Gig Economy क्या है, यह भारत में रोजगार को किस तरह कर रहा है प्रभावित?
गिग इकॉनमी ने बड़ी संख्या में शहरी युवाओं को रोजगार पाने में सक्षम बनाया गया है जो अब उबर, ओला, स्विगी, जोमाटो आदि जैसे टेक्नोलॉजी पर आधारित नौकरियों में कार्यरत हैं.
हाल ही में पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे की रिपोर्ट (पीएलएफएस) ने कहा है कि 45 साल में भारत में बेरोजगारी की दर बढ़कर 6.1% हो गई है. जिसने शहरी युवाओं को रोजगार के अवसरों को खोजने के लिए गिग इकोनॉमी की ओर देखने को मजबूर कर दिया है. गिग इकॉनमी ने बड़ी संख्या में शहरी युवाओं को रोजगार पाने में सक्षम बनाया गया है जो अब उबर, ओला, स्विगी, जोमाटो आदि जैसे टेक्नोलॉजी पर आधारित नौकरियों में कार्यरत हैं. इस संबंध में हम जानेंगे बढ़ती गिग इकोनॉमी की संभावनाओं और चुनौतियों क्या हैं और यह भारत में रोजगार को किस तरह प्रभावित कर रहा है?
गिग इकॉनमी क्या है?
यह इकॉनमी एक ऐसा मॉडल है जिसमें स्थायी कर्मचारियों के बजाय फ्रीलांसर, गैर-स्थायी कर्मचारियों को नियुक्त करते हैं. गिग-इकोनॉमी वर्कर्स निम्न आय के साथ-साथ ऊंची आय पर भी भुगतान किए जाते हैं. यह प्रवृत्ति अमेरिका जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में बहुत मजबूत है, जिसमें बड़ी संख्या में फर्में कम अवधि के लिए फ्रीलांसरों को नियुक्त करती हैं. टेक्नोलॉजी के बढ़ते चलन और उसके तेजी से अपनाने के साथ यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे भारतीय अर्थव्यवस्था में विकसित हो रही है.
भारत में गिग इकॉनमी
10 मिलियन कर्मचारी वर्तमान में भारत में फ्रीलांसर के रूप में काम कर रहे हैं. अधिकांश फ्रीलांसर वेब और मोबाइल डेवलप्मेंट, वेब डिजाइनिंग, इंटरनेट इंस्टिट्यूशन और डेटा एंट्री पर काम करते हैं, यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारतीय फ्रीलांसर्स तकनीक पर आधारित काम में ज्यादा व्यस्त हैं. हाल के अनुमानों के अनुसार, जॉब्स को ध्यान में रखते हुए 13 लाख भारतीय गिग इकॉनमी में शामिल हो गए हैं, जिनकी संख्या वित्त वर्ष 2018-19 की पहली छमाही की तुलना में अंतिम छमाही में 30% वृद्धि के साथ दर्ज की गई. इसके अलावा, यह अनुमान लगाया जाता है कि 2019-20 में महानगरों में बनने वाली 21 लाख नौकरियों में से 14 लाख नौकरियां गिग इकॉनमी द्वारा क्रिएट की गईं हैं. इनमें फूड प्रोवाइडर एप और ई-कॉमर्स कंपनियां गिग इकॉनमी में रोजगार बढ़ावा देने के प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं.
गिग इकोनॉमी के विकास के कारण
सबसे पहले, गिग इकोनॉमी के चलन में डिजिटल संचार में तेजी से हो रहे विकास की भागीदारी सबसे ज्यादा है, जिसमें जॉब्स के साथ-साथ काम को अत्यधिक फ्लेक्सिबल बना दिया है और बिना किसी भौगोलिक बाधाओं के कहीं से भी काम किया जा सकता है. दूसरी बात यह है कि गिग इकॉनमी को अपनाने से फर्मों के ऑपरेशिनल कॉस्ट कम हो जाती है, क्योंकि कंपनियां पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा लाभों का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होतीं. तीसरा, यह श्रमिकों को आवश्यक फ्लेक्सिबीलिटी प्रदान करती हैं जिसमें वे बार-बार नौकरी स्विच कर सकते हैं और अपने मन का काम चुन सकते हैं जो उनके हित के क्षेत्र के अनुरूप हो. चौथा, फॉर्मल सेक्टर के जॉब्स में हालिया मंदी ने भी गिग इकॉनमी के विकास को बढ़ावा दिया है.
भारत को गिग इकॉनमी के विकास पर ध्यान क्यों देना चाहिए?
रोजगार पर प्रभाव: वर्तमान में, भारतीय अर्थव्यवस्था समावेशी विकास की कमी के कारण बेरोजगारी का सामना कर रही है. गिग इकॉनमी में जॉब्स के निर्माण से भारतीय अर्थव्यवस्था में रोजगार को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा, भारतीय कृषि से उपजी बेरोजगारी की समस्या का सामना कर रहे हैं. गिग इकॉनमी ऐसे ग्रामीण युवाओं को लाभकारी रोजगार प्रदान करने में सक्षम होगी.
प्रतिस्पर्धा में सुधार: काम की मात्रा के आधार पर कम वक्त के लिए फ्रीलांसर श्रमिकों को काम पर रखने से कंपनियों को अपने वर्क फोर्स को तर्कसंगत बनाने और लागत को कम करने में मदद मिलती है. इससे कंपनियों की कंपटीशन और स्किल्स में सुधार होता है.
श्रमिकों को स्वतंत्रता: गिग इकॉनमी श्रमिकों को अपनी सुविधा के अनुसार काम करने की स्वतंत्रता देती है, जिसमें कोई निश्चित का वक्त निर्धारित नहीं होता. वे अपनी रुचि के क्षेत्रों के अनुसार नौकरी स्विच कर सकते हैं.
महिलाओं के लिए अवसर: प्रति दिन निश्चित घंटे काम करने की आवश्यकता महिलाओं को फॉर्मल सेक्टर की नौकरियों को लेने से रोकती हैं. गिग इकॉनमी महिलाओं को काम की जगह ऐसी नौकरियों प्रदान करती हैं, जिनमें काम करने के घंटे के मामले में फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है.
चिंताएं/चुनौतियों
डेमोग्राफिक डिविडेंट के लिए चुनौतियां: वर्तमान में काम कर रहे लोगों की 50% से अधिक जनसंख्या डेमोग्राफिक डिविडेंट की श्रेणी में हैं. जनसंख्या के इस हिस्से को आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और डेमोग्राफिक डिविडेंट का उपयोग करने के लिए इनके स्किल को बढ़ाने की आवश्यकता है. गिग इकॉनमी इनफॉर्मल सेक्टर में जॉब्स क्रिएट कर रही है जो डेमोग्राफिक डिविडेंट की सही दिशा में एक बाधा है.
कानूनी ढांचा की गैरमौजूदगी: वर्तमान भारतीय लेबर लॉ स्पष्ट रूप से गिग इकॉनमी को अपने दायरे में नहीं ला पा रहा है. विभिन्न वर्क प्लेस के बेनिफिट्स के मुकाबले मैटरनिची लीव, वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ गिग इकॉनमी शांत हैं या निश्क्रिय है.
सामाजिक लाभों का अभाव: फॉर्मल सेक्टर के इतर गिग इकॉनमी के वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे कि बीमा, पेंशन, पीएफ आदि की कमी है.
जॉब सिक्योरिटी का अभाव: गिग इकोनॉमी के वर्कर्स को अपनी नौकरी की सुरक्षा के प्रति चिंता ज्यादा रहती है, क्योंकि उनकी नौकरियां नियोक्ताओं की इच्छा पर निर्भर हैं जिन्हें कभी भी निकाला सकता है.