CBDT ONDC Guidelines: ओएनडीसी के विक्रेताओं पर इस तरह से बनेगी इनकम टैक्स की देनदारी, सीबीडीटी ने जारी किया सर्कुलर
ONDC Income Tax Rules: सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सेज ने ओएनडीसी पर बिक्री कर रहे ई-कॉमर्स सेलर्स से टीडीएस की कटौती पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए सर्कुलर जारी किया...
ओएनडीसी यानी ओपन नेटवर्क डिजिटल कॉमर्स पर विक्रेताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है. ई-कॉमर्स के यूपीआई की तरह पेश किए ओएनडीसी को धीरे-धीरे लोक्रपियता मिलने लगी है. इस बीच टैक्स डिपार्टमेंट ने ओएनडीसी पर बिक्री कर रहे ई-कॉमर्स सेलर्स से टीडीएस की कटौती पर स्थितियां स्पष्ट कर दी है.
1 फीसदी की दर से टीडीएस
इसके लिए सीबीडीटी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सेज ने गुरुवार को नया सर्कुलर जारी किया. सर्कुलर में सीबीडीटी ने बताया कि ई-कॉमर्स बिक्री पर 1 फीसदी की टीडीएस कटौती बिक्री के टोटल अमाउंट पर लागू होगी, जिसमें ओएनडीसी पर माल व सेवाओं की पेशकश के साथ विभिन्न ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा वसूल किए जाने वाले चार्जेज व फीस भी शामिल हैं.
इस कारण आया सीबीडीटी का सर्कुलर
भारत सरकार ओएनडीसी को बढ़ावा दे रही है. ओएनडीसी को पहली बार 2020 में पेश किया गया था. इसका उद्देश्य ई-कॉमर्स सेक्टर में उसी तरह से बदलाव लाना है, जैसा बदलाव यूपीआई ने डिजिटल ट्रांजेक्शन के मामले में किया है. अब ओएनडीसी का नेटवर्क बढ़ने लगा है. ओएनडीसी पर कई ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म लिस्ट हो चुके हैं. ऐसे में अब सीबीडीटी ने टैक्स की कटौती और टैक्स की देनदारी को लेकर सर्कुलर जारी कर स्थितियां साफ करने का प्रयास किया है.
हर तरह के शुल्क पर टीडीएस
सीबीडीटी के गाइडलाइंस के अनुसार, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सेलर व बायर दोनों साइड में कई तरह के शुल्क वसूल करते हैं, जिनमें पैकेजिंग चार्ज, शिपिंग चार्ज और उनके अलावा सुविधा शुल्क आदि शामिल है. सीबीडीटी के अनुसार, इस तरह के सभी शुल्कों पर टीडीएस की कटौती लागू होगी. सेलर साइड के ई-कॉमर्स ऑपरेटर के द्वारा पेमेंट या क्रेडिट के समय टीडीएस की कटौती की जाएगी. उन्हें टीडीएस रिटर्न भी फाइल करना होगा और वे सेलर को सर्टिफिकेट जारी करेंगे.
रिटर्न-रिप्लेस के मामले में टीडीएस
सीबीडीटी ने गाइडलाइंस में यह भी बताया है कि अगर किसी खरीदारी को रिटर्न किया जाता है, तब टैक्स की कटौती किस तरह से होगी. सीबीडीटी का कहना है कि बिक्री के समय टीडीस की कटौती हमेशा की तरह निश्चित तौर पर होगी. हालांकि अगर रिटर्न की स्थिति बनती है तो डिडक्टेड टैक्स को उसी वित्त वर्ष के दौरान दूसरे ट्रांजेक्शन में एडजस्ट किया जा सकता है. रिप्लेस की स्थिति में एडजस्टमेंट की जरूरत नहीं होगी.
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