Wheat Export Ban: गेहूं के निर्यात पर लगाम लगाने के न सिर्फ आम लोगों को फायदा होगा बल्कि सरकारी योजनाओं के लिए भी देश में खाद्यान्न की कमी नहीं होने पाएगी. यही नहीं गेहूं की जमाखोरी करने वालों पर भी बड़े पैमाने पर लग सकेगी लगाम. गेहूं की कीमत में कमी आने के बाद दूसरा बड़ा फायदा ये होगा कि इसकी कीमत निर्धारित 2015 रुपये प्रति क्विंटल के MSP के करीब पहुंच जाएगी. शुक्रवार को दिल्ली के बाजार में गेहूं की कीमत लगभग 2,340 रुपये प्रति क्विंटल थी, जबकि निर्यात के लिए बंदरगाहों पर 2575-2610 रुपये प्रति क्विंटल की बोली लगाई गई थी.
दाम घटेंगे
सरकार के गेहूं का निर्यात तुरंत रोकने से सबसे बड़ा प्रभाव इसकी कीमत पर पड़ेगा, जो कि इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 40 फीसदी तक बढ़ चुकी है. इसके साथ ही घरेलू बाजारों में बीते एक साल में गेहूं के दाम में 13 फीसदी का उछाल आया है. निर्यात पर रोक लगाए जाने से इसकी कीमत में तत्काल कमी दिखेगी.
आटा सस्ता होगा
गेहूं की किल्लत और बढ़ती कीमतों के कारण बीते कुछ हफ्तों में स्थानीय बाजारों में गेहूं के आटे की कीमतों में जोरदार तेजी देखी गई. आटे के दाम घटेंगे और आम जनता को राहत मिलेगी. आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में गेहूं के आटे का अखिल भारतीय मासिक औसत खुदरा मूल्य 32.38 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो कि जनवरी 2010 के बाद से सबसे अधिक है. कई राज्यों में इसमें बड़ा अंतर देखा जा रहा है. दाम बढ़ रहे हैं.
राज्यों से खरीद को बढ़ावा
दाम घटने से सरकार को उन राज्यों से अपनी खरीद को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जहां व्यापारियों और जमाखोरों के पास कीमतों में और वृद्धि की उम्मीद में भंडार दबे हुए हैं. सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि फिलहाल 14 से 20 लाख टन गेहूं व्यापारियों के पास है.
खाद्य सुरक्षा प्रबंधन में फायदा
भारत सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाए जाने से देश की समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने में मदद होगीगी. साथ ही अलावा पड़ोसी और अन्य कमजोर देशों की जरूरतों का समर्थन करने के मामले में भी इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिलेगा क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त मात्रा में स्टॉक मौजूद रहेगा.
आम जनता को बड़ा फायदा
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार का वर्तमान हालातों के बीच उठाया गया यह कदम एक अच्छा स्टेप है, जो कि आम जनता के हित में है. मौसम में भयंकर गर्मी से पहले से ही गेहूं के उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ा है. बाद में निर्यात ज्यादा होने के कारण देश की खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा था. निजी क्षेत्र बेलगाम घोड़े की तरह हो गए और इसका उदाहरण ये है कि चार साल के भीतर गेहूं की कीमत में जितना इजाफा हुआ, उससे पांच गुना ज्यादा तेजी आटे की कीमतों में आई है.
देश के स्टॉक बढ़ेगा
सरकार के इस फैसले से खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा और देश में स्टॉक पर्याप्त रहेगा. 2005-07 के बीच तत्कालीन सरकार के प्राइवेट कंपनियों को किसानों से गेहूं खरीदने का अधिकार दिए था. उस समय बड़ी मात्रा में निर्यात के कारण केंद्र को दो साल के भीतर 7.1 मिलियन टन का बड़ा आयात करना पड़ा था, वो भी दोगुनी कीमत में. ऐसे में सरकार की ओर से उठाया गया ये कदम बड़ी राहत देने वाला साबित हो सकता है.
सरकारी योजनाओं के लिए फायदेमंद
गिरते माल का आकलन करने के बाद कुछ हफ्ते पहले ही सरकार ने मई से शुरू होने वाले पांच महीनों के लिए सरकार की मुफ्त राशन योजना (PMGKAY) के तहत वितरण के लिए राज्यों को गेहूं के स्थान पर 5.5 मिलियन टन चावल आवंटित करने का फैसला लिया है. खबरों के मुताबिक इससे करीब 55 लाख टन गेहूं तुरंत निकल जाएगा, जिसका इस्तेमाल स्टॉक बनाने में किया जा सकता है. गेहूं का निर्यात रोके जाने से स्टॉक में इजाफा होगा और इस तरह की योजनाओं में फिर से गेहूं का वितरण शुरू किया जा सकेगा.
महंगाई पर प्रभाव दिखेगा
सरकार के इस फैसले के चलते खाद्य महंगाई में भी कमी आने की उम्मीद है. बता दें कि देश में महंगाई आसमान छू रही है, खुदरा महंगाई एक बार फिर लंबी छलांग मारते हुए अप्रैल महीने में 7.79 फीसदी पर पहुंच गई है. इस बीच अप्रैल में खाद्य पदार्थों पर महंगाई 8.38 फीसदी के स्तर पर पहुंच चुकी है. देश में आटे का खुदरा मूल्य इस समय 12 साल के शीर्ष पर है. इसमें कमी आने से जनता को राहत होगी.
गेहूं की महंगाई दर घटेगी
मार्च में भारत की थोक गेहूं मुद्रास्फीति दर 14 फीसदी रही थी, जो पांच साल से ज्यादा समय का उच्चतम स्तर था. गेहूं की दामों में गिरावट आने पर इस मोर्चे पर भी राहत मिलेगी. इससे घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी.
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