नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने भारतीय बैंकिंग सेक्टर पर बेहद गंभीर टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि भारतीय बैंकिंग सेक्टर अधमरा हो चुका है. इसे पुनर्जीवित करने के लिए बहुत अधिक पूंजी की जरूरत है. उन्होंने कहा कि उनकी नजर में भारतीय बैंकिंग सेक्टर को सिर्फ भारतीय पूंजी तक सीमित रखना गलती है. ऐसा लगता है कि हमने यह अवधारणा बना ली है कि भारतीय पूंजीपति अच्छे होते हैं और विदेशी पूंजीपति बुरे.
'भारतीय बैंकों की स्थिति बेहद खराब'
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक बनर्जी भारतीय बैंकिंग सेक्टर की मौजूदा स्थिति के बारे में अपने विचार जाहिर कर रहे थे. उन्होंने कहा कि विदेशी पूंजीपतियों के अलावा और किसी के पास इतना पैसा नहीं है कि वह इतनी बड़ी राशि को बट्टे खाते में डाल सके. दरअससल बैंकिंग सेक्टर को इतनी बड़ी राशि बट्टे खाते में इसलिए डालनी पड़ रही है कि आज यह सेक्टर पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. अगर आप इन बैंकों के अकाउंट को देखें तो इनमें से कई ऐसे हैं, जिन्हें मार्केट में ही नहीं रहना चाहिए. सभी घाटे में हैं.
'ग्रोथ के लिए अच्छे रोजगार की जरूरत '
बनर्जी ने इस कार्यक्रम में प्रवासी मजदूरों के लिए मकान बनाने की सिफारिश की. उनका कहना है कि प्रवासी कामगारों के लिए कम समय के रोजगार का मतलब यह है कि लोगों के कौशल को अपग्रेड नहीं किया जा रहा है. इसलिए ग्रोथ की रफ्तार गरीबी दूर करने में गुड जॉब की बजाय बैड जॉब की भूमिका बढ़ती जा रही है. हमें गुड जॉब की तादाद बढ़ानी है. भारत में ज्यादा रोजगार कंस्ट्रक्शन और कम स्तरीय सर्विस जॉब में है. भारत की ग्रोथ की गुणवत्ता को बढ़ाने में यह एक अड़चन है.
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