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Demonetisation: देश में नोटबंदी के बाद भी कम नहीं हुआ कैश सर्कुलेशन, चलन में करेंसी 83 फीसदी बढ़ी

Demonetisation Verdict: देश में नोटबंदी का उद्देश्य काले धन की रोकथाम और डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देने के लिए बताया गया था पर 2016 के बाद से अब तक कैश का प्रयोग कम नहीं हुआ है.

Demonetisation Verdict: नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में 2016 में नोटबंदी करने के केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया है. इसके साथ ही नोटबंदी के खिलाफ की गई 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है. 5 जस्टिस की बेंच में 4 ने बहुमत से नोटबंदी के पक्ष में फैसला दिया. वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय अलग रही. 

8 नवंबर 2016 को हुई थी नोटबंदी

8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने देश में नोटबंदी लागू करके अचानक देश की जनता को चौंका दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की रात 8 बजे जब लाइव प्रसारण के जरिए आकर ये घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि देश में चल रहे 500 और 1000 रुपये के नोट अब ये लीगल टेंडर नहीं होंगे, ये जानकर देश की आम जनता हैरानी में आ गई. ये नोटबंदी भारत के इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक घटनाओं में से एक थी और इसने राजनीति के आयाम पर भी बड़ा असर डाला. 

देश में चलन में मौजूद करेंसी पर ज्यादा असर नहीं पड़ा

हालांकि आज जब हम नोटबंदी के असर की बात करते हैं तो नोटबंदी का देश में चलन में मौजूद करेंसी (सीआईसी) पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है. नोटबंदी की घोषणा आठ नवंबर, 2016 को की गई थी. इसके तहत 500 और 1,000 रुपये के ऊंचे मूल्य के नोट बंद कर दिए गए थे. नोटबंदी की घोषणा के बाद आज चलन में मुद्रा करीब 83 फीसदी बढ़ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार के नोटबंदी के फैसले को उचित ठहराया है.

डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए लागू की गई थी नोटबंदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को 1,000 रुपये और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी. इसके पीछे उनका उद्देश्य देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन के प्रवाह को रोकना था. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, मूल्य के संदर्भ में चलन में मुद्रा या नोट चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 23 दिसंबर, 2022 को 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गए.

हालांकि, नोटबंदी के तुरंत बाद सीआईसी छह जनवरी, 2017 को करीब 50 फीसदी घटकर लगभग नौ लाख करोड़ रुपये के निचले स्तर तक आ गई थी. चलन में मुद्रा चार नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये थी. पुराने 500 और 1,000 बैंक नोटों को चलन से बाहर करने के बाद यह पिछले छह वर्षों का सबसे निचला स्तर था. उस समय चलन में कुल नोटों में बंद नोटों का हिस्सा 86 फीसदी था.

अब तक करेंसी सर्कुलेशन में 83 फीसदी की तेजी

चलन में मुद्रा में छह जनवरी, 2017 की तुलना में तीन गुना या 260 फीसदी से ज्यादा का उछाल देखा गया है, जबकि चार नवंबर, 2016 से अब तक इसमें करीब 83 फीसदी का उछाल आया है. जैसे-जैसे प्रणाली में नए नोट डाले गए चलन में मुद्रा सप्ताह-दर-सप्ताह बढ़ती हुई वित्त वर्ष के अंत तक अपने चरम यानी 74.3 फीसदी तक पहुंच गई. इसके बाद जून, 2017 के अंत में यह नोटबंदी-पूर्व के अपने शीर्ष स्तर के 85 फीसदी पर थी.

नोटबंदी के कारण सीआईसी में छह जनवरी, 2017 तक लगभग 8,99,700 करोड़ रुपये की गिरावट आई, जिससे बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. यह नकद आरक्षित अनुपात (आरबीआई के पास जमा का फीसदी) में लगभग नौ फीसदी की कटौती के बराबर था. इससे रिजर्व बैंक के तरलता प्रबंधन परिचालन के समक्ष चुनौती पैदा हुई. इससे निपटने के लिए केंद्रीय बैंक ने तरलता समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत विशेष रूप से रिवर्स रेपो नीलामी का इस्तेमाल किया.

चलन में करेंसी सर्कुलेशन बढ़ा ही है

सीआईसी 31 मार्च, 2022 के अंत में 31.33 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 23 दिसंबर, 2022 के अंत में 32.42 लाख करोड़ रुपये हो गई. नोटबंदी के साल को छोड़ दिया जाए, तो चलन में मुद्रा बढ़ी ही है. यह मार्च, 2016 के अंत में 20.18 फीसदी घटकर 13.10 लाख करोड़ रुपये पर आ गई. 31 मार्च, 2015 के अंत में सीआईसी 16.42 लाख करोड़ रुपये थी. नोटबंदी के अगले साल में यह 37.67 फीसदी बढ़कर 18.03 लाख करोड़ रुपये हो गई. वहीं मार्च, 2019 के अंत में 17.03 फीसदी बढ़कर 21.10 लाख करोड़ रुपये और 2020 के अंत में 14.69 फीसदी बढ़कर 24.20 लाख करोड़ रुपये रहा.

पिछले दो सालों में मूल्य के संदर्भ में सीआईसी की वृद्धि दर 31 मार्च, 2021 के अंत में 16.77 फीसदी के साथ 28.26 लाख करोड़ रुपये और 31 मार्च, 2022 के अंत में 9.86 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 31.05 लाख करोड़ रुपये थी. सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत के फैसले में सरकार के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये मूल्यवर्ग के नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा है कि इस मामले में निर्णय लेने की प्रक्रिया दोषरहित थी.

पांच जस्टिस में से चार की राय एकमत, एक जस्टिस की राय अलग

जस्टिस एस ए नजीर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के संबंध में फैसले लेते समय काफी संयम बरतना होगा और न्यायालय न्यायिक समीक्षा करके कार्यपालिका के फैसले का स्थान नहीं ले सकता है. जस्टिस बी वी नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र को दिए गए अधिकार के बारे में बहुमत के फैसले से असहमति जताई और तर्क दिया कि 500 ​​रुपये और 1000 रुपये की सीरीज के नोटों को कानून के जरिये समाप्त किया जाना था न कि नोटिफिकेशन के जरिये.

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