अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले महीने से भारत पर लगने वाले रेसिप्रोकल टैरिफ को लेकर अडिग हैं. वह अपने इस कदम से पीछे हटते नहीं दिख रहे हैं. हालांकि, इस रेसिप्रोकल टैरिफ का असर सिर्फ भारत पर नहीं बल्कि अमेरिका पर भी पड़ेगा. खासतौर से अमेरिकी स्वास्थ्य व्यवस्था पर इसका असर व्यापक रूप से दिख सकता है.


दरअसल, अमेरिका में बिकने वाली जेनेरिक दवाएं यानी सस्ती दवाओं में आधे से ज्यादा हिस्सा भारतीय दवाओं का है. अमेरिका के ज्यादातर गरीब इन्हीं दवाओं की वजह से ठीक होते हैं. ऐसे में रेसिप्रोकल टैरिफ की वजह से इन दवाओं को बनाने वाली कंपनियां अमेरिकी बाजार छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगी और उसका असर सीधे-सीधे अमेरिका के गरीब बीमारों पर होगा.


अमेरिका को होगा अरबों डॉलर का नुकसान


बीबीसी पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में प्रिस्क्रिप्शन वाली 10 दवाइयों में 9 भारत जैसे देशों से आयात होने वाली दवाइयां ही होती हैं. यही वजह है कि इन सस्ती दवाइयों से अमेरिका को हर साल अरबों डॉलर का फायदा होता है. कंसल्टिंग फर्म आईक्यूवीआईए के एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में, भारतीय जेनेरिक दवाओं से अमेरिका को 219 अरब डॉलर की बचत हुई. अब अगर ये भारतीय कंपनियां टैरिफ की वजह से अमेरिकी बाजार से हटीं तो अमेरिका को हर साल इससे कई सौ अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है. इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में मानसिक स्वास्थ्य के लिए जो दवाइयां प्रिसक्राइब्ड की जाती हैं, उनमें 60 फीसदी भारत में बनी होती हैं.


भारतीय कंपनियों को भी होगा नुकसान


ऐसा नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ से सिर्फ अमेरिका को ही नुकसान होगा. भारतीय फार्मा कंपनियों को भी इससे भारी नुकसान होने की संभावना है. GTRI की रिपोर्ट के अनुसार, भारत हर साल अमेरिका को करीब 12.7 अरब डॉलर की दवाइयां निर्यात करता है, सबसे बड़ी बात कि इन दवाइयों पर उसे लगभग ना के बराबर टैक्स देना पड़ता है. लेकिन, रेसिप्रोकल टैरिफ के बाद इन कंपनियों के निर्यात पर लगभग 11 फीसदी का टैरिफ लग सकता है, इससे उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.


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