कमाई के मामले में कंपनियों की राह मुश्किल, शहरी क्षेत्र में मांग में कमी से कॉरपोरेट सेक्टर में निराशा
कंपनियों शहरी इलाकों में में डिमांड कम होने से भी परेशान हैं. उदाहरण के लिए जुलाई-सितंबर तिमाही में मारुति सुजुकी की रूरल रिटेल मांग दस फीसदी बढ़ गई थी. जबकि शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में डिमांड सपाट रही थी.
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जुलाई-सितंबर तिमाही में अच्छा प्रदर्शन कर चुकीं भारतीय कंपनियों के लिए अगली तिमाही के लिए राह मुश्किल लग रही है. इस तिमाही में कंपनियों को अपनी बिक्री में खास इजाफे की संभावना नहीं दिख रही है. दरअसल सितंबर तिमाही के दौरान रूरल सेक्टर की मांग में इजाफा, कुछ चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी, कंपनियों के खर्च पर होने वाली बचत और आईटी कंपनियों के बेहतर प्रदर्शन की वजह से कॉरपोरेट सेक्टर अच्छी स्थिति में दिख रहा था.
सितंबर तिमाही में अच्छा प्रदर्शन लेकिन आग राह कठिन
लेकिन आगे की तिमाही का रास्ता मुश्किल लग रहा है. इस तिमाही में कंपनियों को रेवेन्यू में किसी खास इजाफे की संभावना नहीं दिख रही है. सितंबर तिमाही में रेवेन्यू में खास इजाफा नहीं हुआ था लेकिन कॉस्ट कटिंग की वजह से मुनाफे पर ज्यादा दबाव नहीं था. कंपनियों को इस त्योहारी सीजन में डिमांड में बढ़ोतरी और बढ़ी हुई खपत का फायदा मिलने की उम्मीद है लेकिन यह रफ्तार आगे भी बरकरार रहेगी, इसकी कोई खास संभावना नहीं दिख रही है. कुछ कंपनियों के प्रतिनिधियों का कहना है कि आने वाले समय में कंपनियों का ऑपरेटिंग मार्जिन पर असर पड़ने वाला है.
शहरी डिमांड न बढ़ने से परेशानी
कंपनियों शहरी इलाकों में में डिमांड कम होने से भी परेशान हैं. उदाहरण के लिए जुलाई-सितंबर तिमाही में मारुति सुजुकी की रूरल रिटेल मांग दस फीसदी बढ़ गई थी. जबकि शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में डिमांड सपाट रही थी. अच्छी बात यह है कि रूरल डिमांड में इजाफा हो रहा है. इसके साथ ही ब्लू-कॉलर रोजगार में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. इससे हालात थोड़े बेहतर होते नजर आ रहे हैं लेकिन अर्बन सेक्टर की मांग में कमी अभी भी कंपनियों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है.
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