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CEO बनाम एंप्लाई! इन भारतीय कंपनियों के CEO अपने कर्मचारियों से 1000 गुना तक ज्यादा ले रहे सैलरी

CEO Salary VS Employee Salary: आईटी कंपनियों का पे रेश्यो डेटा बताता है कि ऊपरी पदों पर बैठे अधिकारी बेतहाशा ऊंची सैलरी पा रहे हैं जबकि बेसिक या आम एंप्लाई इसके आगे नहीं ठहरता है.

CEO Salary VS Employee Salary: देश के निजी बैंक या प्राइवेट कंपनियों के मालिक या चीफ एग्जीक्यूटिव अधिकारी (CEO) काफी विशाल सैलरी पैकेज हासिल कर रहे हैं और ये कोई नई बात नहीं है. इस खबर के जरिए जिस बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं वो ये है कि समान सेक्टर की सेम कंपनी में एक सामान्य या बेसिक कर्मचारी जितनी सैलरी हासिल कर रहा है, उसके मुकाबले कंपनी के मालिक या शीर्ष अधिकारी हजारों गुना से ज्यादा वेतनमान या आमदनी हासिल कर रहे हैं. ऐसा देश के आईटी सेक्टर में हो रहा है. 

देश के टॉप आईटी कंपनियों के CEO अपने कर्मचारियों से 1000 गुना ज्यादा तक सैलरी उठा रहे

एक आईटी कंपनी अपने सामान्य या बेस कर्मचारी या फ्रेशर/ट्रेनी को जितनी सैलरी देती हैं उसके सामने अपने CEOs को 200, 300, 400, 500, 600, 700 यहां तक कि 1000 गुना तक ज्यादा सैलरी दे रही हैं. इस कड़ी में इंफोसिस, कॉग्निजेंट, विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, एक्सेंचर ही नहीं टाटा समूह की आईटी दिग्गज टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी TCS भी शामिल है. 

इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति CEOs और एंप्लाई की सैलरी के विशाल अंतर के खिलाफ

भारत की नंबर वन आईटी कंपनी रही इंफोसिस के फाउंडर एन नारायणमूर्ति पहले ही कह चुके हैं कि किसी कंपनी के सीईओ का फेयर पैकेज या CEO remuneration उसके बेसिक एंप्लाई या सबसे निचले लेवल एंप्लाई से 25-40 गुना से ज्यादा नहीं होना चाहिए. हालांकि विडंबना ये है कि उनकी खुद की बनाई कंपनी यानी इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख का सैलरी स्ट्रक्चर या सालाना आमदनी बेस एंप्लाई से 700 गुना से भी ज्यादा है. एंप्लाई-सीईओ की सैलरी का अंतर साल 2019 से लगातार बढ़ ही रहा है और इसको लेकर नारायणमूर्ति क्या कोई कदम उठा सकते हैं, इसकी जानकारी नहीं है.

सैलरी के अंतर में नंबर वन पर विप्रो के CEO

साल 2023-24 में आईटी कंपनी विप्रो के पूर्व सीईओ थिएरी डेलापोर्ट का सालाना पैकेज या आमदनी 20 मिलियन डॉलर था. साल 2023-24 में विप्रो कंपनी के औसत कर्मचारी की सैलरी से थिएरी डेलापोर्ट की सैलरी 1702 गुना ज्यादा रही. इसे भारतीय रुपये में देखें तो विप्रो के बेसिक एंप्लाइज की औसत सैलरी इस दौरान 9.8 लाख रुपये रही. हालांकि थिएरी डेलापोर्ट विप्रो से इस्तीफा दे चुके हैं और विप्रो के पूर्व सीईओ थिएरी डेलपोर्ट के जाने के बाद नए सीईओ श्रीनि पलिया को विप्रो कंपनी ने कुल मिलाकर सालाना 4.5 मिलियन डॉलर से लेकर 7 मिलियन डॉलर यानी 70 लाख डॉलर देने का ऐलान किया है. भारतीय रुपये में ये करीब 58.5 करोड़ रुपये होते हैं. 

HCL टेक्नोलॉजीज के सीईओ ने एक साल में हासिल की 707 गुना ज्यादा सैलरी

सिर्फ एक साल में HCL सीईओ सी विजयकुमार और कर्मचारी के बीच की सैलरी का अंतर 707 गुना बढ़ गया है जो पहले 253:1 का रेश्यो या अनुपात था. एचसीएल के सी विजयकुमार ने वित्त वर्ष 2023-24 में 84.16 करोड़ रुपये हासिल किए. ये सैलरी एचसीएल के सीईओ के तौर पर सालाना 190.75 फीसदी की बढ़ोतरी रही जो कंपनी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक बताया जा चुका है.

Accenture की CEO ने कमाई 633 गुना ज्यादा सैलरी

एक्सेंचर की चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर जूली स्वीट का सैलरी पैकेज कंपनी के बेसिक एंप्लाई की सैलरी से 633 गुना ज्यादा यानी 31.5 मिलियन डॉलर रहा. वित्त वर्ष 2022-23 में कंपनी के बेसिक एंप्लाई की सैलरी 49,842 डॉलर रही. हैरानी की बात ये है कि ये साल 2019 के बेस एंप्लाई की औसत सैलरी 50,512 डॉलर से भी कम थी. 

TCS में भी सीईओ-एंप्लाई की सैलरी का अंतर बड़ा

टीसीएस के पूर्व सीईओ राजेश गोपीनाथन और मौजूदा सीईओ के कीर्तिवासन ने वित्त वर्ष 2022-23 में अपने बेस कर्मचारी की औसत सैलरी से 427 गुना ज्यादा सैलरी हासिल की है. कंपनी कैलेंडर ईयर का पालन करती है तो 2024 का आंकड़ा अभी नहीं आया है.

इंफोसिस के CEO सलिल पारेख को मिली 677 गुना ज्यादा रकम

वित्त वर्ष 2023-24 में आईटी कंपनी इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख को 66 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. ये इस साल के बेस एंप्लाई की सैलरी से 677 गुना अधिक है.


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IBM इकलौती कंपनी है जो कुछ अलग दिख रही

दिग्गज आईटी कंपनियों में से आईबीएम के सीईओ ने पिछले पांच सालों में अपने सीईओ और कर्मचारी की सैलरी के अंतर को पाटने की कोशिश की है. वित्त वर्ष 2024 में 312 गुना अंतर रहा जबकि साल 2019 में ये 319 गुना था. वित्त वर्ष 2022 में तो ये सैलरी डिस्पैरिटी केवल 271 गुना पर थी जो इसकी समकक्ष आईटी फर्म के मुकाबले सबसे कम है. (डेटा सोर्स- TOI)

क्यों है एंप्लाई और सीईओ की सैलरी के बीच पहाड़ जैसा फासला

खासतौर पर सीईओ को कंपनी के स्टॉक ग्रांट के तौर पर जो मेहनताना मिलता है, वो एक बड़ी वजह है क्योंकि आम एंप्लाई को कंपनी के शेयर या तो मिलते नहीं हैं या बेहद कम संख्या में मिलते हैं. आईटी सेक्टर में एंट्री लेवल एंप्लाइज का पे कॉम्पनसेशन बीते कई सालों से बढ़ा नहीं है जबकि सीईओ या टॉप अधिकारियों का पे कॉम्पनसेशन लगातार बढ़ता रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि शेयरहोल्डर्स ने सीईओ पैकेज को वेरिएबल या परफॉरमेंस मैट्रिक्स से जोड़ा हुआ है जो कंपनी की ग्रोथ के साथ ऑटोमैटिक रूप से बढ़ जाता है जबकि एंप्लाई को फिक्स्ड सैलरी फॉरमेट पर सैलरी दी जाती है. 

2014 में केंद्र सरकार ने पे रेश्यो खुलासा करना अनिवार्य किया 

मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स ने साल 2014 से ये पे रेश्यो या आमदनी अनुपात बताना अनिवार्य किया था जिसके तहत आम एंप्लाई और शीर्ष अधिकारी के बीच सैलरी का अंतर कितना है ये खुलासा करना होता है. आईटी कंपनियां तो इस नियम का पालन कर रही हैं और देश के सामने 6 सालों (2019-2024) का डेटा मौजूद है. भारत और अमेरिका की तुलना करें तो वहां भी कंपनियां पे रेश्यो का खुलासा करती हैं. यूएस में लेबर यूनियनें या अन्य संगठन इस डेटा का इस्तेमाल करते हैं जिससे सैलरी को लेकर नेगोसिएशन या बारगेनिंग की जा सके. हालांकि भारत में अभी इस डेटा को उपयोगी नहीं माना जा सका है और ना ही इसको कहीं इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि इस डेटा को देखने से सवाल उठ सकते हैं कि कर्मचारी जो ग्रास रूट या बेस लेवल पर काम कर रहा है उसकी तुलना में आईटी कंपनियों के शीर्ष अधिकारी इतनी ज्यादा आमदनी किस आधार पर हासिल कर रहे हैं, वो भी तब जब आईटी सेक्टर में मंदी का हवाला देकर गाहे-बगाहे छंटनी का फरमान सुना दिया जाता है.

भारत में सरकारी नौकरी और निजी नौकरी के बीच की बहस में तर्क दिया जाता है कि निजी नौकरी में स्थायित्व या ठहराव भले ही ना मिले, यहां भरपूर सैलरी या कमाई मिलती है. हालांकि आईटी कंपनियों में ग्लोबल मंदी की आशंका या आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस के असर से लेऑफ या छंटनी करना मजबूरी है, ऐसे तर्क देकर पिछले साल से छंटनी की तलवार बार-बार चलाई जा रही है. वहीं दूसरी ओर पे रेश्यो डेटा बताता है कि इनमें ऊपरी पदों पर बैठे अधिकारी ऐसी ऊंची सैलरी पा रहे हैं जबकि आम एंप्लाई इस सिस्टम का शिकार होकर बमुश्किल आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहा है. 

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