नई दिल्लीः कर्जमाफी के लिए कर्ज-ये वो टेढ़ा फॉर्मूला है जिस पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार विचार कर रही है. मसला है कि किसानों से कर्जमाफी का जो वादा किया गया था उसे पूरा कैसे किया जाए. कर्जमाफी का बोझ राज्य सरकार खुद उठा पाए ये लगभग नामुमकिन है. ऐसे में दो ही विकल्प हैं या तो केंद्र सरकार राज्य की मदद करे या फिर राज्य सरकार केंद्र से कर्ज ले. इन दोनों ही विकल्पों में कई पेंच है और यही वजह है कि शपथ लेने के 10 दिन बाद भी यूपी में योगी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक नहीं हो पाई है.


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सीएम पद की शपथ लिए 10 दिन से ज्यादा हो गए हैं, आज सीएम के सरकारी आवास में उनका गृह प्रवेश भी हो गया लेकिन किसानों की कर्जमाफी से जुड़े बीजेपी के वादे पर अब तक सरकार न कोई घोषणा कर पाई है न कोई फैसला.


डेप्यूटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि जो तकनीकी पक्ष होते हैं उनकी जांच करके उनकी व्यवस्था करके किसानों का कर्ज जरूर माफ होगा, यानी जो वादा किया था उसे पूरा किया जाएगा. सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की बात से साफ है कि सरकार अब तक ये फैसला नहीं कर पाई है कि कर्जमाफी के लिए पैसा कहां से लाए.


बीजेपी के वादे के मुताबिक यूपी के लघु और सीमांत किसानों का कर्ज माफ होना है
यानी प्रदेश के करीब 2.15 करोड़ किसानों का कर्ज माफ किया जाना है
किसानों पर बकाया कुल कर्ज करीब 36 हजार करोड़ रुपए है


राज्य की आय के सीमित संसाधनों को देखते हुए योगी सरकार के लिए प्रदेश के बजट में से 36 हजार करोड़ की रकम का इंतजाम करना बेहद मुश्किल है. इसीलिए राज्य सरकार किसानों की कर्ज माफी के लिए केंद्र से मदद लेने को कोशिश में लगी है. लेकिन ये इतना आसान नहीं है


केंद्र से मदद लेने के लिए राज्य सरकार खासतौर से दो विकल्पों पर विचार कर रही है




  • पहला केंद्रीय वित्त मंत्रालय के ट्रांसफर टू स्टेट मद के तहत आर्थिक मदद

  • दूसरा द्र सरकार से और कर्ज

  • पहले विकल्प यानी ट्रांसफर टू स्टेट के तहत केंद्र अगर चाहे तो राज्य सरकार को अनुदान के तौर पर आर्थिक मदद दे सकती है. लेकिन ऐसा करने पर केंद्र सरकार के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है


आर्थिक जानकार डी के पंत का कहना है कि केंद्र सरकार के सामने ये समस्या आती है कि अगर वो आज एक राज्य सरकार को एक बेल आउट पैकेज या एकमुश्त पैसा देती है तो कल को बाकी राज्य सरकारों को भी देना पड़ेगा. यही वजह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली पहले ही ये संकेत दे चुके हैं कि कर्जमाफी के लिए राज्य सरकार को खुद ही पैसों का इंतजाम करना होगा.




  • ऐसे में राज्य सरकार के सामने दूसरा विकल्प है केंद्र से और ज्यादा कर्ज लेने का.
    इसमें पहली समस्या ये है कि फिजिकल रेस्पांसबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट यानी FRBM एक्ट के तहत राज्य एक वित्त वर्ष में अपने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीएसडीपी के 3 फीसदी के बराबर कर्ज ले सकता है.

  • इस हिसाब से उत्तर प्रदेश को इस साल कुल 34,614 करोड़ का ही कर्ज मिल सकता है. जबकि किसानों पर बकाया कर्ज की रकम ही इससे ज्यादा है - यानी 36 हजार करोड़ रुपए.

  • ऐसे में कर्जमाफी के लिए कर्ज तभी लिया जा सकता है जब वो FRBM एक्ट से अलग यानी अतिरिक्त कर्ज के तौर पर लिया जाए.


अगर सरकार कर्ज लेती है तो कर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 3 फीसदी से ज्यादा नहीं कर सकते, तो अगर ये करना है तो आपको किसी दूसरे खर्च में कटौती करनी पड़ेगी. इस कर्जमाफी के लिए अगर राज्य सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य या पूंजीगत व्यय में कटौती करती है तो उसके आने वाले समय में और ज्यादा गंभीर परिणाम आ सकते हैं.

तो कुल मिलाकर साफ है कि अतिरिक्त कर्ज का असर राज्य की बाकी विकास योजनाओं पर पड़ेगा. इसके अलावा ये अतिरिक्त कर्ज भी राज्य सरकार को तभी मिलेगा जब केंद्र उसे FRBM एक्ट से अलग रखने के लिए तैयार हो जाए. चूंकि राज्य और केंद्र दोनो में बीजेपी की सरकार है इसलिए माना जा रहा है कि राज्य सरकार केंद्र को इसके लिए तैयार कर लेगी. पर ये कदम भी केंद्र को मुश्किल में डाल सकता है क्योंकि दूसरे राज्य भी ऐसी मांग करेंगे.