इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को फाइनेंस करने के मामले में आरबीआई ने हाथ खड़े कर दिए हैं. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सरकार को इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की फंडिंग के लिए दूसरे रास्ते तलाशने होंगे. बैंक इस वक्त बैड लोन की समस्या से जूझ रहे हैं. वे बुरी तरह एनपीए से परेशान है. लिहाजा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए पैसा देना संभव नहीं होगा. नीति आयोग के मुताबिक देश में 2030 तक इन्फ्रासेक्टर की परियोजनाओं के लिए 4.5 लाख करोड़ डॉलर की जरूरत होगी.


'इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में बैंकों का एनपीए काफी ज्यादा' 


सोमवार को सीआईआई के एक कार्यक्रम में शक्तिकांत दास ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में बैंकों का काफी एक्सपोजर है. बैंक इससे उबरने की प्रक्रिया में हैं. लिहाजा अब आरबीआई इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में और एक्सपोजर बर्दाश्त नहीं कर सकता. इन परियोजनाओं में बैंकों का बहुत ज्यादा कर्जा फंस चुका है. ऐसी परियोजनाओं में एनपीए का स्तर बहुत बढ़ गया है. इसलिए इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग के लिए दूसरे रास्तों की तलाश बेहद जरूरी है .दास ने कहा नेशनल इनवेस्टमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड की स्थापना इन्फ्रास्ट्रक्चर फंडिंग में अहम भूमिका निभाएगी.


इन्फ्रास्ट्रक्चरिंग फंडिंग के लिए निजी निवेश भी जरूरी 


दास ने महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में निवेश बढ़ाने पर विशेष जोर दिया. लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए फाइनेंस की व्यवस्था के लिए नए रास्ते चाहिए. दास ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के मेगा प्रोजेक्टेस में बड़े निवेश की जरूरत है. इससे अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है जैसा कि पूर्व में स्वर्णिम चतुर्भुज प्रोजेक्ट में देखने को मिला था. उन्होंने कहा कि यह उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम एक्सप्रेसवे के साथ हाई स्पीड ट्रेन कॉरिडोर के साथ शुरू हो सकता है. इससे जुड़े इकोनॉमी के कई दूसरे क्षेत्रों तथा रेल,सड़क नेटवर्क के आसपास के इलाकों को फायदा होगा. हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश की फंडिंग में सार्वजनिक और निजी निवेश दोनों जरूरी होंगे.