लागत और रेगुलेटरी बाधाओं को दूर करना जरूरी है वर्ना देश की मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री को दोबारा बूस्ट दे पाना बेहद मुशकिल हो जाएगा. इस बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को दोबारा रिवाइवल मोड में लाने की एक बड़ी चुनौती है और इसके लिए वो कितनी तैयार हैं ये उनकी बजट स्पीच से साफ हो जाएगा.


मुश्किल हालात की बानगी
देश में पिछले साल लगभग 10 लाख टन स्टील का आयात किया गया था और इसमें से 60 फीसदी स्टील चीन, जापान और कोरिया से ड्यूटी फ्री आया था. वहीं दूसरी तरफ भारतीय कंपनियों को 18 फीसदी जीएसटी, 30 फीसदी कॉर्पोरेट टैक्स और अच्छे खासे राज्य सरकार के टैक्स झेलने पड़ते हैं तो ऐसे हालात में मैन्यूफैक्चरिंग की तरक्की किस तरह हो सकती है.


इंपोर्ट पर मिलने वाली छूट को बढ़ाया जाए
जहां भारत में लॉजिस्टिक की लागत इसके अन्य प्रतिद्वंदी देशों की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा है वहीं सरकार इंपोर्ट की लागत का केवल 2 फीसदी भार वहन करती है और वो भी बेहद सीमित दायरे में. ये इंपोर्ट पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी के आधार पर होता है न कि राज्य और म्युनिसिपल टैक्स के आधार पर तय किया जाता है. इस दिशा में काम होना चाहिए और ये लागत कम की जानी चाहिए.


कंपनियों को बड़ी बनने के लिए प्रोत्साहन देना सरकार की जिम्मेदारी
देश की मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री में इस वजह से भी तेजी नहीं आ पा रही है क्योंकि कंपनियां छोटी ही बने रहने में अपना फायदा देखती हैं जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा टैक्स छूट हासिल हो सकें. भारत की बजाए चीन का उदाहरण देखें तो यहां जैसे ही एक निश्चित बिक्री के लक्ष्य पर कंपनियां पहुंच जाती हैं उनकी लागत ऑटोमैटिक तरीके से नीचे आ जाती है. इसी तरह यहां भी सरकार का ध्यान उत्पादन बढ़वाने पर होना चाहिए. यहां इसके उलट होता है और कंपनियों को छोटी ही बने रहने पर मिलने वाली सब्सिडी पर ज्यादा फोकस होता है जिसकी वजह से कंपनियां बड़ी नहीं हो पाती हैं.


स्पेशल इकनॉमिक जोन
एसईजेड वो चाबी है जिसके जरिए चीन ने विश्व में मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने का रास्ता खोला है. भारत में भी एसईजेड के लिए सरकार को कुछ तयशुदा टैक्स छूट देनी चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को बढ़ावा मिल सके.


मैन्यूफैक्चरिंग के लिए ठोस पॉलिसी बनाई जाए
सरकार को मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के लिए किसी बड़े रिफॉर्म की बजाए ऐसी ठोस पॉलिसी लानी चाहिए जिससे जीएसटी के प्रभावों से निपटने में इस इंडस्ट्री को सहारा मिल सके. इस समय ग्लोबल ट्रेड वॉर के चलते भारत के लिए अपने एक्सपोर्ट्स को बढ़ावा देने का सुनहरा मौका है लेकिन कंपनियों के पास इसके लिए जरूरी स्किल मौजूद नहीं हो पाने की वजह से हम इसका पूरा फायदा नहीं ले पा रहे हैं.


निचली ब्याज दरों का फायदा लेने के लिए मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को तैयार किया जाए
अब समय आ गया है कि बजट में पुरानी व्यवस्था को खत्म किया जाए और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को तैयार किया जाए कि वो निचली ब्याज दरों का फायदा लेने के लिए तैयार हो सके. बजट में टैक्स नेट को बढ़ाकर ब्याज दरों को कम किया जाना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा आंत्रप्रेन्योर इस मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की तरफ आकर्षित हो सकें और सरकार के पास आने वाला टैक्स कलेक्शन भी बढ़ सकेगा.


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