लॉकडाउन के बाद कंपनियों ने अपना कामकाज शुरू कर दिया है लेकिन उन्हें अभी कम वर्कफोर्स से काम चलाना पड़ रहा है. सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन कराने की वजह से फैक्ट्रियों में एक तिहाई कर्मचारी ही काम कर रहे हैं. अधिकतर कंपनियों का मानना है कि अब सरकार को ज्यादा कामगारों को एक साथ काम करने की इजाजत देनी चाहिए. उनका कहना है कि सरकार धीरे-धीरे ही सही लेकिन ज्यादा लोगों के साथ काम करने की इजाजत दे ताकि प्रोडक्शन में तेजी लाई जा सके.


वर्कफोर्स में कमी की वजह से प्रोडक्शन धीमा 


उदयोग संगठनों का मानना है कि इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए अब पूरी तेजी से प्रोडक्शन की जरूरत है लेकिन मजदूरों की कमी की वजह से काम का स्केल बढ़ नहीं पा रहा है. ट्रेनों को पूरी तरह न चलाने से आवाजाही की दिक्कतें बढ़ी हुई हैं. इससे औद्योगिक केंद्रों में कामगार पर्याप्त संख्या में नहीं आ पा रहे हैं. इसके अलावा, कंपनियों को ज्यादा कामगारों को शिफ्ट में बुलाने से रोका जा रहा है.


उद्योग संगठनों ने कहा कि ई-वे बिल जनरेशन से लग रहा है कि माल की ढुलाई बढ़ी है.लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि उपभोक्ताओं तक माल वक्त पर पहुंच पा रहा है या नहीं. वक्त पर उपभोक्ताओं तक माल पहुंचने पर ही मांग बढ़ेगी और इकनॉमी पटरी पर आ सकेगी.इस बीच फिक्की और बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज ने भातीय अर्थव्यवस्था में गिरावट की आशंका जाहिर की है. इनका कहना है कि अगर कोरोनावायरस संक्रमण काबू होने में देरी हुई तो अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी. ऐसे में यह जरूरी है कि प्रोडक्शन पर अभी से ही ध्यान दिया जाए. सरकार को कोरोनावायरस संक्रमण पर काबू करने के कदम उठाने के साथ ही प्रोडक्शन बढ़ाने के उपाय भी करने होंगे. कंपनियों को बढ़ी हुई मैनपावर के साथ काम करने की इजाजत दिए बगैर यह संभव नहीं है.