Infrastructure Projects की लागत 4.73 लाख करोड़ रुपये बढ़ी, मंत्रालय ने जारी की रिपोर्ट
Infrastructure Projects: बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 421 परियोजनाओं की लागत में तय अनुमान से 4.73 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है.
Infrastructure Projects: बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 421 परियोजनाओं की लागत में तय अनुमान से 4.73 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है देरी और अन्य कारणों की वजह से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है.
मंत्रालय ने जारी की रिपोर्ट
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा क्षेत्र की परियोजनाओं की निगरानी करता है. मंत्रालय की फरवरी-2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,565 परियोजनाओं में से 421 की लागत बढ़ी है, जबकि 647 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं.
परियोजनाओं की लागत 22 फीसदी बढ़ी
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इन 1,565 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 21,86,542.05 करोड़ रुपये थी, जिसके बढ़कर 26,59,914.61 करोड़ रुपये पर पहुंच जाने का अनुमान है. इससे पता चलता है कि इन परियोजनाओं की लागत 21.65 प्रतिशत या 4,73,352.56 करोड़ रुपये बढ़ी है.’’
फरवरी 2022 तक कितनी रही लागत?
रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी-2022 तक इन परियोजनाओं पर 13,26,569.75 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 49.87 प्रतिशत है. हालांकि, मंत्रालय का कहना है कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें, तो देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या कम होकर 553 पर आ जाएगी. रिपोर्ट में 631 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है.
परियोजनाओं की औसत
रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही 647 परियोजनाओं में 84 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने, 124 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 327 परियोजनाएं 25 से 60 महीने की और 112 परियोजनाएं 61 महीने या अधिक की देरी में चल रही हैं. इन 647 परियोजनाओं की देरी का औसत 42.60 महीने है.
इन परियोजनाओं की देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है. इनके अलावा परियोजना का वित्तपोषण, विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिये जाने में विलंब, परियोजनाओं की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि की वजह से भी इन परियोजनाओं में विलंब हुआ है.
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