अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के जरिये एच-1बी समेत कई वर्किंग वीजा पर बैन की अवधि बढ़ा दी है. नए आदेश के मुताबिक एच-1बी, एच-2बी एच-4, J और L वीजा समेत कई वर्किंग वीजा पर 31 दिसंबर, 2020 तक रोक लगा दी है. आप्रवासियों पर सबसे ज्यादा असर एच-1बी पर पाबंदी का होगा क्योंकि इसी के जरिये सबसे ज्यादा आप्रवासी अमेरिका में काम करने के लिए जाते हैं. सबसे ज्यादा एच-1बी वीजा पर भारतीय आईटी कंपनियों के पेशेवर अमेरिका जाते हैं.


एच-1बी वीजा जारी करने के नियम भी बदले


इसके साथ ही एच-1बी वीजा देने का नियम भी बदल दिया गया है. पहले आवेदन के बाद लॉटरी से इन वीजा पाने वालों का चयन होता था. लेकिन अब उन लोगों को यह वीजा मिलेगा,जिनकी सैलरी ज्यादा है. हालांकि भारतीय आईटी कंपनियों ने एच-1बी वीजा पर निर्भरता धीरे-धीरे घटाना शुरू कर दिया है,लेकिन उनके मार्जिन पर काफी असर पड़ेगा क्योंकि उन्हें ज्यादा वेतन पर अमेरिकी कर्मचारियों को रखना पड़ेगा.


अमेरिका में मौजूद कई ग्लोबल टेक कंपनियां अपने बैकएंड डेटाबेस के अपडेशन का काम भारतीय कंपनियों को दे देती हैं लेकिन ज्यादा कौशल वाले काम के लिए उन्हें कंपनी की साइट पर विशेषज्ञ कर्मचारियों को बुलाना पड़ता है. भारतीय कंपनियां ऐसे ही असाइनमेंट पर अपने कर्मचारियों को एच-1बी वीजा पर भेजती हैं.


गूगल और टेस्ला ने किया विरोध


एक बयान में व्हाइट हाउस ने कहा है कि कोरोनावायरस से बड़ी तादाद में अमेरिकी कर्मचारियों के रोजगार को चोट पहुंची है. ऐसे वक्त में जब उनके सामने संकट की स्थिति है तो बाहर से आए लोगों को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए. गूगल की संचालक कंपनी अल्फाबेट इंक. के सीईओ सुंदर पिचई और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने अमेरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले का विरोध किया है. अमेरिका हर साल 85 हजार एच-1बी वीजा जारी करता है. इनमें से 65 हजार अति कुशल प्रोफेशनल को दिए जाते हैं. एच-1 बी के आवेदकों में बड़ी संख्या में भारतीय प्रोफेशनल होते हैं.