माल एवं सेवा कर यानी जीएसटी भारत के लिए अभी बहुत पुरानी व्यवस्था नहीं है. एक महीने बाद जीएसटी को लागू हुए छह साल पूरे हो जाएंगे. इन छह सालों में जीएसटी की व्यवस्था सुदृढ़ और परिपक्व होने लग गई है. इसने न सिर्फ सरकार की टैक्स से कमाई बढ़ाई है, बल्कि इससे सरकार को एक साथ कई निशाने को साधने में मदद मिली है. हम आंकड़ों की मदद से इसे स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं...


मई में इतना बढ़ा जीएसटी का संग्रह


सबसे पहले ताजे आंकड़ों की बात. एक दिन पहले ही यानी 1 जून 2023 को वित्त मंत्रालय ने जीएसटी संग्रह के ताजा आंकड़ों की जानकारी दी है. वित्त मंत्रालय ने बताया है कि मई 2023 के महीने में जीएसटी से सरकार को 1.57 लाख करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ. सरकारी खजाने को मई 2023 के दौरान हुई यह कमाई साल भर पहले यानी मई 2022 की तुलना में 12 फीसदी ज्यादा है. इससे पता चलता है कि साल दर साल जीएसटी से सरकारी खजाने को पहले की तुलना में ज्यादा पैसे मिल रहे हैं.


अप्रैल में जीएसटी ने बनाया था रिकॉर्ड


मई से ऐन पहले यानी अप्रैल महीने के दौरान जीएसटी ने अपना अब तक का सबसे शानदार रिकॉर्ड बनाया था. अप्रैल महीने के दौरान सरकार को जीएसटी से 1.87 लाख करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. यह किसी एक महीने के दौरान अप्रत्यक्ष करों से सरकार को हुई सबसे ज्यादा कमाई है. जीएसटी संग्रह के और आंकड़ों को देखने से बात ज्यादा स्पष्ट होती है. अमल में आने के बाद से अब तक 5 बार ऐसे मौके आए हैं, जब जीएसटी से मिला राजस्व 1.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रहा है. इतना ही नहीं बल्कि मई लगातार 14वां ऐसा महीना रहा, जब सरकार ने जीएसटी से 1.4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राजस्व जुटाने में सफलता प्राप्त की.


हर महीने जीएसटी से कमाई ताबड़तोड़


पिछले वित्त वर्ष के दौरान हर महीने सरकार को जीएसटी से 1.40 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मिले हैं. चालू वित्त वर्ष यानी 2023-24 के लिए अभी दो महीने अप्रैल और मई 2023 के आंकड़े सामने आए हैं. दोनों ही महीने के दौरान जीएसटी कलेक्शन साल भर पहले के समान महीने की तुलना में ज्यादा रहा है. इससे पहले मार्च 2023 के महीने में जीएसटी कलेक्शन साल भर पहले की तुलना में 13 फीसदी बढ़कर 1.60 लाख करोड़ रुपये रहा था. यह बताता है कि जीएसटी से कलेक्शन में लगातार सुधार हो रहा है. इसे वित्त मंत्रालय के इस ग्राफिक्स से और अच्छे से समझ सकते हैं...




इन करों की जगह पर सिर्फ एक जीएसटी


जीएसटी के लागू होने से पहले भारत में अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के नाम पर कई प्रकार के टैक्स प्रचलन में थे, जिनमें सबसे प्रमुख था वैट यानी मूल्यवर्धित कर. इसके अलावा सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी, सेंट्रल सरचार्जेज एंड सेस जैसे केंद्रीय करों और वैल्यू ऐडेड टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, ऑक्ट्राइ एंड एंट्री टैक्स, पर्चेज टैक्स, लग्जरी टैक्स, एंटरटेनमेंट टैक्स जैसे राज्य करों को भी जीएसटी में मिला दिया गया है. जीएसटी के आने से सबसे बड़ा बदलाव यही हुआ है. लगभग 30 करों की जगह एक अकेली कर व्यवस्था, जिसका मतलब हुआ कि करदाताओं के लिए माथापच्ची कम हो गई.


सरल होने से बढ़ गया अनुपालन


जीएसटी को जब भारत में लागू किया जा रहा था, तब इस पर कई सवाल उठाए जा रहे थे. हालांकि अब पिछले साल-डेढ़ साल से जीएसटी ने जो आंकड़े दिए हैं, वे तमाम सवालों का जवाब खुद दे देते हैं. जीएसटी ने जो चीज सबसे आसान की है, वो है अनुपालन. अर्थतंत्र ही नहीं बल्कि किसी भी व्यवस्था के लिए यह एक स्थापित तथ्य है कि अगर नियम-कानून सरल होंगे, तो लोग उनका पालन बेहतर करेंगे. जीएसटी ने भी यह बात साबित की है. व्यवस्था सरल होने से टैक्स का नेट यानी दायरा बढ़ा है, जिससे अंतत: सरकार की कमाई बढ़ी है. जैसे-जैसे रेवेन्यू के मोर्चे पर जीएसटी का प्रदर्शन संतुलित और स्थिर होता जा रहा है, इसे पहले से ज्यादा सरल बनाने का रास्ता खुद खुलता जा रहा है.


सरकार को मिली घाटा कम करने में मदद


अब जीएसटी से सरकार को किस तरह से मदद मिल रही है, उसके लिए भी कुछ आंकड़े देख लेते हैं. बुधवार 31 मई को कई अहम आर्थिक आंकड़े जारी किए गए. उस दिन सीजीए ने सरकार के राजकोषीय घाटे की स्थिति की जानकारी दी. सीजीए के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भारत का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.4 फीसदी के बराबर रहा. वित्त मंत्रालय के संशोधित अनुमान में भी राजकोषीय घाटा इतना ही रहने का लक्ष्य रखा गया था. इससे साफ पता चलता है कि सरकार की कमाई तेजी से बढ़ी है और सरकार को मिलने वाले कुल राजस्व में 50 फीसदी से ज्यादा योगदान अप्रत्यक्ष करों यानी जीएसटी का होता है. 2022-23 में सरकार के कुल राजस्व में अप्रत्यक्ष करों का योगदान करीब 55 फीसदी रहा था.


हाथ खोल कर खर्च करने की आजादी


कुल राजस्व में जीएसटी के योगदान का यह आंकड़ा इस कारण अहम हो जाता है, क्योंकि मौजूदा सरकार ने देश की आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने के लिए बुनियादी संरचनाओं पर खासा जोर दिया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने फरवरी में बजट पेश करते हुए बुनियादी संरचनाओं के लिए 10 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया था, जो जीडीपी के 3.3 फीसदी के बराबर है. यह बुनियादी संरचना क्षेत्र के लिए बजट में 2019 की तुलना में 3 गुणा की भारी-भरकम वृद्धि है. सरकार का मानना है कि बुनियादी संरचना पर खर्च करने से अर्थव्यवस्था पर मल्टीप्लायर इफेक्ट पड़ता है, यानी यह कई अन्य क्षेत्रों को भी आगे बढ़ाता है. जीडीपी के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं.




जीडीपी के ये आंकड़े भी हैं गवाह


बुधवार 31 मई को ही सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि के आंकड़े जारी किए. भारतीय अर्थव्यवस्था ने मार्च तिमाही के दौरान तमाम उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया और 6.1 फीसदी की दर से वृद्धि की. वहीं पूरे वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7 फीसदी के पार निकल गई और 7.2 फीसदी रही. यह किसी भी प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था की तुलना में सबसे शानदार आर्थिक वृद्धि दर है. ये शानदार आंकड़े ऐसे समय आए हैं, जब पूरी दुनिया चुनौतियों से जूझ रही है. जर्मनी में मंदी आ चुकी है. अमेरिका में अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ रही है और चीन में कारखानों की गतिविधियों में गिरावट दर्ज की जा रही है. निश्चित ही जीएसटी ने अपने अस्तित्व के इन छह सालों में सरकार को एक साथ कई निशाने साधने में मदद की है और आने वाले सालों में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में इसका बड़ा योगदान रहने वाला है.


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