हालिया सालों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) की क्षमता में तेजी से सुधार आया है. इस कारण लंबे समय से बहस चल रही है कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के चलते लाखों-करोड़ों लोगों को बेराजगार होना पड़ जाएगा... माइक्रोसॉफ्ट के जेनरेटिव एआई चैटजीपीटी (ChatGPT) ने तो इस विमर्श को और तेज कर दिया है. पिछले कुछ समय से यह एआई लगातार सुर्खियां बटोर रहा है. हालांकि टॉप इंडियन आईटी कंपनी टीसीएस (TCS) को नहीं लगता कि इससे लोगों की नौकरी पर कोई खास खतरा है.


बिजनेस मॉडल में नहीं होगा बदलाव


टीसीएस का मानना है कि चैटजीपीटी जैसे जेनरेटिव एआई लोगों की नौकरियां खाने के बजाय सहकर्मी की तरह काम करेंगे. कंपनी के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी मिलिंद लक्कड़ (Milind Lakkad) इस बारे में न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात कर रहे थे. उन्होंने कहा कि ऐसे टूल्स उत्पादकता बढ़ाने में मददगार साबित होंगे, लेकिन इनसे कंपनियों के बिजनेस मॉडल में बदलाव नहीं आएगा.


को-वर्कर की तरह करेंगे काम


टीसीएस के सीएचआरओ (TCS CHRO) ने कहा, जेनरेटिव एआई को-वर्कर की तरह होंगे. इन्हें ग्राहकों का संदर्भ समझने में भी समय लगेगा. इनके कारण जॉब रिल्पेस नहीं होंगे. ऐसा हो सकता है कि नौकरी की परिभाषा बदल जाए. किसी काम को निष्पादित करना उद्योग और ग्राहकों पर केंद्रित ही रहेगा. ऐसे कामों को करने में एआई जैसे को-वर्कर इंसानों की मदद भले कर सकते हैं.


इस कारण नौकरियों को खतरा


दरअसल चैटजीपीटी जैसे एआई प्लेटफॉर्म चुटकियों में प्रोग्रामिंग के ऐसे कई काम कर दे रहे हैं, जिन्हें करने में औसत लोगों को कई घंटे या दिन लग जाते हैं. इस कारण आशंका बढ़ी है कि कहीं ये एआई लाखों लोगों की नौकरियां न खा जाएं. अभी टेक व आईटी कंपनियों में हो रही भारी छंटनी के पीछे भी इन एआई प्लेटफॉर्म्स को जिम्मेदार बताया जा रहा है.


इंडस्ट्री पर निर्भर होगा दखल


हालांकि लक्कड़ की बातें इन आशंकाओं को निर्मूल साबित करती हैं. उनका मानना है कि कोई खास ग्राहक का काम कैसा है, यह समझना महत्वपूर्ण है. इस कारण सेवा प्रदान करने के मामले में लगातार बेहतर करने की गुंजाइश रहती है. उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की तुलना में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस किस हद तक काम करते हैं, यह इंडस्ट्री के ऊपर निर्भर करेगा. हो सकता है कि किसी इंडस्ट्री में एआई का दखल काफी ज्यादा हो, जबकि कहीं कहीं यह एकदम कम रह सकता है.