म्यूचुअल फंड में निवेश लगातार बढ़ रहा है. एनएसई की हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारतीय शेयर बाजार में म्यूचुअल फंड की होल्डिंग रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई है. इससे पता चलता है कि म्यूचुअल फंड की विभिन्न स्कीम को निवेशकों से बढ़िया रिस्पॉन्स मिल रहा है और वे खूब पैसे लगा रहे हैं.


कैसे करते हैं म्यूचुअल फंड में निवेश?


म्यूचुअल फंड के निवेशक दो तरीके से पैसे लगाते हैं. एक तरीका है लमसंप निवेश करने का. इस तरीके में निवेशक एक ही बार में अपने पसंदीदा म्यूचुअल फंड स्कीम में पैसे लगा देते हैं और तय समय तक निवेश को बने रहने देते हैं. यह तरीका सभी निवेशकों के लिए ठीक साबित नहीं होता है. खास तौर पर खुदरा निवेशकों के लिए यह तरीका कुछ मुश्किल हो जाता है, क्योंकि इसमें एक ही बार बड़ी रकम निवेश करने की जरूरत पड़ती है.


क्या है म्यूचुअल फंड एसआईपी?


ऐसे में म्यूचुअल फंड में निवेश करने का दूसरा तरीका काम आता है, जो एसआईपी का है. एसआईपी का मतलब हुआ सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट की प्लान. यानी निवेश करने का ऐसा तरीका, जिसमें आप टुकड़ों में रकम डाल सकते हैं. निवेशक इस तरीके से निवेश करने में अपनी सुविधा के हिसाब से इंटरवल चुन सकते हैं. मसलन आपको हर महीने निवेश करना है या हर तीन महीने पर, आप अपनी सुविधा से उपलब्ध विकल्पों में से चुन सकते हैं. इसमें एक बार में बड़ी रकम की आवश्यकता नहीं रह जाती है.


इस कारण लोकप्रिय है एसआईपी


खुदरा निवेशकों के बीच म्यूचुअल फंड एसआईपी काफी लोकप्रिय है. इस तरह खुदरा निवेशक धीरे-धीरे निवेश करते जाते हैं और अपने वित्तीय लक्ष्य के हिसाब से बड़ा फंड जमा कर पाते हैं. एसआईपी से इंस्टॉलमेंट में निवेश करने की सुविधा इसकी लोकप्रियत का प्रमुख कारण है. सुविधा के लिए लोग एसआईपी इंस्टॉलमेंट के लिए ऑटो डेबिट सेट कर लेते हैं. इससे उन्हें ड्यू डेट याद रखने के झंझट से छुटकारा मिल जाता है और हर महीने की तय तारीख पर एक तय अमाउंट उनके अकाउंट से डिडक्ट होकर चुनी गई स्कीम में जमा हो जाता है.


सुविधा के साथ ये नुकसान भी


एसआईपी में यह सुविधा तो मिलती है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं. जैसे मान लीजिए कि किसी महीने जिस तारीख को आपके अकाउंट से इंस्टॉलमेंट के पैसे कटने हैं, उस तारीख पर आपके अमाउंट में पर्याप्त बैलेंस नहीं रह पाता है. ऐसे में ऑटो डेबिट बाउंस हो जाएगा. इसके लिए बैंक आपसे पेनल्टी वसूल कर सकते हैं. दरअसल एसआईपी ऑटो डेबिट की फैसिलिटी उसी तरह काम करती है, जैसे लोन की ईएमआई ऑटो डेबिट की सुविधा. ये सुविधाएं ईसीएस यानी इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस या एनएसीएच नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस के जरिए संचालित होती हैं. इनमें बाउंस होने पर 100 रुपये से 750 रुपये तक जुर्माना लग सकता है.


ये दो तरीके बचा सकते हैं पेनल्टी


इससे बचने के लिए आप ऑटो डेबिट के बजाय मैन्युअली इंस्टॉलमेंट जमा कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड कंपनियां आम तौर पर एसआईपी इंस्टॉलमेंट बाउंस होने पर पेनल्टी नहीं वसूल करती हैं. इससे निवेशकों को 3 महीने तक की छूट मिलती है. वहीं एक और विकल्प एसआईपी को पॉज करने का है. अलग-अलग म्यूचुअल फंड कंपनियों के नियम इस बारे में अलग होते हैं. आप अपनी म्यूचुअल फंड कंपनी के संपर्क कर इसके बारे में विस्तार से जान सकते हैं. आम तौर पर कंपनियां निवेशकों को 6 महीने तक एसआईपी पॉज करने की सुविधा देती हैं.


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