नोटबंदी पर अर्थशास्त्रियों की एक राय नहीं, संसदीय समिति के सामने पेश होंगे RBI गवर्नर
नई दिल्लीः नोटबंदी और उसके प्रभाव को लेकर देश के जाने माने अर्थशास्त्रियों में एक राय नहीं है. बल्कि यूं कहें कि ज़्यादातर जानकार नोटबंदी के फैसले को सही नहीं मानते हैं. कम से कम गुरूवार को वित्त मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थायी समिति की बैठक को अगर पैमाना माना जाए तो यही बात साबित होती है.
संसदीय समिति की बैठक में आए 4 अर्थशास्त्रियों में से 2 ने तो सीधे तौर पर नोटबंदी की आलोचना की जबकि एक ने समर्थन किया. चौथे अर्थशास्त्री ने सीधे तौर पर तो आलोचना नहीं की लेकिन उसकी सफलता को लेकर आशंकाएं ज़रूर ज़ाहिर कीं. समिति की बैठक में नेशनल इंस्टियूट ऑफ पब्लिक फिनांस एंड पॉलिसी की कविता राव, भारत सरकार के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् रहे प्रणब सेन और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के चेयरमैन महेश व्यास ने नोटबंदी पर आशंकाएं ज़ाहिर करते हुए इसकी आलोचना की. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के राजीव कुमार ही एकमात्र ऐसे अर्थशास्त्री थे जिन्होंने खुलकर नोटबंदी का समर्थन किया.
नोटबंदी के क़दम की आलोचना करने वाले अर्थशास्त्रियों का सबसे प्रमुख तर्क ये था कि काला धन का एक बहुत बड़ा हिस्सा कैश में ना होकर आर्थिक व्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों में रहता है. उनका कहना था कि ऐसे में अगर लोगों को हो रही परेशानी और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले बुरे नतीज़ों को देखा जाए तो ये क़दम ज्यादा महंगा साबित हो रहा है. इनमें से एक अर्थशास्त्री ने तो यहां तक कहा कि लोग अपनी रोज़ी रोटी छोड़कर लाइन में लग रहे हैं. और अगर इस नुकसान को देखा जाए तो नोटबंदी ज्यादा महंगा सौदा है.
हालांकि इस तर्क पर बैठक में मौजूद एक बीजेपी सांसद ने आपत्ति जताते हुए पूछा कि चुनावों के दौरान लाइन में खड़े होने से भी लोगों को जो नुकसान होता है क्या उसे भी चुनाव आयोग के ख़र्चे में शामिल किया जाए ?
- बैठक में मौजूद सदस्यों ने अर्थशास्त्रियों से मोटे तौर पर जानना चाहा कि
- देश में जीडीपी और टैक्स और जीडीपी में कैश का अनुपात क्या है ?
- नोटबंदी से महंगाई के स्तर पर क्या असर पड़ेगा ?
- देश की विकास दर पर इसका क्या असर पड़ेगा ?
- कैशलेस अर्थव्यवस्था को अपनाने में क्या-क्या चुनौतियां हैं ?
आज की बैठक में आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को भी आना था लेकिन आज वो नहीं आ सके. पटेल अब 19 जनवरी की बैठक में इस विषय पर समिति के सामने अपनी बात रखेंगे. वहीं 12 जनवरी को वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी समिति के सामने पेश होंगे. समिति के एक सदस्य ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि देश में डिजिटल व्यवस्था की रूप रेखा पर चर्चा के लिए आईटी क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी बुलाया जाएगा.