नई दिल्लीः देश में लगातार ऐसे आंकड़े आ रहे हैं जो इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि आर्थिक मंदी की स्थिति गहराती जा रही है. हाल ही में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के आंकड़े और महंगाई में बढ़ोतरी के आंकड़े आए जिनसे सरकार को चिंता हो सकती है. आज भी एक और खबर आई है जो कि सरकार की परेशानी और बढ़ा सकती है. चार दशक यानी पिछले 40 सालों में पहली बार भारत का उपभोक्ता खर्च साल 2017-18 में घट गया है. बिजनेस अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर के मुताबिक ये आंकड़ा एनएसओ (नेशनल स्टेस्टिक्स ऑफिस) के ताजा सर्वे ंमें निकलकर आया है.
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ताजा सर्वे में जो मुख्य बात निकलकर सामने आई है उसमें बताया गया है कि 2017-18 में भारत में उपभोक्ता खर्च में 3.7 फीसदी की बड़ी गिरावट आई है और ये घटकर 1446 रुपये रह गया है. जबकि साल 2011-2012 में एक भारतीय औसतन 1501 रुपये खर्च करता था. ये सभी आंकड़े रियलटाइम डेटा के आधार पर दिखाए गए हैं जिसका अर्थ है कि महंगाई के आंकड़ों के हिसाब से इनको एडजस्ट किया गया है.
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साफ तौर पर इन आंकड़ों से जाहिर होता है कि लोग अब पहले की तुलना में कम खर्च कर रहे हैं. सर्वे के मुताबिक खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में खर्च घटा है और रूरल स्पेंडिंग में कमी आई है. 2017-18 में गांवों में उपभोक्ता खर्च में 8.8 फीसदी की गिरावट आई है.
गांवों-शहरों में खाने-पीने की वस्तुओं पर कम हो रहा है खर्च
अब लोग खाने-पीने की वस्तुओं पर कम पैसा लगा रहे हैं. इसमें भी विशेष तौर पर गांवों में लोगों ने दूध और इससे बने प्रोडक्ट्स की खपत कम कर दी है. इसके अलावा कपड़ों पर, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स पर, एजूकेशन पर और घरों के किराए के ऊपर भी लोगों के खर्च करने में कमी आई है.
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गांवों में खाने-पीने पर खर्च घटा
2011-12 में गांवों में खाने पर लोग औसतन 643 रुपये खर्च करते थे जो कि 2017-2018 में घटकर 580 रुपये हो गया है.
शहरों में भी हुई मामूली बढ़ोतरी
2011-12 में शहरों में खाने पर लोग औसतन 943 रुपये खर्च करते थे जो कि 2017-2018 में मामूली बढ़कर 946 रुपये हो गया है.
कुल खर्च की बात करें तो
साल 2011-12 में गांवों में लोग औसतन 1217 रुपये खर्च करते थे जो कि 2017-2018 में 8 फीसदी घट गया है और घटकर 1110 रुपये हो गया है. शहरों में हालांकि खर्च थोड़ा बढ़ा है. 2011-12 में लोग 2212 रुपये खर्च करते थे जो कि 2017-2018 में 2 फीसदी बढ़कर 2256 रुपये हो गया है.
कपड़े शिक्षा और किराए पर खर्च की बात करें तो
2011-12 की तुलना में गांवों में इस मद पर खर्च में 7.6 फीसदी की कमी आई है. 2011-12 की तुलना में शहरों में इस मद पर लोग 3.8 फीसदी ज्यादा खर्च कर रहे हैं.
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