देश के विनिर्माण क्षेत्र में जुलाई का महीना थोड़ा सुस्त साबित हुआ. बीते महीने के दौरान कारखानों के सामने नए ऑर्डर की वृद्धि की गति कम होने से दिक्कतें आईं. इसके चलते जुलाई महीने में विनिर्माण क्षेत्र की तरक्की की रफ्तार कम रही. हालांकि रोजगार के सृजन के मौके पर शानदार प्रदर्शन का दौर बरकरार रहा.


इतना रहा मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई का आंकड़ा


एसएंडपी ग्लोबल के द्वारा तैयार एचएसबीसी फाइनल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जुलाई महीने में कम होकर 58.1 पर आ गया. उससे एक महीने पहले यानी जून में यह आंकड़ा बढ़कर 58.3 पर पहुंच गया. मतलब एक महीने पहले की तुलना में जुलाई के दौरान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गतिविधियों में नरमी आई. हालांकि रफ्तार कम होने के बाद जुलाई का महीना विनिर्माण के लिए अच्छा ही रहा है. यह लगातार 36वां महीना है, जब देश के विनिर्माण क्षेत्र में तेजी आई है.


पीएमआई इंडेक्स से क्या पता चलता है?


पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स के आंकड़े को आर्थिक लिहाज से महत्वपूर्ण इंडिकेटर माना जाता है. एसएंडपी ग्लोबल के द्वारा भारत समेत प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मैन्युफैक्चरिंग व सर्विस सेक्टर की स्थिति बताने के लिए इंडेक्स तैयार किया जाता है. अगर किसी महीने पीएमआई का आंकड़ा 50 से कम रहता है तो माना जाता है गतिविधियों में गिरावट आई है. वहीं इंडेक्स 50 से ज्यादा रहने पर गतिविधियों में तेजी का पता चलता है. भारत में जुलाई 2021 से मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई का आंकड़ा लगातार 50 से ऊपर बना हुआ है.


ऐतिहासिक आंकड़ों के हिसाब से अच्छी रफ्तार


एचएसबीसी की ग्लोबल इकोनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी का कहना है कि जुलाई महीने में भारत के विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियों के बढ़ने की रफ्तार में मामूली सुस्ती आई है, लेकिन ज्यादातर कंपोनेंट मजबूत रहे हैं. ऐसे में रफ्तार में हल्की सुस्ती कोई चिंता की बात नहीं है. जून महीने से रफ्तार कम हो रही है, लेकिन ऐतिहासिक आंकड़ों के हिसाब से देखें तो कम होने के बाद भी रफ्तार शानदार है.


नए ऑर्डर की रफ्तार थमने का असर


एचएसबीसी के अनुसार, जुलाई महीने में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर नए ऑर्डर की रफ्तार कम होने का असर पड़ा है. नए ऑर्डर में जिस रफ्तार से तेजी आ रही थी, उस पर जुलाई में कुछ ब्रेक लगा है. हालांकि इंटरनेशनल सेल में 13 साल से ज्यादा समय की सबसे तेज तरक्की आई. नौकरियों का सृजन शानदार रफ्तार से हुआ और बिक्री की कीमतों में अक्टूबर 2013 के बाद की सबसे तेज वृद्धि देखी गई.


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