भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की बात एक दिन पहले आई आर्थिक समीक्षा में भी सामने आई है. पिछले कुछ साल से भारत सबसे तेज तरक्की करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है. हालांकि उसके बाद भी अर्थव्यवस्था के सामने कुछ चुनौतियां मौजूद हैं. आर्थिक समीक्षा में एक ऐसी ही चुनौती को हाईलाइट किया गया है. समीक्षा के अनुसार, तेज वृद्धि दर के बाद भी अर्थव्यवस्था निजी उपभोग के मोर्चे पर मात खा रही है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज पेश होने जा रहे बजट में इकोनॉमी के इस सबसे बड़े रोडब्लॉक को दूर करने के उपाय कर सकती हैं.


सिर्फ 4 फीसदी की दर से बढ़ा निजी उपभोग


सोमवार को आई आर्थिक समीक्षा के अनुसार, शुरुआती आंकड़ों में वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर शानदार 8.2 फीसदी रही है. 8 फीसदी से ज्यादा की आर्थिक वृद्धि दर किसी भी दूसरी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तुलना में शानदार है, लेकिन निजी उपभोग यानी प्राइवेट कंजम्पशन के मामले में धीमी दर चिंताजनक तस्वीर बना रही है. समीक्षा बताती है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान निजी उपभोग में सिर्फ 4 फीसदी की दर से तेजी आई.


अपने खर्च से ग्रोथ रेट को संभाल रही है सरकार


यह आंकड़ा इस लिहाज से चिंताजनक हो जाता है, क्योंकि निजी उपभोग में आम लोगों (हाउसहोल्ड) और कंपनियों (बिजनेस) के द्वारा किए जाने वाले खर्च शामिल होते हैं. समीक्षा की बात को ऐसे समझ सकते हैं कि भले ही देश की आर्थिक रफ्तार आठ फीसदी से ज्यादा रही है, लेकिन उसके बाद भी आम लोग और निजी कंपनियां कम खर्च कर रही हैं. यानी तेज आर्थिक वृद्धि दर को मुख्य रूप से सरकार का निवेश और सरकार का खर्च आगे बढ़ा रहा है. अभी भले ही सरकार का पूंजीगत व्यय प्राइवेट सेक्टर के खर्च की सुस्त रफ्तार की भरपाई कर पा रहा है, लेकिन यह लॉन्ग रन में अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.


इस तरह होता है अर्थव्यवस्था पर चक्रीय असर


प्राइवेट कंजम्पशन की रफ्तार सुस्त पड़ने का अर्थव्यवस्था पर चक्रीय असर होता है. इसे ऐसे समझ सकते हैं. अगर आम लोग कम चीजें खरीदेंगे तो उससे बाजार में डिमांड प्रभावित होगी. डिमांड के कम होने से कंपनियां/कारखाने उत्पादन कम करने पर मजबूर होंगे. अब अगर कंपनियों का काम कम होगा तो उनके पास लोगों/कामगारों की जरूरत कम होगी. यानी रोजगार के कम मौके तैयार होंगे या कंपनियां छंटनी करने पर मजबूर होंगी. इस तरह देखें तो प्राइवेट कंजम्पशन की सुस्ती का असर सरकार की कमाई पर होगा. सरकार की कमाई का सबसे प्रमुख जरिया प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर से होने वाला संग्रह है.


लोगों के हाथों में ज्यादा पैसे पहुंचाने की जरूरत


इस कमी को दुरुस्त करने का उपाय है कि लोगों को और कंपनियों को खर्च बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. अर्थशास्त्री हमेशा इस बात की वकालत करते रहे हैं कि अगर लोगों के हाथों में खर्च करने योग्य आमदनी (डिस्पोजेबल इनकम) ज्यादा होगी, तब उपभोग खुद बढ़ेगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज पेश होने जा रहे बजट में लोगों के हाथों में ज्यादा पैसे बचे रहने देने के उपाय कर इस दिशा में काम कर सकती हैं. इसके लिए इंडिविजुअल इनकम टैक्स में कटौती की जा सकती है. यही कारण है कि बजट से लोग टैक्स स्लैब व रेट में बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं. लोगों को इनकम टैक्स पर कटौतियों व डिडक्शंस का अधिक फायदा देकर भी उपभोग बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.


इस तरह बढ़ सकता है कंपनियों का निवेश


कंपनियों के मामले में सरकार निवेश बढ़ाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित कर सकती है. पिछले कुछ सालों में सरकार ने कई सेक्टर में उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई स्कीम) की शुरुआत की है. इसके दायरे को बढ़ाया जा सकता है, जिससे अधिक सेक्टर की कंपनियां भारत में विनिर्माण करने पर ध्यान लगाएंगी. सरकार विदेशी कंपनियों से ज्यादा निवेश आकर्षित करने के भी उपाय कर सकती हैं. कॉरपोरेट टैक्स की दर कम किए जाने के बाद भी प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में ज्यादा हैं. वित्त मंत्री इस बात पर भी ध्यान दे सकती हैं.


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