इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Return) भरने के कई फायदे होते हैं. फिर से इनकम टैक्स रिटर्न भरने का सीजन शुरू हो चुका है और फिलहाल इसकी अंतिम तारीख (ITR Last Date) 31 जुलाई है. जिन लोगों की कमाई कर के दायरे में है, उनके लिए रिटर्न फाइल करना अनिवार्य हो जाता है. ऐसे मामलों में इनकम टैक्स रिटर्न नहीं भरना या देर से फाइल करना मुश्किलें खड़ा कर देता है. देर से आईटीआर भरने के एक मामले में हाल ही में कुछ लोगों को जेल की सजा तक हुई है.
इन लोगों को हो गई जेल की सजा
यह मामला है ज्वेलरी कंपनियों सलोनी ज्वेलर्स प्राइवेट लिमिटेड और येलो ज्वेलर्स प्राइवेट लिमिटेड के डाइरेक्टर्स जितेंद्र जैन और किरण जैन का. इन दोनों को देर से इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के कारण 6-6 महीने के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई है. हालांकि इन दोनों का मामला आम न होकर काफी अलग है.
बाद में जमा किया इतना भारी टैक्स
यह मामला है आकलन वर्ष 2014-15 यानी वित्त वर्ष 2013-14 का. दोनों ने तक समय पर आईटीआर फाइल नहीं किया था. हालांकि बाद में उन्होंने न सिर्फ आईटीआर फाइल किया था, बल्कि करीब 4.50 करोड़ रुपये का टैक्स भी जमा किया था. हालांकि बाद में गलती को सुधारने का प्रयास नाकाफी साबित हुआ. कोर्ट ने सरकारी वकील की इस दलील को मान लिया कि दोनों टैक्सपेयर से रिटर्न भरने में गलती से भूल नहीं हुई थी, बल्कि उन्होंने जान-बूझकर ऐसा किया था. यही कारण है कि कोर्ट ने उन्हें राहत देने के बजाय जेल भेजने का आदेश सुनाया.
भारी पड़ गया करोड़ों का कैश
सरकारी वकील ने सुनवाई के दौरान दलील दी थी कि दोनों आरोपी आदतन अपराधी हैं और इस तरह के अन्य मामले भी उनके खिलाफ लंबित हैं. दरअसल दोनों आरोपियों ने 2016 में करीब 12 करोड़ रुपये कैश में जमा कराए थे. वहीं बचाव में उनके वकीलों का कहना था कि आकलन वर्ष 2014-15 के दौरान वे वित्तीय संकटों का सामना कर रहे थे, इस कारण रिटर्न भरने में उनसे देरी हुई.
नोटबंदी के बाद किया था डिपॉजिट
कोर्ट ने बचाव की यह दलील खरिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि अगर बिजनेस घाटे में चल रहा था और दिक्कतें थीं तो कुछ ही महीने बाद उन्होंने 12 करोड़ रुपये कैश कैसे जमा करा दिया... इससे पता चलता है कि उनकी वित्तीय स्थिति वास्तव में खराब नहीं थी, बल्कि यह बहाना है. अगर उनके पास आकलन वर्ष 2014-15 के दौरान कमाई नहीं होती तो वे नोटबंदी के तुरंत बाद इतनी बड़ी मात्रा में नकदी कहां से जमा कराते. कोर्ट का यह फैसला अप्रैल में आया था, लेकिन आदेश की कॉपी इस महीने सामने आई.