कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने देश में रोजगार क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है. शहरी और ग्रामीण इलाकों, दोनों में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है. हालांकि यह कोरोना संक्रमण की पहली लहर के बाद लागू देशव्यापी लॉकडाउन के दौर के वक्त बढ़ी बेरोजगारी की रफ्तार जितनी तो नहीं है लेकिन हालात बेहद खराब होने की ओर बढ़ रहे हैं. सीएमआईई की एक रिपोर्ट के मुताबिक 16 मई को समाप्त सप्ताह में देश में बेरोजगारी दर बढ़ कर 14.45 फीसदी पर पहुंच गई. जबकि 9 मई को खत्म हुए सप्ताह में बेरोजगारी दर 8.67 फीसदी थी. यानी बेरोजगारी दर लगभग दोगुने रफ्तार से बढ़ रही है. लॉकडाउन की वजह से कई वाहन निर्माता कंपनियों ने अपना प्रोडक्शन रोक दिया है.
कई कंपनियों ने बंद किए प्रोडक्शन, अस्थायी कर्मचारियों पर गाज
अगर बेरोजगारी दर की रफ्तार इसी तेजी से बढ़ी तो यह पिछले साल के मई महीने के स्तर पर पहुंच सकती है, जब यह 21.73 फीसदी पर पहुंच गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन और कोरोना पाबंदियों की वजह से कई कंपनियों में प्रोडक्शन बंद हो रहा है. लिहाजा अस्थायी या ठेके में रखे कर्मचारियों की छंटनी भी हो रही है. इस वजह से बेरोजगारी दर में इजाफा हो रहा है. कोरोना संक्रमण के देश के ग्रामीण इलाकों में पहुंचने से स्थिति और खराब हुई है.
शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में बढ़ी बेरोजगारी
इस दौरान शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ कर 14. 71 फीसदी हो गई, जबकि इससे पहले के सप्ताह में यह 11.72 फीसदी थी. सीएमआईई के सीईओ और एमडी महेश व्यास का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर बढ़ने का मतलब यह है कि इन इलाकों में कोविड संक्रमण बढ़ रहा है. एक तरफ बेरोजगारी में इजाफा हो रहा है दूसरी ओर लोग संक्रमण के डर की वजह से मनरेगा के तहत काम नहीं करना चाह रहे हैं. इससे मनरेगा में एनरॉल होने वाले लोगों की तादाद घट रही है. मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक 17 मई तक इस स्कीम के तहत 4.88 करोड़ लोगों ने काम मांगा था इनमें से 4.29 करोड़ लोगों का काम मिला था. लेकिन इनमें से 3.14 करोड़ लोग ही काम करने आए. इससे पता चलता है कि लोग संक्रमण के डर की वजह से इसके तहत काम करने नहीं आ रहे हैं.
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