खुदरा महंगाई (Retail Inflation) की दरों में भले ही थोड़ी नरमी दिखने लगी हो, लेकिन आम लोगों को महंगाई की मार से फिलहाल राहत मिलने के संकेत नहीं दिख रहे हैं. एक तरफ रोजाना इस्तेमाल होने वाले दूध व दूध से बने उत्पादों के दाम लगातार बढ़े हैं, तो दूसरी तरफ अब नहाने से लेकर कपड़ा धोने तक के लिए लोगों को ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है. हो सकता है कि आने वाले दिनों में साबून, शैम्पू से लेकर डिटर्जेंट तक के दाम बढ़ जाएं.


इस सामग्री पर शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव


अंग्रेजी अखबार ईटी की एक खबर के अनुसार, साबून, शैम्पू व डिटर्जेंट जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होने वाली एक प्रमुख कच्ची सामग्री पर टैक्स बढ़ाने का प्रस्ताव है. वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले डाइरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज (DGTR) ने करीब दो महीने पहले सुझाव दिया था कि इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से आने वाले सेचुरेटेड फैटी अलकोहल पर टैक्स बढ़ाए जाने चाहिए. उसने इस सामग्री पर एंटी डंपिंग ड्यूटी की दरें बढ़ाने के साथ ही अतिरिक्त काउंटरवेलिंग ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव दिया है.


बड़े पैमाने पर होता है इस्तेमाल


अगर सरकार डाइरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज के प्रस्तावों को मान लेती है तो आने वाले दिनों में सेचुरेटेड फैटी अलकोहल का आयात महंगा हो जाएगा, क्योंकि इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड से सेचुरेटेड फैटी अलकोहल खरीदने पर ज्यादा शुल्क लगेगा. इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड सेचुरेटेड फैटी अलकोहल के प्रमुख स्रोत देश हैं. वहीं सेचुरेटेड फैटी अलकोहल का इस्तेमाल साबून, शैम्पू और डिटर्जेंट बनाने में बड़े पैमाने पर होता है. जब यह रॉ मटीरियल महंगा होगा तो स्वाभाविक है कि कंपनियां बढ़ी लागत का बोझ ग्राहकों के ऊपर भी डालेगी.


इतने लोगों को मिल रहा है काम


आपको बता दें कि इंडियन सर्फेक्टेंट इंडस्ट्री यानी साबून, शैम्पू व डिटर्जेंट उद्योग का अनुमानित आकार करीब 2.5 बिलियन डॉलर का है. इस इंडस्ट्री में सीधे तौर पर 9 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इंडस्ट्री पर होने वाला कोई भी नकारात्मक असर इन हजारों लोगों की आजीविका को भी प्रभावित कर सकता है.


इंडस्ट्री बॉडी को सता रही ये चिंता


ईटी की खबर के अनुसार, साबून, शैम्पू व डिटर्जेंट उद्योग के संगठन इंडियन सर्फेक्टेंट ग्रुप ने डाइरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज के प्रस्तावों पर चिंता जाहिर की है. इसे लेकर आईएसजी ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखकर सेचुरेटेड फैटी अलकोहल पर शुल्क बढ़ाने के प्रस्तावों को अमल में नहीं लाने का अनुरोध किया है. उसे चिंता है कि ऐसा करने से इंडस्ट्री की कंपनियों की मुनाफा कमाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है और ऐसे में उन्हें अपना परिचालन समेटना पड़ सकता है.


कंपनियां नहीं उठा सकेंगी बोझ


इंडियन सर्फेक्टेंट ग्रुप ने दावा किया है कि अभी तक साबून, शैम्पू व डिटर्जेंट बनाने वाली कंपनियां बढ़ी लागत का बोझ खुद उठा रही हैं. हालांकि अगर ऐसे मौके पर प्रमुख कच्ची सामग्रियों को लेकर शुल्क बढ़ता है तो वे बोझ नहीं उठा पाएंगी, और अंतत: इसका परिणाम उत्पादों के दाम में बढ़ोतरी के रूप में होगी.


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