प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बीते 10 सालों के कार्यकाल में बाहरी कर्ज का दबाव भले ही कम हुआ हो, लेकिन आंतरिक कर्ज का बोझ बढ़ गया है. पिछले 10 साल के दौरान देश का आंतरिक कर्ज इतना बढ़ा है कि आंकड़ा अब जीडीपी के 55 फीसदी के भी पार निकल गया है.


अब इतना हो गया देश का आंतरिक कर्ज


केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने सोमवार को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में देश के ऊपर कर्ज के आंकड़ों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि देश के ऊपर आंतरिक कर्ज के आंकड़े में बीते 10 साल के दौरान तेजी आई है और अब यह जीडीपी के 55 फीसदी से ज्यादा हो गया है. आंकड़ों के अनुसार, देश के ऊपर 2013-14 में जीडीपी के 48.8 फीसदी के बराबर आंतरिक कर्ज था. अब यह आंकड़ा बढ़कर 2023-24 में जीडीपी के 55.5 फीसदी के बराबर पर पहुंच गया है.


लोकसभा में पूछे गए थे कर्ज पर सवाल


मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने देश के ऊपर कर्ज की स्थिति के बारे में लोकसभा में सवाल उठाया था. उन्होंने पूछा था कि बीते 10 सालों में भारत का आंतरिक और बाहरी कर्ज कितना बढ़ा है. उन्होंने उसके साथ ही सरकार से ये भी जानना चाहा था कि सरकार ने कर्ज में लिए गए पैसों को कहां खर्च किया है.


कोविड-19 के चलते बढ़ा आंतरिक कर्ज


वित्त राज्य मंत्री ने जवाब में आगे बताया कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में केंद्र सरकार के आंतरिक कर्ज में जो तेजी आई है, उसके लिए मुख्य रूप से कोविड-19 महामारी जिम्मेदार है. सरकार के अनुसार, कोविड-19 महामारी के चलते आंतरिक कर्ज 2020-21 में बढ़कर जीडीपी के 58.3 फीसदी के बराबर पर पहुंच गया था, जो महामारी शुरू होने से पहले 2018-19 में जीडीपी के 46.4 फीसदी के बराबर था.


महामारी के बाद सरकार ने लाई इतनी कमी


सरकार का कहना है कि फिस्कल कॉन्सोलिडेशन पर जोर देने से कर्ज के मोर्चे पर तेजी से सुधार आया है. 2020-21 में जो आंकड़ा जीडीपी के 58.3 फीसदी के बराबर पर पहुंच गया था, वह कम होकर बीते वित्त वर्ष में जीडीपी के 55.5 फीसदी के बराबर रह गया. सरकार ने कहा कि उसने कोविड के बाद के सालों में कर्ज को तेजी से कम किया है. खर्च के बारे में सरकार ने कहा कि कर्ज से जुटाए गए संसाधनों का मुख्य रूप से विकास, समाज कल्याण आदि मदों में इस्तेमाल किया गया.


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