चीन में 1998 के बाद सबसे निचले स्तर पर एफडीआई, कई कंपनियों ने निकाला निवेश; भारत को कैसे मिल रहा फायदा
China FDI Down: मैन्यूफैक्चरिंग का शहंशाह कहे जाने वाला देश चीन इस समय वित्तीय दिक्कतों से जूझ रहा है. यहां फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट 25 सालों के निचले स्तर पर आ गया लेकिन ये भारत के लिए फायदेमंद है.
China FDI Down: विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति, एशिया का मैन्यूफैक्चरिंग पावरहाउस, भारत का पड़ोसी देश चीन, लंबे समय से दुनिया की सबसे बड़ी वैश्विक महाशक्ति बनने का सपना लिए हुए है. 3 सालों पहले तक चीन को लेकर कहा जा रहा था कि ये दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़कर ग्लोबल आर्थिक सिरमौर बनने जा रहा है. हालांकि अब ऐसी रिपोर्ट आई है जो साफ दिखाती है कि चीन के सपनों और दावों में दम नहीं रहा है और कम्यूनिस्ट विचारधारा वाला ये देश अब वित्तीय मोर्चे पर कठिनाइयों से जूझ रहा है.
तीसरी तिमाही में चीन का एफडीआई माइनस में चला गया
चाइना बैलेंस ऑफ इंटरनेशनल पेमेंट्स (BOP) ने डेटा पब्लिश किया है कि चीन में तिमाही आधार पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट (FDI) में लगातार गिरावट आती जा रही है. साल 2023 की तीसरी तिमाही में चीन में एफडीआई -11.8 बिलियन डॉलर पर आ गया है. साल 1998 के बाद ये पहली बार है जब चीन में एफडीआई प्रवाह गिरकर निगेटिव जोन में चला गया है. 25 सालों के (BOP) पब्लिशिंग के एफडीआई इतिहास में ये गिरावट इस बात का संकेत है कि चीन में जितनी तेजी से विदेशी निवेशक पैसा लगा नहीं रहे हैं, उससे ज्यादा तेजी से फॉरेन इंवेस्टर्स वहां से पैसा निकाल रहे हैं.
चीन में निवेश के लिए कैसे बदल गया माहौल
चीन में एफडीआई के गिरते फ्लो के पीछे जियो-पॉलिटिकल टेंशन के अलावा अमेरिका के साथ खराब होते रिश्ते बड़ी वजह माने जा रहे हैं. चीन में लंबे समय से जारी आर्थिक मंदी के माहौल के चलते ग्लोबल कंपनियां यहां निवेश से पीछे हट रही हैं. साथ ही निचली ब्याज दरों के असर से भी इंवेस्टर्स के मन में यहां पैसा लगाने को लेकर कोई उत्साह नहीं है. एक तरफ जहां बढ़ती जियो-पॉलिटिकल टेंशन आंशिक रूप से चीन में एफडीआई के पलायन के लिए जिम्मेदार है, वहीं विदेशी कंपनियां और निवेशक भी चीन में बढ़ते जोखिमों से सावधान हो गए हैं, जिसमें सरकारी छापों और हिरासत की आशंकाएं भी शामिल हैं.
चीन की डायरेक्ट इंवेस्टमेंट लायबिलिटीज का क्या है पैमाना
डायरेक्ट इंवेस्टमेंट लायबिलिटीज चीन में एफडीआई मापने का पैमाना है और वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में ये निगेटिव 11.8 बिलियन डॉलर पर आया है. चीन के स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज (SAFE) ने डेटा जारी किया है और इसको पिछले साल से तुलना करते हुए देखें तो साल 2022 में ये 14.1 बिलियन डॉलर पर था.
डायरेक्ट इंवेस्टमेंट लायबिलिटीज देश का पिछले दो सालों के बैलेंस ऑफ पेमेंट्स को दिखाता है. साल 2022 की पहली तिमाही में 101 बिलियन डॉलर के सर्वोच्च स्तर के करीब तक जाने के बाद से हर तिमाही में इसमें गिरावट ही बनी हुई है. साल 1998 के बाद से ये पहली बार है जब चीन का एफडीआई फ्लो निगेटिव जोन में चला गया. ये डेटा दिखाता है कि चीन के ऐसेट, इंवेस्टमेंट या लायबिलिटीज का क्या हाल है. चीन की सरकार के मुताबिक विदेशी संस्थानों का विदेशी निवेश और वो मुनाफा जो शेयरहोल्डर्स में बांटा ना गया हो, उसको एक साथ प्रदर्शित करने पर डायरेक्ट इंवेस्टमेंट लायबिलिटीज का पता चल जाता है.
इस साल लगातार गिरा है चीन में विदेशी निवेश
चीन का एफडीआई मापने का मुख्य पैमाना कॉमर्स मिनिस्ट्री के जरिए जारी किया जाता है. इसके तहत साल 2022 के पहले 8 महीनों में इसमें 5.1 फीसदी गिरावट आई और पहले 9 महीनों में ये 8.4 फीसदी गिरा. 1998 के बाद से चीन में पहली बार दिखा है कि यहां एफडीआई का आउटफ्लो रोकने में देश असफल रहा है. ये दिखाता है कि चीन में जो सपनीला आर्थिक माहौल था, वो खत्म होने की कगार पर आ गया है.
चीन के स्टॉक मार्केट की क्या है हालत
पिछले महीने के आखिर में, चीन की विधायिका ने इकोनॉमी को समर्थन देने के लिए सॉवरेन बॉन्ड्स में एक ट्रिलियन युआन (137 बिलियन डॉलर) लगाने पर मंजूरी दी. बॉन्ड्स का इस्तेमाल मुख्य रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की फंडिंग करने के लिए किया जाएगा. वही सॉवरेन वेल्थ फंड्स ने पिछले महीने यानी अक्टूबर 2023 में देश के डूबते स्टॉक मार्केट को बूस्ट देने के लिए शेयरों की खरीदारी भी की है. चीन का स्टॉक मार्केट इस साल के सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शेयर बाजारों में रहा है. हाल ही में Goldman Sachs ने चीन को झटका देते हुए उसके शेयरों को डाउनग्रेड भी कर दिया है जो ड्रैगन के लिए 'कंगाली में आटा गीला' वाली कहावत को चरितार्थ करता लग रहा है.
चीन से विदेशी कंपनियां लगातार निकाल रहीं अपना निवेश
विभिन्न विदेशी कंपनियां चीन से पैसा और निवेश निकाल कर दूसरे उपयुक्त देशों में ले जा रही हैं. ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी वेनगार्ड ने अपने ऑपरेशंस को चीन से बाहर ले जाने का फैसला लिया है. दिसंबर 2023 तक वेनगार्ड अपने शंघाई ऑफिस को बंद करने जा रही है. नाम ना बताने की शर्त पर सूत्रों के मुताबिक ये जानकारी सामने आई है.
कई अमेरिकी कंपनियां अपनी मैन्यूफैक्चरिंग और वर्क आउटसोर्सिंग को चीन से दूर करने में लग चुकी हैं. दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी एप्पल ने आईफोन और दूसरे गैजेट्स की मैन्यूफैक्चरिंग को चीन से शिफ्ट करना शुरू कर दिया है. आईफोन के ग्लोबल शिपमेंट का सबसे ज्यादा प्रोडक्शन चीन में होता है लेकिन इस पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं. साल 2024 में इसमें 75 से 85 फीसदी की कमी होने वाली है.
अमेरिका और चीन के बिगड़ते रिश्तों ने भी ड्रैगन की कमर तोड़ी
दुनिया की दो सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते ठीक नहीं हैं. अमेरिका-चीन के बीच बिगड़ते संबंधों के असर के चलते सुपरपावर अमेरिका धीरे धीरे मैन्यूफैक्चरिंग किंग कहे जाने वाले देश चीन पर अपनी इंपोर्ट की निर्भरता को कम करने की कोशिश में लगा है. ताजा अपडेट के मुताबिक एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका गए, जहां उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात भी की. दोनों नेताओं ने बैठक के दौरान चीन और अमेरिका के बीच मतभेदों को खत्म करने से जुड़ी चर्चा की है.
चीन के एफडीआई में गिरावट का फायदा भारत कैसे ले रहा
दुनिया में चीन और भारत ही ऐसे देश हैं जहां कारोबार के लिए सबसे बड़ा बाजार मिलता है. ग्लोबल लेवल पर चीन और भारत के बाजार के बीच बहुत सारी समानताएं भी हैं. अब से कुछ साल पहले तक विदेशी निवशकों के लिए ट्रेड करने की पसंदीदा जगह चीन होती थी. हालांकि अब इस स्थिति में बदलाव आया है और कोविडकाल के बाद से विदेशी निवेशकों की पहली पसंद चीन की बजाए भारत बन गई है. पिछले 2 सालों से कई विदेशी कंपनियां अपने कारोबार को भारत में लेकर आ रही हैं. फॉक्सकॉन के चिप मैन्यूफैक्चरिंग के इंवेस्टमेंट की खबरों ने तो भारत के बाजार को लंबे समय तक सुर्खियों में बनाए रखा.
वहीं चीन के ऊपर मैन्यूफैक्चरिंग की निर्भरता की वजह से कई बार अमेरिका को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. लिहाजा अमेरिका दूसरे मार्केट ऑप्शंस पर ध्यान दे रहा है और इसका सबसे बड़ा फायदा भारत को मिलने वाला है. इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. आईफोन मेकर कंपनी एप्पल के कई कॉनट्रेक्ट मैन्यूफैक्चरर्स ने हाल-फिलहाल में भारत में अपनी कैपेसिटी एक्सपेंशन पर काम करना चालू कर दिया है.
भारत में अब हो रही है सस्ती मैन्यूफैक्चरिंग
भारत सस्ती मैन्यूफैक्चरिंग के मामले में चीन और वियतनाम जैसे देशों से आगे निकल चुका है और दुनिया में नया मैन्यूफैक्चरिंग हब बनकर उभर रहा है. इसी साल मई में खबर थी कि भारत सस्ती मैन्यूफैक्चरिंग के मामले में चीन और वियतनाम को पछाड़ चुका है और द वर्ल्ड रैंकिंग के मुताबिक इस लिस्ट में टॉप पर है.
विदेशी कंपनियां चीन से भारत ला रहीं कारोबार
भारत में मोबाइल-ऑटोमोबाइल का बिजनेस तेजी से बढ़ा है, जिसने विदेशी कंपनियों को आकर्षित किया. सैमसंग ने अपना ऑफिस भारत में खोला वहीं एप्पल भी चीन से कारोबार बंद करके भारत में रिटेल शॉप बना रही है. इतना ही नहीं चीनी कंपनियां तक भारत में बिजनेस शिफ्ट कर रही हैं. उदाहरण के लिए शॉओमी और ओप्पो भी भारत में मैन्यूफैक्चरिंग के लिए अपनी ब्रांच खोल रही हैं.
चीन में प्रॉपर्टी इंवेस्टमेंट में भी भारी दिक्कतें
चीन में प्रॉपर्टी इंवेस्टमेंट के क्षेत्र में भी भारी दिक्कतों का माहौल है और साल 2023 के पहले 10 महीनों में यहां प्रॉपर्टी इंवेस्टमेंट में 9.3 फीसदी की बड़ी गिरावट आई है. नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स ने ये डेटा जारी करते हुए कहा कि एक साल में ये गिरावट देश में प्रॉपर्टी मार्केट के लिए चिंता पैदा करती हैं. पड़ोसी देश के प्रॉपर्टी मार्केट की खराब स्थिति से भारत के लिए निवेश के ज्यादा अवसर बन रहे हैं.
Tesla की जल्द होगी भारत में एंट्री
टेस्ला दक्षिण एशियाई बाजार में उतरना चाहती है और इसके लिए उसकी पसंद चीन ना होकर भारत है. टेस्ला के मालिक एलन मस्क लंबे समय से भारत में फैक्ट्री लगाना चाहते हैं. हाल ही में देश के केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कैलिफोर्निया में टेस्ला की फैक्ट्री का भी दौरा किया. अपनी टेस्ला फैक्ट्री की विजिट की जानकारी एक्स पर शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि टेस्ला को ऑटो कंपोनेंट सप्लाई करने वालों में भी भारतीयों की हिस्सेदारी बढ़ रही है. इतना ही नहीं टेस्ला भारत से ऑटो कंपोनेंट का इम्पोर्ट दोगुना करने पर काम कर रही है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिका में दी थी बड़ी जानकारी
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी थिंक टैंक पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के कार्यक्रम में बताया था कि देश में पीएलआई स्कीम्स से भारत की मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग निर्माण क्षमता काफी बढ़ी है. साल 2014 में शून्य पर थी लेकिन आज हम दुनिया के दूसरे सबसे बड़े स्मार्टफोन मैन्यूफैक्चरर बन गए हैं. खास बात ये है कि इस क्षेत्र में पड़ोसी देश चीन का दबदबा था जिसका तिलिस्म तोड़कर भारत ने ये शानदार मुकाम हासिल किया है.
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