अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन दिनों अपनी धमकियों को लेकर सुर्खियों में हैं. खासतौर से टैरिफ वाली धमकियों को लेकर. कुछ दिनों पहले ही ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया के माध्यम से बताया था कि वह पदभार ग्रहण करते ही चीन, कनाडा और मैक्सिको पर अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ बढ़ा देंगे. लेकिन, अब ये टैरिफ वाली धमकी उन्होंने BRICS देशों को दी है, जिसमें भारत भी शामिल है.


आपको बता दें, डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS देशों को चेतावनी दी है कि अगर वे डॉलर के विकल्प के रूप में अपनी करेंसी लाते हैं तो अमेरिका उन पर 100 फीसदी टैरिफ लगा देगा. यानी इन देशों से आयात होने वाले सभी सामानों पर 100% टैरिफ लग जाएगा. अब सवाल उठता है कि आखिर डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के पीछे का कारण क्या है. चलिए, इस खबर में आपको बताते हैं कि अगर BRICS देश डॉलर के विकल्प में अपनी करेंसी लाते हैं तो इससे अमेरिका को कितना बड़ा नुकसान होगा.


ट्रंप ने क्या-क्या कहा


अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “डॉलर से दूर होने की BRICS देशों की कोशिश को हम चुपचाप देखते रहें, यह दौर अब खत्म हो गया है. हमें ब्रिक्स देशों से प्रतिबद्धता की जरूरत है कि वे ना तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएंगे और ना ही अमेरिकी डॉलर की जगह लेने के लिए किसी दूसरी मुद्रा का समर्थन करेंगे. अगर उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें 100 फीसदी टैरिफ का सामना करना पड़ेगा.”


उन्होंने आगे लिखा, “अगर BRICS देश ऐसा करते हैं तो वह शानदार अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपने प्रोडक्ट नहीं बेच पाएंगे. वे किसी दूसरी जगह की तलाश कर सकते हैं. इसकी कोई संभावना नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्रिक्स अमेरिकी डॉलर की जगह ले पाएगा और ऐसा करने वाले किसी भी देश को अमेरिका को गुडबॉय कह देना चाहिए.”


BRICS देशों की करेंसी से अमेरिका को कितना नुकसान होगा?


डॉलर की मांग कम होने से इसकी वैल्यू में गिरावट हो सकती है, जिससे अमेरिकी वित्तीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है. इसके अलावा, डॉलर की कमजोरी से आयात महंगा हो जाएगा, जिससे अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ेगा. वहीं, अमेरिका जो बार-बार आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए डॉलर का इस्तेमाल करता है, अगर डॉलर की पकड़ कमजोर होती है, तो अमेरिकी प्रतिबंधों का असर भी कम हो जाएगा.


इसके अलावा, बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में होने वाले व्यापारिक लेनदेन, अंतरराष्ट्रीय भुगतान, कर्ज, इंपोर्ट और एक्सपोर्ट अमेरिकी डॉलर में ही होता है. वैश्विक मुद्रा भंडार की बात करें तो इसमें डॉलर का हिस्सा 59 फीसदी है. जबकि, दुनिया के कुल कर्ज में 64 फीसदी का लेनदेन डॉलर में ही होता है. वहीं, अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में भी डॉलर की एक बड़ी हिस्सेदारी लगभग 58 फीसदी है. विदेशी भुगतानों में भी डॉलर का दबदबा है. यहां इसकी हिस्सेदारी 88 फीसदी है. ऐसे में अगर, BRICS देश डॉलर के विकल्प में अपनी करेंसी लाते हैं तो इसका सीधा असर अमेरिका और उसकी मुद्रा डॉलर पर दिखाई देगा. यही वजह है कि अमेरिका ब्रिक्स देशों की इस पहल से डरा हुआ है.


ब्रिक्स देशों की अपनी करेंसी


डोनाल्ड ट्रंप डॉलर के विकल्प में ब्रिक्स देशों की जिस करेंसी को लेकर चिंतित हैं, उसकी बात अगस्त 2023 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में हुई थी. इस सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के बीच आपसी व्यापार और निवेश के लिए कॉमन करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था. इस साल भी अक्टूबर में हुए BRICS देशों के शिखर सम्मेलन में, रूस ने इस प्रस्ताव को लेकर जबरदस्त पैरवी की थी.


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