(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Heatwave Alert: बढ़ती गर्मियों का असर, जलवायु परिवर्तन से महंगी हो सकती है आपकी ‘भोजन की थाली’!
Inflation in India: जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मियां जल्दी पड़ने लगी हैं और मार्च-अप्रैल के महीने में ही हीटवेव का प्रकोप दिखने लगा है. यह विभिन्न फसलों की उपज को प्रभावित कर सकता है...
भारत में खुदरा महंगाई में भले ही नरमी आने लगी है, लेकिन आम लोगों की परेशानियां इसके बाद भी बढ़ सकती हैं. आम लोगों को आने वाले दिनों में भोजन की थाली के लिए ज्यादा दाम चुकाना पड़ सकता है. इसका कारण बढ़ती गर्मियां और जलवायु परिवर्तन हैं.
पिछले साल से डबल हीटवेव वाले दिन
दरअसल जलवायु परिवर्तन का असर अब प्रत्यक्ष दिखने लगा है. हर साल गर्मियां पहले की तुलना में ज्यादा पड़ रही हैं. इस बार मौसम विभाग ने मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है, लेकिन उससे पहले लोगों को प्रचंड गर्मियों का सामना करना पड़ रहा है. देश के कई इलाकों में अप्रैल महीने में ही हीटवेव का प्रकोप दिख रहा है. भारतीय मौसम विभाग ने कहा भी है कि इस साल अप्रैल से जून के बीच एक्सट्रीम हीटवेव वाले दिनों की संख्या 10-20 से ज्यादा रह सकती है. यह पिछले साल की तुलना में लगभग डबल है.
गेहूं से लेकर मछली तक जोखिम
इस तरह की प्रचंड गर्मियों से सिर्फ इंसानों के शरीर पर ही असर नहीं होगा, बल्कि खाने-पीने की चीजों पर भी असर दिख सकता है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि एक्सट्रीम हीट वेव के चलते गेहूं जैसे जरूरी अनाज के साथ-साथ कॉफी और डेयरी, यहां तक कि हिलसा मछली तक की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है. आपूर्ति प्रभावित होने से बाजार में इनकी उपलब्धता पर असर होगा, जो सीधे भोजन की थाली पर असर दिखाएगा.
इतना कम हो सकता है गेहूं का उत्पादन
रिपोर्ट में अनचार्टेड वाटर्स की एक रिसर्च का हवाला दिया गया है. रिसर्च का कहना है कि प्रचंड गर्मियों के बाद अधिक सर्दियां पड़ने से महत्वपूर्ण उत्पादक राज्यों में गेहूं की उपज पर 20 फीसदी तक असर हो सकता है. इससे ओवरऑल गेहूं के उत्पादन में 5 से 10 फीसदी की कमी आ सकती है. इसका कारण है कि सर्दियां देर तक पड़ने से गेहूं की बुवाई में देरी होती है और उसके बाद जल्दी गर्मियों के जोर पकड़ने से फसल तैयार होने से पहले पकने लग जाते हैं.
भारत के लिए अधिक गंभीर स्थिति
रिसर्च के अनुसार, इसी तरह का असर सब्जियों से लेकर दालों की फसलों पर दिख सकता है. यहां तक कि एक्स्ट्रीम वेदर से मछलियों पर भी असर हो सकता है और लोगों की सुबह की कॉफी महंगी हो सकती है. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि अगर इसी तरह से जलवायु परिवर्तन का असर होता रहा और मौसम के चक्र पर प्रभाव पड़ता रहा तो आने वाले दिनों में भूख मिटाना बड़ी चुनौती बन सकती है. खासकर भारत जैसे देशों में स्थिति गंभीर हो सकती है, जहां अभी करीब 80 करोड़ लोगों को सरकारी खाद्यान्न योजना का सहारा लेना पड़ रहा है.
अभी इतनी है खुदरा महंगाई
भारत में खुदरा महंगाई की दर मार्च महीने में कम होकर 4.85 फीसदी रही. कई महीनों के बाद खुदरा महंगाई की दर 5 फीसदी से नीचे आई है. हालांकि यह अभी भी रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर ही है.
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