नई दिल्लीः कोरोना वायरस की दहशत ने दुनियाभर को अपनी चपेट में ले लिया है. कोरोना वायरस या कोविड-19 की चपेट में दुनिया के कई देश आ चुके हैं और 9000 से ज्यादा लोग इस महामारी के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. भारत में 173 लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और चार लोगों की मौत हो चुकी है. कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र और दिल्ली में एक-एक शख्स की मौत हुई है.


कोरोना वायरस के चलते ग्लोबल अर्थव्यवस्था में मचा कोहराम
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का संकट बेहद गंभीर है और इसने जहां पूरी मानवता को खतरे में डाल दिया है वहीं इसके चलते अब देशों की अर्थव्यवस्थाओं के तबाह होने का दौर शुरू हो गया है. पिछले दो महीनों में इस महामारी के असर से विश्व के कई देशों में जहां शेयर बाजार पूरी तरह टूट चुके हैं वहीं अधिकांश देशों को कारोबारी मोर्चे पर भारी दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था जहां पहले से ही मुश्किलों से जूझ रही थी वहीं अब इस महामारी के चलते देश की कई इंडस्ट्री गोता लगा रही हैं.


इसके अलावा विश्व की कई आर्थिक संस्थाओं ने भी इसके चलते ग्लोबल मंदी की आशंका जताई है और ऐसे-ऐसे अनुमान दिए हैं जो इस महामारी के असर को और गहराई से परिभाषित कर रहे हैं. यहां हम बता रहे हैं कि कैसे ग्लोबल संस्थाओं ने कोरोना वायरस के असर को दिखाया है और उससे बचने के उपाय सुझा रही हैं.


इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने जताया ढाई करोड़ नौकरियां जाने का खतरा


इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन यानी ILO ने आशंका जताई है कि कोरोना वायरस की महामारी के चलते विश्व भर में करीब 25 मिलियन या ढाई करोड़ लोगों के बेरोजगार होने का खतरा है. अगर सरकारों ने अपने कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित रखने का प्रयास नहीं किया तो इस वैश्विक महामारी का असर जॉब मार्केट पर देखा जाएगा और लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ सकता है.


हालांकि आईएलओ ने ये भी कहा है कि अगर दुनिया भर की सरकारें सम्मिलित प्रयास करती हैं जैसे 2008-09 की ग्लोबल मंदी के दौरान देखे गए थे तो इसके सामूहिक असर देखे जा सकते हैं और बेरोजगारी के संकट को कुछ कम किया जा सकता है.


ILO ने कहा है कि सरकारों को मिलकर आगे आना होगा और दुनिया भर में बड़े पैमाने पर सम्मिलित प्रयास किए जाने चाहिए जिससे कार्यस्थलों पर कर्मचारियो के लिए मुश्किलें कम हो सकें और आवश्यक सेवाओं पर दबाव ना पड़े. इसके तहत सामाजिक सुरक्षा, समर्थन और कर्मचारियों को रोके रखने जैसे उपाय लिए जाने चाहिए. इसके लिए छंटनी करने की बजाए कर्मचारियों को पेड लीव जैसे मानक अपनाए जा सकते हैं. इसके अलावा सरकारें आर्थिक और टैक्स के मोर्चे पर कुछ राहत दे सकती हैं और छोटे-मझौले उद्योगों के लिए भी कुछ फौरी राहत के लिए एलान कर सकती हैं जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मंदी के गहरे दौर में जाने से रोका जा सके.


अलग-अलग स्थितियों में 53 लाख से लेकर 2.5 करोड़ लोगों की नौकरी जाने का खतरा
ILO के मुताबिक कोरोना वायरस के चलते दो परिदृश्य हो सकते हैं और इसमें दो तरह की संभावनाएं हैं. पहली संभावना जो कि रोजगार के मोर्चे पर इसके आंशिक असर को दिखाएगी और दूसरी संभावना में इसके गहरे असर को देखा जाएगा. अगर पहली स्थिति लागू होती है तो विश्व में करीब 53 लाख लोगों की नौकरियां जा सकती हैं और बेहद खराब दूसरी स्थिति में करीब 2.5 करोड़ लोगों की नौकरियां जाने का खतरा है जो कि कुल मिलाकर 2008-09 जैसी मंदी वाली स्थिति से भी बदतर हो सकता है क्योंकि उस आर्थिक मंदी में करीब 2.2 करोड़ लोगों ने दुनियाभर में अपनी नौकरियां गंवाई थी.


भारत के केंद्रीय बैंक RBI ने किया एलान-10,000 करोड़ रुपये के सरकारी बॉन्ड खरीदेगा


कोरोनावायरस महामारी बढ़ने की वजह से आर्थिक सिस्टम को गहरा धक्का लगा है. इस आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिए भारत के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कहा है कि वह 20 मार्च को 10,000 करोड़ रुपये के सरकारी बॉन्ड के तौर पर ओपन मार्केट ऑपरेशंस को खरीदेगा. इसको सामान्य भाषा में समझाएं तो समझें कि आरबीआई देश के बैंकों में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए बॉन्ड खरीदकर उन्हें फंड मुहैया कराने जा रहा है.


आरबीआई ने एक बयान में कहा है कि कोरोनावायरस महामारी की वजह से कुछ आर्थिक बाजारों की वित्तीय हालत बेहद खस्ता हो रही हैं, ऐसे में यह काफी अहम है कि लिक्विडिटी बढ़ाकर उन्हें स्थिरता दी जाए और इसीलिए आरबीआई ने 10,000 करोड़ रुपये के सरकारी बॉन्ड खरीदने का एलान किया है.


दरअसर भारतीय आर्थिक बाजार कोरोना वायरस की महामारी के चलते भारी दबाव का सामना कर रहा है और यहां के शेयर बाजारों सहित कारोबार के सभी सेगमेंट में भारी गिरावट देखी जा रही है. विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजारों से अपना पैसा बाहर निकाल रहे हैं और हालांकि ऐसा विश्व के सभी देशों के स्टॉक मार्केट में देखा जा रहा है फिर भी भारतीय बाजार के लिए ये स्थिति बेहद खतरनाक हो चली है.


रुपये की स्थिति संभालने का भी प्रयास
बता दें कि आज भारतीय रुपये ने भी अपने रिकॉर्ड निचले स्तर को तोड़ दिया और ये डॉलर के मुकाबले 75 रुपये के स्तर को भी पार कर गया. सरकारी बॉन्ड को खरीदने के जरिए आरबीआई की इस स्थिति को भी सुधारने की कोशिश है. इसके अलावा सरकारी बॉन्ड की ओपन मार्केट में खरीदारी करने के जरिए आरबीआई देश की आर्थिक स्थिति को और खराब होने से बचाना चाहता है और इसके साथ ही निवेशकों का भी भरोसा बनाए रखने का ये एक प्रयास है.


आरबीआई की ये कोशिश इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि इस समय विदेशी और घरेलू निवेशक दोनों डेट इंस्ट्रूमेंट्स में भारी बिकवाली कर रहे हैं और अपने ऐसेट्स को बेचकर अपना पैसा बाजार में न लगाकर अपने पास रखना पसंद कर रहे हैं. ऐसे में खरीदारी का सेंटीमेंट बनाए रखने और निवेशकों के भरोसे को लौटाने के लिए आरबीआई का ये कदम काफी अच्छा साबित हो सकता है.


बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज (BofA) ने घटाया भारत की जीडीपी का अनुमान/ग्लोबल मंदी का खतरा जताया


कारोना वायरस महामारी से वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से मंदी की ओर बढ़ रही है और अब इसे देखते हुए इस वित्तीय सेवा कंपनी बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज ने भारत की विकास के अनुमान को दो दिन में दो बार घटाया है. बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज ने साल 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के अनुमान को 0.90 फीसदी घटा कर 3.1 फीसदी कर दिया है. इसी तरह उसने पूरे वित्त वर्ष के जीडीपी विकास दर के अनुमान को पूरा एक फीसदी कम करके 4.1 फीसदी पर रखा है.


बता दें कि बुधवार को ही बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज ने अप्रैल-जून 2020-21 की जून तिमाही की वृद्धि दर के अनुमान को 0.80 अंक घटा कर 4 फीसदी और चालू वित्त वर्ष की मौजूदा मार्च में खत्म हो रही तिमाही के अनुमान को 4.30 फीसदी से घटा कर 4 फीसदी कर दिया था. बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज ने बुधवार को अगले पूरे वित्त वर्ष के वृद्धि के अनुमान को भी 5.1 फीसदी पर रखा था.


वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दिया ये अनुमान
BofA ने बुधवार को अनुमान लगाया था कि कोरोना वायरस संकट के चलते वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 2020 में गिर कर इस बार 2.2 फीसदी पर आ जाएगी लेकिन अब इसे घटा कर सिर्फ 0.4 फीसदी कर दिया है. इसने इस साल चीन की जीडीपी गिरकर 1.5 फीसदी पर रहने और अमेरिका के जीडीपी में 0.8 प्रतिशत की गिरावट होने का अनुमान लगाया है.


आरबीआई और रुपये के लिए दिया ये अनुमान
बैंक आफ अमेरिका सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक अगले वित्त वर्ष में अपनी नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में एक फीसदी की कमी कर सकता है. ये भी अनुमान दिया गया है कि भारत में साल 2020-21 की दूसरी छमाही में महंगाई दर गिर कर 2.5 फीसदी पर आ जाएगी. वहीं इसमें अच्छे विदेशी मुद्रा भंडार की बदौलत भारतीय रुपये के एक्सचेंज रेट के मजबूत रहने का अनुमान लगाया गया है.


कुल मिलाकर साफ है कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारतीय इकोनॉमी के लिए भी ये भारी संकट की घड़ी है. देश के लिए लगातार आती बुरी खबरों के बीच भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के साथ साथ देश का केंद्रीय बैंक आरबीआई भी कमर कस चुका है और इस महामारी के असर से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि ये खतरा कोई आम खतरा नहीं है.