Indian Business: रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत का ये कारोबार धीमा होने के आसार, श्रीलंका के हालात का भी फायदा नहीं उठा पा रहा देश
Business Challenges: श्रीलंका और चीन की आंतरिक परिस्थितियों के कारण इन देशों से होने वाले चाय व्यापार में 8 करोड़ किलो की कटौती हो सकती है, लेकिन भारत इस स्थिति का लाभ नहीं उठा पा रहा है.
Business Challenges for Export: रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) की तपिश पूरी दुनिया में महसूस हो रही है. इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं और पूरी दुनिया में महंगाई (Inflation) बढ़ रही है. भारत को युद्ध के कारण एक और मोर्चे पर बड़ा नुकसान हो रहा है. युद्ध के कारण भारत का चाय निर्यात कमजोर पड़ रहा है और रूस-पूर्वी यूरोपीय देशों में होने वाले चाय निर्यात में कमी आई है.
इससे आने वाले दिनों में चाय उत्पादकों को उत्पादन घटाने को मजबूर होना पड़ सकता है, जिस कारण चाय श्रमिकों में बेरोजगारी बढ़ सकती है. श्रीलंका (Srilanka) और चीन (China) की आंतरिक परिस्थितियों के कारण इन देशों से होने वाले चाय व्यापार में 8 करोड़ किलोग्राम की कटौती हो सकती है, लेकिन भारत इस स्थिति का लाभ उठा पाने की स्थिति में नहीं है. इसका कारण रूस पर लगने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों को माना जा रहा है.
ये है भारत से बड़ा आयातक
दरअसल, रूस भारत की चाय के सबसे बड़े आयातकों में शामिल है. वहां भारत की हाथों से तैयार की गई चाय की खेप बहुत पसंद की जाती है. इसी प्रकार पूर्वी यूरोप में भी भारत की पारंपरिक चाय खूब पसंद की जाती है. वेलनेस कैटेगरी में लोगों की जागरुकता के कारण इस वर्ग की चाय की खपत में भी खूब बढ़ोतरी आई है. लेकिन रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण उसको होने वाले चाय निर्यात में कमी आई है तो युद्ध के कारण यूरोपीय देशों में बढ़ी कमरतोड़ महंगाई के कारण वहां होने वाला चाय निर्यात भी कमजोर पड़ा है. बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इसका भारत को नुकसान हो सकता है.
श्रीलंका-चीन की स्थिति का फायदा नहीं
चाय उत्पादक कंपनियों के मुताबिक वैसे तो श्रीलंका की चाय पूरी दुनिया में पसंद की जाती है, लेकिन अपनी आंतरिक परिस्थितियों के कारण इस समय वह चाय निर्यात नहीं कर पा रहा है. इसी तरह से चीन भी चाय उत्पादन के मामले में विश्व में बड़ा खिलाड़ी है, लेकिन कोरोना की स्थिति गंभीर होने के कारण उसके चाय निर्यात में भी कमी आई है.
अनुमान के मुताबिक 2022-23 में श्रीलंका और चीन से होने वाले चाय निर्यात में लगभग आठ करोड़ किलोग्राम की कटौती हो सकती है. सामान्य परिस्थितियों में कोई भी चाय उत्पादक देश इस स्थिति का लाभ उठा सकता है, लेकिन चाय उत्पादन में लगने वाले समय और भारी मानव श्रम के कारण इसका उत्पादन अचानक बढ़ा पाना संभव नहीं होता.
ऐसे में बदली परिस्थिति का लाभ भी भारत उठाने में सक्षम नहीं है. चाय कंपनियां अचानक निवेश बढ़ाने को भी इच्छुक नहीं होती हैं क्योंकि इससे लाभ एक सीमित समय में मिलने की संभावना बनती है, जबकि पड़ोसी देशों में हालात सामान्य होते ही निर्यात सामान्य स्थिति में आने की संभावना ज्यादा होती है. इससे कोई भी कंपनी अल्पकाल के लिए भारी निवेश करने के प्रति इच्छुक नहीं होती.
इसलिए हैं निर्यातकों में निराशा
टी एसोसिएशन का मानना है कि पारंपरिक चाय के उत्पादन में भारी निवेश होता है और यह महंगी होती है. जबकि लोकप्रिय चाय मशीनों के माध्यम से बनाई जाती है जो वर्तमान समय में कुल घरेलू उत्पादन का लगभग 83 प्रतिशत है. मशीनों के द्वारा उत्पादन की तुलना में पारंपरिक चाय के उत्पादन में लगभग 20 गुना ज्यादा कीमत आती है. ऐसे में उसकी पसंद विशेष वर्ग के लोगों तक ही सीमित है. इस वर्ग की चाय सबसे ज्यादा विदेश निर्यात की जाती है. बाजार में महंगाई के कारण इसकी खपत में कमी आ रही है जिससे चाय उत्पादकों में निराशा का माहौल है.
भारत की स्थिति
चाय उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. पूरी दुनिया में होने वाले कुल चाय व्यापार में देश की हिस्सेदारी लगभग 10 पर्सेंट है और यह शीर्ष 5 चाय निर्यातक देशों में शामिल है. वातावरणीय कारणों से भारत की चाय दुनिया में सबसे बेहतर गुणवत्ता की समझी जाती है और ऊंची दरों पर बिकती है. भारत चाय के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में भी शामिल है और यह अपनी पैदावार का लगभग 80 पर्सेंट अपनी जरूरतों को पूरा करने में ही खर्च कर देता है.
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