क्यों GDP को लेकर मचा है हंगामा, जानिए इसके बारे में विस्तार से सारी जानकारी
आखिरकार ये जीडीपी होती क्या है और इसका देश की अर्थव्यवस्था के लिए क्या महत्व होता है, यहां हम आपको इसके विषय में पूरी जानकारी दे रहे हैं.
नई दिल्लीः देश की आर्थिक विकास दर यानी जीडीपी के मोर्चे पर हाल ही में बेहद चिंतित करने वाली खबर आई है. चालू वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर तिमाही में देश की जीडीपी गिरकर 4.5 फीसदी पर आ गई है. वहीं पहली तिमाही में जीडीपी 5 फीसदी पर आई थी. हाल ही में जीडीपी के जो आंकड़े आए हैं वो पिछले 6 साल में किसी तिमाही में आए सबसे खराब आंकड़े हैं. जाहिर तौर पर विपक्ष इसको लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर हमलावर है वहीं सरकार के कुछ मंत्री व सांसद अलग-अलग तरीकों से इसका बचाव भी कर रहे हैं.
बीजेपी के नेता निशिकांत दुबे ने हाल ही में लोकसभा में कहा कि जीडीपी के आंकड़ों को रामायण, महाभारत या बाइबिल की तरह सत्य नहीं माना जा सकता और आने वाले समय में जीडीपी का बहुत ज्यादा प्रयोग नहीं होगा. वहीं कांग्रेस इसको लेकर बेहद आक्रामक हो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कहा कि सरकार को ऐसा भयमुक्त माहौल बनाना होगा जिसके जरिए निवेश करने के लिए लोग आगे आ सकें.
ऐसे में चल रही चर्चाओं के बीच आम लोगों को ये उत्सुकता हो सकती है कि आखिरकार ये जीडीपी होती क्या है और इसका देश की अर्थव्यवस्था के लिए क्या महत्व होता है. यहां हम आपको इसके विषय में पूरी जानकारी दे रहे हैं.
क्या है जीडीपी किसी देश में एक तयशुदा समय में तैयार सभी वस्तुओं और सर्विस के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी कहा जाता है. जीडीपी ही किसी भी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और उसके आधार पर पता चलता है कि किसी देश के आर्थिक हालात कैसे हैं. जीडीपी की पूरी फुल फॉर्म ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट है.
जीडीपी के प्रकार भारत में हर तीन महीने यानी तिमाही आधार पर जीडीपी की गणना की जाती है. जीडीपी के दो तरह के प्रकार हैं जिन्हें नॉमिनल जीडीपी और रियल जीडीपी कहा जाता है. रियल जीडीपी में जहां महंगाई के असर को भी सम्मिलित किया जाता है वहीं नॉमिनल जीडीपी के तहत सभी आंकड़ों के मौजूदा कीमतों पर योग को देखा जाता है.
जीडीपी की शुरुआत कहां से हुई थी 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के बाद से विश्व के कई देशों की अर्थव्यवस्था की सेहत को मापने का पैमाना जीडीपी को माना जाने लगा, हालांकि आधुनिक विश्व के इतिहास में सबसे पहले जीडीपी का कॉन्सेप्ट अमेरिकी कांग्रेस के लिए सिमोन कुनजेट ने पेश किया था लेकिन व्यापक रूप से इसे 1944 के बाद से ही अस्तित्व में माना गया.
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भारत की जीडीपी का आंकड़ा कौन देता है भारत में केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय यानी सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस जीडीपी के आंकड़ों की गणना करता है और इसके लिए पूरे देश से हर तिमाही में डेटा इकट्ठा कर इसके आंकड़ों को जीडीपी के तौर पर जारी किया जाता है.
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कैसे होती है जीडीपी की गणना भारत में जीडीपी की गणना करने के लिए कृषि, इंडस्ट्री और सर्विस के आधार पर आंकड़ों को देखा जाता है. इसको तय करने के लिए देश में जितना व्यक्तिगत खर्च है. जितना उत्पादन है, इंडस्ट्री में जितना निवेश किया जाता है और सरकार देश के अंदर जितनी रकम खर्च करती है, उसे जोड़ दिया जाता है और इसके साथ ही कुल निर्यात में से कुल आयात को घटाया जाता है. इससे जो आंकड़ा आता है उसे कुल किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है और इसके बाद जो आंकड़ा आता है, वही देश की जीडीपी कहलाती है.
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जीडीपी का कैसे होता है आम जनता पर असर किसी भी देश की जीडीपी के कम होने का उसके नागरिकों के ऊपर बुरा असर पड़ता है और लोगों की औसत आमदनी में कमी आती है, देश में जॉब क्रिएशन में भी सुस्ती देखी जाती है और लोगों की सेविंग्स भी घट जाती है. लोगों की बचत कम होती है तो देश में निवेश भी घटता है. वहीं आर्थिक मंदी के आसार पैदा हो जाते हैं.
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आखिरकार जीडीपी के आंकड़ों को लेकर हंगामा क्यों है? जीडीपी के आधार पर किसी देश की आर्थिक स्थिति का सही सही पता लगाना संभव नहीं होता है, ऐसा तर्क कई बार दिया जाता है. इसके पीछे कारण दिया जाता है कि जिन देशों में कैश या मार्केट लेनदेन कम होता है उसकी सही स्थिति का आकलन करना संभव नहीं हो पाता है. कई बार जीडीपी से ये भी नहीं पता चल पाता है कि अमीरों और गरीबों की आय के बीच कितना अंतर है और अब इसको लेकर नेता आपस में भिड़े हुए हैं कि जीडीपी आंकड़ों के आधार पर देश की आर्थिक स्थिति का आकलन किया जाए या नहीं.
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