नई दिल्लीः नोटबंदी के 48 दिन बीत चुके हैं. इस दौरान लोग अपनी खुशी या सरकारी जबरदस्ती से बड़ी संख्या में लोग कैशलेस कतार में आ चुके हैं. वे पेटीएम, ई वॉलेट व आरटीजीएस जैसी तकनीकें सीख उन्हें अपनाने भी लगे हैं. लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि खुद सरकार कितनी कैशलेस हुई है. क्या उनके दफ्तर कैशलेस हुए हैं. इस बारे में जब एबीपी न्यूज ने महाराष्ट्र सरकारी के आरटीओ, रजिस्ट्री, पोस्ट ऑफिस, सरकारी अस्पतालों और अन्य सरकारी कार्यालयों मे जांच पड़ताल की तो सरकारी कथनी और करनी का फर्क दिखा.
सेतु केंद्र
आम जनता के रोजमर्रा के जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके सेतु केंद्र जहां से जमीन की रजिस्ट्री, जन्म मृत्यु पंजीकरण, रिहायशी प्रमाणपत्र, आदि दिये जाते है. इसके लिये सरकार द्वारा तय राशि देनी पडती है, पर आज 48 दिनों बाद भी यहां सभी कामकाज नगदी रूपये में किये जा रहे हैं. महाराष्ट्र मे ऐसे 348 केंद्र है लेकिन हैरानी की बात है कि एक भी सेतु केंद्र कॅशलेस नही बना.
आरटीओ कार्यालय
आरटीओ कार्यालयों में नई गाडियों का रजिस्ट्रेशन, टैक्स, ड्राइविंग लाइसेंस और रिन्यूवल के काम होते हैं, जहां से तय रकम का चालान है जिसे बैंक खातों मे जमा करना पडता है लेकिन बैंकों मे चेक नही लिये जाते, जरुरत होती है कैश की. राज्य मे पुणे और सोलापूर के सिर्फ 2 कार्यालयों मे अभी तक कैशलेस बनाया गया है.
आबकारी विभाग
राज्य मे सबसे ज्यादा राजस्व जमा करने वाले विभाग की तौर पर इस कार्यालय की पहचान है. बड़ी-बड़ी शराब की दुकानों और ठेकों का संचालन यहां से किया जाता है इतना ही नहीं शराब पीने के लाइसेंस भी यहां से दिए जाते हैं. राज्य मे आबकारी विभाग के 35 कार्यालय हैं जहां पर 300 से कम की रकम भरने के लिये आपकी जेब में पैसों की जरुरत है. एक भी कार्यालय में स्वाईप मशीन नहीं है. यदि शराब ठेके का लाइसेंस या और कुछ हो तो रकम बड़ी हो तो आपको चालान लेके बैंको की लाईन में खड़ा होना पडता है.
पुलिस दल
सुरक्षा के साथ यातायात का जिम्मा संभालने वाला पुलिस महकमा भी कैशलेस योजना से कोसों दूर है. रास्तों पर यातायात नियमों को तोड़ने पर दिये जानेवले जुर्माने की रकम हो या पासपोर्ट के लिये आवश्यक चरित्र प्रमाणपत्र फीस, यह सब नगद में ही वसूले जाते हैं. राज्य मे केवल बीड़ जिले मे एक पुलिस कर्मचारी को छोड अभी तक पुलिस महकमा पूरी तरह से नगद रकम से ही काम कर रहा है.
रजिस्ट्री कार्यालय
रजिस्ट्री कार्यालयों में सभी बड़े व्यवहार आरटीजीएस द्वारा किये जाते है. लेकिन यहां पर भी चेक बाउंस होने की वजह से चेक नहीं लिये जाते. जिस वजह से डीडी और आरटीजीएस पर ही यहां का कामकाज चलता है लेकिन 1000 से 2000 रुपयों तक की स्टैम्प पेपर की खरीद-फरोख्त आज भी कैश में की जाती है. पिछले 48 दिनों में एक भी स्टैम्प बेचने वाला कैशलेस नही हो सका.
पोस्ट ऑफिस
सरकार द्वारा बैंकों के साथ-साथ देशभर के 1.5 लाख पोस्ट डाकघरों में पुराने नोट बदलने की सुविधा दी गई है जहां से अभी भी यह काम शुरु है. लेकिन दूसरी तरफ कैशलेस योजना के प्रति अनदेखी साफ दिखाई देती है. पोस्ट द्वारा बिकने वाले स्टैम्प टिकट, स्पीड पोस्ट, कुरियर, रजिस्ट्री के लिये अभी भी कैश देना पड़ता है और यहां पर भी स्वाईप मशीन नहीं है.
एलआईसी कार्यालय
सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसला आने से पहले एलआईसी में चेक से लेनदेन होता था लेकिन देहाती इलाकों मे बैंकिंग और चेक से कम नगदी मे लेनदेन होता है. इसलिये यहां के लोग अपना प्रीमियम भी नगद में भरते हैं. यहां पर भी कोई स्वाईप मशीन, आधार कार्ड पेमेंट, सुविधा नहीं है.
अस्पताल
सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसला लेते ही प्राईवेट अस्पतालो पर पुराने नोट ना लेने की हिदायत दी गयी और केवल चेक पेमेंट लेने को कहा गया. दूसरी तरफ आज 48 दिनों बाद भी राज्य के 947 सरकारी अस्पतालों में आज भी सभी काम कैश में चल रहे हैं. पिछले 48 दिनो में राज्य का एक भी सरकारी अस्पताल कैशलेस नही बन पाया. सरकारी अस्पतलों में केस पेपर, सोनोग्राफी, आदि के लिये आज भी पैसे लिये जाते हैं.
आम जनता से जुड़े इन सभी सरकारी कार्यालयों की यह हालात है. पिछले 48 दिनों में आम जनता में कैशलेस के प्रति जागरूकता लाने के लिये सरकार द्वारा करोडों रुपयों को खर्च किया जा चुका है जिसकी वजह से लोगों में कैशलेस के प्रति रुझान बढ़ा है लेकिन सरकारी कार्यालयों में अभी भी यही हालत हैं जिसके चलते सरकार की परियोजना खुद के घर में नाकामयाब होती दिखाई दे रही है.