Union Budget 2023: केंद्रीय बजट 2023 में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देकर किसानों को इसके साथ जोड़ने के लिए बड़ी घोषणा हो सकती है. इन दिनों प्राकृतिक खेती पर केंद्र और राज्य सरकारों का भी काफी फोकस है. बजट में प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के लिए क्या कुछ खास रहने वाला है? इस सवाल पर कृषि मंत्रालय में प्राकृतिक खेती की सलाहकार डॉ. वंदना द्विवेदी ने एबीपी न्यूज़ से हुई बातचीत में बताया कि बजट 2023-23 (Union Budget 2023) में प्राकृतिक खेती के लिए कुछ खास रहेगा ही. पिछले कुछ समय से प्राकृतिक खेती एक बिना लागत वाली खेती के तौर पर उभर रही है. किसानों को इससे जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
किसानों की भी बेहतर आर्थिक और तकनीकी मदद की संभावना है, जो इस बार के बजट से पूरी हो सकती है. मेन फोकस इस बात पर रहेगा कि कैसे हर वर्ग का किसान प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपना सकें. इसके लिए प्राकृतिक खेती में इस्तेमाल होने वाले इनपुट की उपलब्धता सुनिश्चित करने की भी उम्मीद है. खासतौर पर छोटे किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के लिए इस बार के बजट में स्पेशल अनाउंसमेंट हो सकती है.
क्यों लाया गया प्राकृतिक खेती का कांसेप्ट?
देश में हरित क्रांति (Green revolution) को लाने में रसायनिक खेती का अहम रोल रहा. इससे कृषि उत्पादन 50 मिलियन टन से बढ़कर साल 2022 में 136मिलियन तक पहुंचा गया है, लेकिन रसायनिक खेती से कई परेशानियां भी सामने आईं. इसका बुरा असर पर्यावरण पर देखने को मिला है. हमारी जमीनें बंजर होती जा रही हैं. भूजल स्तर का भी कम होना एक बड़ा कारण है.
उस समय भारत की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा काफी अच्छी थी, जो रसायनों के संतुलित इस्तेमाल से कायम रह सकती थी, लेकिन कैमिकल के अंधाधुंध इस्तेमाल से प्रदूषण के साथ-साथ खेती की लागत भी बढ़ गई है. अब जमीन पर उर्वरक का इस्तेमाल किए बिना सही उत्पादन लेना मुश्किल हो गया है.
रसायनिक खेती की शुरुआत तो विज्ञान महत्व के लिए की गई थी, लेकिन अब लाइन से हटकर रसायनों का इस्तेमाल बढ़ गया है, जिसका बुरा असर खेती-किसानी के साथ-साथ कैमिकल से उपजे उत्पादों को खाने वाले लोगों पर भी पड़ रहा है. ऐसी गंभीर बीमारियों का जन्म हो रहा है, जिनकी पहचान और इलाज तक मुश्किल होता जा रहा है.
आसान भाषा में समझें तो कैमिकल फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड ने जनता के स्वास्थ्य के साथ-साथ खेती के भविष्य को भी खतरे में डाल दिया है. इस समस्या के समाधान के लिए ही प्राकृतिक खेती का कांसेप्ट किसानों के बीच लाया गया. ये मॉडल मिट्टी की सेहत के साथ-साथ लोगों की सेहत का भी ख्याल रखता है.
कैमिकल के बजाए प्राकृतिक विधियों से खेती करने पर बेहतर फसल उत्पादन मिलेगा, मिट्टी की सेहत दुरुस्त रहेगी, खेती का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा, प्राकृतिक उत्पादों से किसानों को अच्छी कमाई होगी ही, लोगों की सेहत भी दुरुस्त और निरोगी काया प्राप्त होगी.
ऑर्गेनिक खेती से कैसे अलग है प्राकृतिक खेती?
भारत सरकार ने पिछले कुछ सालों से जैविक खेती को प्रमोट किया है. इससे अच्छे परिणाम सामने आए हैं. खेत की मिट्टी की संरचना में सुधार हुआ है, पर्यावरण प्रदूषण कम हुआ है, ऑर्गेनिक उत्पादों की देश-विदेश में मांग बढ़ी है, जिससे किसानों को भी अच्छी आय हुई है.
ऑर्गेनिक फार्मिंग का मॉडल भी काफी सक्सेस फुल रहा है, लेकिन जैविक उत्पादन हासिल करने के लिए खेतों में बाहर से जैव उर्वरक, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक आदि कई इनपुट खरीदकर इस्तेमाल करना होता है. कई बार यह सभी चीजें सस्ती नहीं होतीं, जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है.
कृषि मंत्रालय में प्राकृतिक खेती की सलाहकार डॉ. वंदना द्विवेदी ने एबीपी न्यूज़ से हुई बातचीत में बताया कि जैविक खेती से भी किसानों को अच्छी कमाई हो रही है, सर्टिफाइड प्रोडक्ट को विदेश में निर्यात किया जा रहा है. कोरोना महामारी के समय भी लोगों का विश्वास जैविक उत्पादों में बढ़ा है.
ऑर्गेनिक फार्मिंग की लागत कैमिकल फार्मिंग से काफी कम है, लेकिन इतनी भी कम नहीं है कि सही मुनाफा मिल सके. इसी के विपरीत, प्राकृतिक खेती में बाहर से कोई इनपुट खरीद नहीं पड़ता. यह पूरा तरह से गाय आधारित खेती है.
गाय पालने वाले किसानों के लिए तो वरदान है,क्योंकि गाय के गोबर, गौमूत्र के साथ कुछ औषधीय पेड़ों की मदद से ही खाद, उर्वरक, कीटनाशक आदि तैयार किए जाते जाते हैं, जिसे किसान खुद भी बना सकते हैं. इसकी लागत न्यूनतम है ही, पर्यावरण और सेहत के लिहाज से भी बेहद फायदेमंद है.
कई रिसर्च से सामने आया है कि प्राकृतिक खेती करने से मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है और भूजल का स्तर भी बेहतर हो जाता है. इस तरह सिंचाई के लिए पानी की खपत ज्यादा नहीं होती. डॉ. वंदना द्विवेदी ने बताया कि कुछ साल तक प्राकृतिक खेती करते रहने पर पॉजिटिव रिजल्ट सामने आते हैं.
इसमें सही समय पर सही फसल लगाने पर फोकस होता है, जिसके लिए देसी बीजों का इस्तेमाल किया जाए तो खेती की लागत कम और उत्पादकता बढ़ सकती है. आज जो इलाके प्राकृतिक खेती से कवर हो रहे हैं, वहां की जैव विविधता में सकारात्मक बदलाव देखा गया है. इसमें किसान खुद भी रसायनों के संपर्क में नहीं आ पाते है, इसलिए इनकी सेहत भी बेहतर रहती है.
इसके प्रमोशन के लिए सरकार क्या कर रही है?
केंद्र सरकार ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Mission on Natural Farming) को पृथक योजना के तौर पर मंजूर किया है, जिसे इस साल बजट एक अच्छे बजट के साथ आधिकारिक तौर पर लागू करने की पूरी संभावना है.
एक सवाल के जवाब में डॉ. वंदना द्विवेदी ने बताया कि राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत 7.5 लाख हेक्टेयर में किसानों के 15,000 क्लस्टर्स बनाने की योजना है. उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती का कांसेप्ट तो पारंपरिक है, लेकिन इसमें कुछ नया करने के लिए चैंपियन फार्मर्स यानी प्रगतिशील-सफल किसानों को ट्रेनिंग दी जाएगी, जो बाकी किसानों को भी प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक करके हर तरह से प्रशिक्षित करेंगे. प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देने वाले किसानों को भी पेंमेंट दिया जाएगा.
देशभर के 425 कृषि विज्ञान केंद्रों को प्राकृतिक खेती के लिए चुना गया है, जो अपनी जमीन के साथ-साथ किसानों को भी प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित करेंगे. इसके लिए हर साल 8,500 डेमोनस्ट्रेशन ट्राइल किए जाएंगे. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो अभी तक 68,000 किसानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी चुकी है. कई राज्यों में नेचुरल फार्मिंग के लिए स्टेट मिशन भी है.
नमामि गंगे मिशन के तहत गंगा प्रहरी चुने गए हैं, जो मिलिट के प्रोडक्टस बनाकर ऑनलाइन बेच रहे हैं. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड में गंगा नदी किनारे करीब 1.5 लाख हेक्टेयर जमीन पर प्राकृतिक खेती को खासतौर पर प्रमोट किया जा रहा है. कृषि मंत्रालय के आकंड़ों की मानें तो आज 16 राज्यों के करीब 16.78 लाख किसान अपने आप ही प्राकृतिक खेती का महत्व समझकर इससे जुड़ चुके हैं.
किसानों को मिलेगा इंसेंटिव
जैविक खेती को अपनाने वाले किसानों को आर्थिक और तकनीकी मदद उपलब्ध करवाने के बाद अब प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार का नया प्लान तैयार है. कृषि मंत्रालय में प्राकृतिक खेती की सलाहकार डॉ. वंदना द्विवेदी ने एबीपी न्यूज़ से हुई बातचीत में बताया कि नेशनल मिशन फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग के चयनित किसानों को तीन साल के लिए 5,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान दिया जाएगा. जल्द प्राकृतिक खेती से उपजे उत्पादों के लिए सर्टिफिकेशन, ब्रांडिंग, वैल्यू एडिशन और मार्केटिंग को आसान बनाने के लिए सरकार अब 500 किसान उत्पादक संगठनों का भी गठन करने जा रही है. इससे किसानों को प्राकृतिक उपज से सही दाम मिलेंगे ही, बाजार में ग्राहकों की भी दिलचस्पी नेचुरल प्रोडक्ट्स में बढ़ेगी.
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