एमएसएमई की रफ्तार अब भी धीमी, सिर्फ 25 फीसदी अपनी आधी क्षमता से कर रहे हैं काम
एमएसएमई के पूरी क्षमता के मुताबिक काम न करने के पीछे मांग में कम, लॉजिस्टिक की दिक्कतें और फंड की कमी है.
देश के 6.30 करोड़ एमएसएमई यूनिटों में से 90 फीसदी ने काम करना शुरू कर दिया है लेकिन इनमें से 25 फीसदी ही अपनी 50 फीसदी क्षमता के साथ काम कर पा रही हैं. एमएसएमई के पूरी क्षमता के मुताबिक काम न करने के पीछे मांग में कम, लॉजिस्टिक की दिक्कतें और फंड की कमी है. फाउंडेशन फॉर एमएसएमई कलस्टर के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर तमाल सरकार का कहना है कि 85 फीसदी एमएसएमई यूनिट घर से काम करती हैं और बैंकों तक उनकी पहुंच काफी कम हैं. सरकार ने जो लिक्वडिटी पैकेज दिया है वो उसका लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं. सरकार को इनके लिए अलग से फंड या फास्ट ट्रैक मुद्रा का ऑप्शन देना चाहिए ताकि एमएसएमई को मजबूती मिले.
एमएसएमई के लिए फास्ट ट्रैक मुद्रा लोन की मांग
सरकार के मुताबिक 6 अगस्त तक इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम तक एमएसएमई को 1,40,000 करोड़ रुपये का लोन दिया जा चुका था. यह सरकार के 20 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर पैकेज का हिस्सा है. अब तक 95 हजार करोड़ रुपये का लोन दिया जा चुका है. देश में एमएसएमई सेक्टर लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार दे रहा है. देश के निर्यात में 50 फीसदी और जीडीपी में इसकी 30 फीसदी हिस्सेदारी है.
फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट गुरमीत सिंह कुलर का कहना है कि अगर एमएसएमई उत्पादन नहीं कर पाए तो बड़े उद्योग भी नहीं बचेंगे. उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में साइकिल का सबसे बड़ा उत्पादक है. साइकिल के 98 फीसदी पार्ट्स एमएसएमई सेक्टर की यूनिटों में बनते हैं. अगस्त में हुए सर्वे के मुताबिक जुलाई में एमएसएमई के कामकाज में सुधार दिखा था. उदाहरण के लिए जून में सिर्फ 18.2 फीसदी एमएसएमई अपनी आधी से ज्यादा क्षमता से काम कर रही थे. लेकिन इस दौरान 70 फीसदी एमएसएमई फंड की कमी का सामना कर रहे थे.
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