प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के अब तक के कार्यकाल में देश के ऊपर बाहरी कर्ज का दबाव कम हुआ है. ताजे आंकड़ों में इसका पता चल रहा है. सरकार के द्वारा बताए गए आंकड़ों के अनुसार, अब देश के ऊपर बाहरी कर्ज का अनुपात जीडीपी की तुलना में 3 फीसदी से कम हो गया है.


लोकसभा में कर्ज पर उठे सवाल


वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने बताया कि लोकसभा में सोमवार को देश के ऊपर कर्ज की स्थिति के बारे में सवाल पूछे गए थे. कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सरकार से पूछा था कि क्या पिछले 10 सालों में भारत के ऊपर आंतरिक और विदेशी कर्ज बढ़ गया है? साथ ही उन्होंने डिटेल की भी मांग की थी.


बीते 10 साल में इतना कम हुआ बाहरी कर्ज


केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने उनके सवालों का जवाब देते हुए बताया कि बीते 10 सालों के दौरान देश के ऊपर बाहरी कर्ज के दबाव में सुधार आया है. उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2013-14 में भारत के ऊपर बाहरी कर्ज जीडीपी के 3.3 फीसदी के बराबर था. अब यह आंकड़ा कम होकर 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद के 2.7 फीसदी के बराबर रह गया है.


रिजर्व बैंक के आधिकारिक आंकड़े


इससे पहले पिछले महीने रिजर्व बैंक ने आधिकारिक आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि देश के ऊपर बाहरी कर्ज बढ़कर 663.8 बिलियन डॉलर हो गया है. यह मार्च 2023 के स्तर की तुलना में 39.7 बिलियन डॉलर ज्यादा है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश के ऊपर जो बाहरी कर्ज है, उसमें सबसे ज्यादा 33.4 फीसदी हिस्सा लोन का है. उसके अलावा 23.3 फीसदी हिस्सा करेंसी एंड डिपॉजिट, 17.9 फीसदी हिस्सा ट्रेड क्रेडिट एंड एडवांस और 17.3 फीसदी हिस्सा डेट सिक्योरिटीज का है.


आईएमएफ ने जारी की थी ये रिपोर्ट


इससे पहले देश के ऊपर कर्ज का मामला उस समय सुर्खियों में आया था, जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी भरी रिपोर्ट जारी की थी. आईएमएफ ने पिछले साल के अंत में जारी एक रिपोर्ट में आशंका जताई थी कि मध्यम अवधि में भारत के ऊपर ओवरऑल कर्ज जीडीपी के 100 फीसदी के पार निकलने का खतरा मंडरा रहा है. हालांकि भारत सरकार ने आईएमएफ की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.


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