चीन में सुप्रीम कोर्ट ने कर्जदारों को ब्लैकलिस्ट कियाः सुविधाएं खत्म की
नई दिल्लीः चीन के शंघाई इलाके में सड़क, चौराहों समेत तमाम सार्वजनिक जगहों पर ऐसे बड़े-बड़े होर्डिंग आपको मिल जाएंगे, जिनमें कर्जदारों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें और उनके कर्ज का जिक्र है. साल 2015 में इस पहल से चीन ने कर्ज वसूली का जो अभियान छेड़ा था, उसे अब वहां के सुप्रीम कोर्ट ने नई धार दे दी है.
चीन के सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कर्ज नहीं चुकाने वालों का सामाजिक बहिष्कार करने का फैसला दिया है. यानी वहां कर्ज नहीं चुकाने वालों को न तो अब किराये पर मकान मिलेगा, ना ही होटल में कमरा. हवाई जहाज और बुलेट ट्रेन में वो यात्रा नहीं कर सकेंगे. उनके बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला भी नहीं मिलेगा. कर्ज नहीं चुकाने वालों का पर्सनल आईडी नंबर ब्लॉक किया जाएगा. यानी ऐसे लोग नागरिक सुविधाओं का फायदा भी नहीं ले पाएंगे.
चीन का सुप्रीम कोर्ट ऐसे 67 लाख कर्जदारों की ब्लैकलिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाल चुका है. बुरी तरह कर्ज में डूबे चीन को ये कड़ा फैसला इसलिये लेना पड़ा क्योंकि चीन की जितनी सालाना जीडीपी है यानी साल भर की कुल कमाई है, उससे डेढ़ गुना ज्यादा उसका कर्ज है.
भारत के लिए क्यों अहम है ये खबर? कर्ज के बोझ के मामले में भारत भी चीन के रास्ते पर है. आज की तारीख में भारत की जितनी जीडीपी है यानी सालाना कमाई है, उससे आधे से ज्यादा कर्ज है. सवाल भी इसीलिए उठ रहे हैं कि अपनी आर्थिक सेहत दुरुस्त करने के लिये चीन ऐसे सख्त फैसले ले सकता तो हम क्यों नहीं ? इस बारे में इंडियन चार्टर्ड एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वित्तीय मामलों के जानकार वेद जैन से बात करने पर पता चला कि
बैंकों की बनाई संस्था सिबिल का आंकड़ा देख लीजिए, जो 25 लाख रुपये से ऊपर के कर्ज पर नजर रखती है. सिबिल के मुताबिक, साल 2002 के बाद पिछले 13 सालों में सरकारी बैंकों का फंसा कर्ज 9 गुना बढ़ा है. प्राइवेट बैंकों की इसमें बात नहीं हो रही है. आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 2004 से 2015 के बीच सरकारी बैंकों ने 2 लाख 11 हजार करोड़ से ज्यादा रकम डूब गए कर्ज के खाते में डाला गया है. अगर ये डूबा कर्ज वापस आ जाए तो बजट में रक्षा, शिक्षा, हाइवे और स्वास्थ्य के खर्च की भरपाई हो जाएगी.
किंगफिशर एयरलाइंस के मालिक विजय माल्या की याद करें जो सरकारी बैंकों का 9 हजार करोड़ का कर्ज डकार कर लंदन फुर्र हो गए. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में दिये हलफनामे में सरकार ने भी माना है कि देश में माल्या जैसे सवा पांच हजार से ज्यादा कारोबारी हैं, जो बैंकों का पैसा नहीं लौटा रहे हैं. इन पर बैंकों का करीब 56 हजार 621 करोड़ रुपये बकाया है. सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुका है कि आखिर देश का मोटा पैसा हड़प गए इन कर्जदारों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किये जा रहे हैं.
जाहिर है बैंक-नेता-अफसर गठजोड़ का इस्तेमाल कर कंबल ओढ़कर कर्ज का घी पीने वाले इन रसूखदारों का घिनौना चक्रव्यूह तोड़ना है तो चीन की तर्ज पर भारत में भी इनके खिलाफ घंटी बजाने की जरूरत है. ये न सिर्फ अर्थव्यवस्था के लिये नासूर हैं..बल्कि ऊंची ब्याज दर पर कर्ज से लेकर प्रॉपर्टी की बढ़ती कीमतों जैसा खामियाजा हमें इन्हीं के कारण उठाना पड़ता है.