पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से महंगाई का बढ़ना अब तय हो गया है. डीजल की बढ़ी कीमतों के बाद ट्रांसपोर्टरों ने इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डालने का फैसला कर लिया है. वहीं ट्रांसपोर्टरों के पास कैश की कमी शुरू हो गई है. इससे आने वाले दिनों में ट्रांसपोर्टरों के लिए पुरानी कीमतों पर माल ढोने का विकल्प खत्म हो सकता है. ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि डीजल की बढ़ी हुई कीमतों के बाद उनके पास ट्रांसपोर्टेशन चार्ज बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.


महंगे डीजल के इस दौर में मार्केट में टिके रहना मुश्किल


विश्लेषकों का मानना है छोटे ट्रांसपोर्टरों के महंगे डीजल के इस दौर में मार्केट में टिके रहना मुश्किल हो जाएगा. सरकारी तेल कंपनियां अक्टूबर के आखिर से देश के सभी मेट्रो पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ा चुकी हैं. अक्टूबर के आखिर से पेट्रोल में 10 और डीजल में 11 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर चुकी है. शनिवार को मुंबई में डीजल 88.60 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया.


फरवरी में किराये 6 से 8 फीसदी बढ़ गए


डीजल की कीमतें बढ़ने का चौतरफा असर होगा. इससे माल ढोने वाले ट्रक अपना किराया बढ़ा देंगे. जिन उद्योगों में जेनरेटर का इस्तेमाल होता है वहां इनकी कीमतें बढ़ेंगी. टेलीकॉम कंपनियां अपने टावर चलाने के लिए डीजल जेनसेट का इस्तेमाल करती हैं. महंगे डीजल से उनकी लागतें भी बढ़ेंगी. इस सेक्टर के जानकारों का कहना है कि कई ट्रांसपोर्टरों ने अपना किराया बढ़ा दिया है. जनवरी और फरवरी में माल भाड़ा में बढ़ोतरी दिखी. जनवरी में प्रमुख रूटों पर माल भाड़े में 0.75 से 4 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई थी लेकिन फरवरी में किराये 6 से 8 फीसदी बढ़ गए. दरअसल पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों की वजह से महंगाई का बढ़ना तय माना जा रहा है. लेकिन कुछ ट्रांसपोर्टरों के लिए कारोबार में टिके रहना मुश्किल हो रहा है. उनकी ऑपरेटिंग कॉस्ट लगातार बढ़ रही है. ऑपरेशनल कॉस्ट बढ़ जाने की वजह से दिक्कतें आ रही हैं.


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