नई दिल्ली: पिछले काफी वक्त से लोकसभा के चुनाव मार्च-अप्रैल महीने में होते आ रहे हैं. इस वजह से अपने कार्यकाल के आखिरी साल में केंद्र सरकार पूर्णकालिक बजट पेश नहीं कर पाती है. हालांकि वर्तमान सरकार के लिए जरूरी होता है कि नई सरकार के आने तक वो सरकारी खर्चों को चलाने का पूरा इंतजाम करे. अब जबकि सरकार को नहीं पता होता कि पूरे साल शासन करने का मौका उसे मिलेगा या नहीं, इसलिए वो कुछ महीनों का बजट ही तैयार करती है. इस बजट को वोट ऑन अकाउंट या (अंतिरम बजट) कहा जाता है.
सरकार आम बजट को संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत संसद में पेश करती है. आम बजट में सरकार पूरे साल भर का वित्तीय लेखा-जोखा पेश करती है. जबकि अंतरिम बजट को अनुच्छेद 116 के तहत पेश किया जाता है. इसमें सरकार किसी भी तरह का कोई नया टैक्स नहीं लगाती है. बजट में सरकार कुछ महीने का खर्च चलाने के लिए विभागवार आवंटन कर की धनराशि की मांग संसद के सामने रखती है. इस बजट में सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं लेती है.
भारत के संविधान में अंतरिम बजट का कोई जिक्र नहीं है. सरकार चाहे तो साल में दो बार भी बजट पेश कर सकती है. आजाद भारत में पहली बार अंतिरम बजट मोरारजी देसाई ने साल 1962-63 में सरकार के सामने रखा था. इसी तरह साल 1991 में वी पी सिंह की सरकार गिर जाने के बाद यशवंत सिन्हा ने अंतिरम बजट पेश किया था.
बजट क्या होता है
बजट में सरकार के साल भर के आय और व्यय का लेखा जोखा होता है. जिसमें सरकार अपने साल भर के खर्च और आय के बारे में संसद को बताती है. सरकार के द्वार पेश किया गया कोई भी बिल 'बजट' है या नहीं इसका फैसला लोकसभा का स्पीकर करता है. बजट शब्द का जन्म लैटिन शब्द बुल्गा से हुआ है. इसका मतलब चमड़े का थैला होता है. भारत में पहला बजट 7 अप्रैल 1860 को ब्रिटिश सरकार के वित्त मंत्री जेम्स विल्सन ने पेश किया. आजाद भारत का पहला बजट आर. के. षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पेश किया.
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